रांची: झारखंड सुखाड़ के मुहाने पर खड़ा है. किसान परेशान हैं. मानसून दगा दे रहा है. अब आने वाली चुनौती से कैसे निपटा जाए. कैसे किसानों के संभावित नुकसान की भरपाई की जाए. इस तमाम बिंदुओं को लेकर कृषि विभाग में कृषि वैज्ञानिकों के साथ मंथन किया गया. सबसे पहली बात तो ये कि इस साल औसत से 58 फीसदी कम बारिश हुई है. नेपाल हाउस स्थित सभागार में मंथन के दौरान कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि राज्य में भीषण संकट की आशंका प्रबल होती जा रही है. इस हालात में कृषि वैज्ञानिकों की जवाबदेही बढ़ जाती है.
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सुखाड़ पर महामंथन के दौरान बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कृषि वैज्ञानिक केंद्र और आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि झारखंड के इको सिस्टम के मुताबिक कृषि में विभिन्न अवयवों को जोड़ने की जरूरत है. साथ ही कहा कि राज्य में डीएसआर मेथड पर भी काम करने की आवश्यकता है. बैठक में यह भी सुझाव आए कि मौजूदा परिस्थिति में किसानों को बीज वितरण में जो 50 फीसदी की सब्सिडी मिलती है उसे बढ़ाकर 75% सब्सिडी अनुदान देने की जरूरत है. कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग पर नीति बनाने की जरूरत पर बल देते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर नीति राज्य सरकार द्वारा बनाई जाती है तो मिट्टी की नमी को बचाया जा सकेगा.
कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य के किसानों को लेकर वह काफी चिंतित हैं और झारखंड राज्य फसल राहत योजना के तहत राज्य के 20,000 कॉमन सर्विस सेंटर किसानों को असिस्ट कर रहे हैं. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाले 20 दिन काफी क्रिटिकल हैं. अगर भविष्य में सुखाड़ जैसे हालात बनते हैं तो केंद्र सरकार से अनुदान के लिए राज्य सरकार की ओर से मजबूत तरीके से दावेदारी पेश की जानी चाहिए.
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कृषि विभाग के सचिव अबू बकर सिद्दीकी ने कहा कि शॉर्ट टर्म और वैकल्पिक फसल पर जोर देने की जरूरत है. उड़द, मडुआ और सोयाबीन की खेती करनी होगी. साथ में मक्का, अरहर, ज्वार और बाजरा जो न्यूट्रीशनली रिच हैं, उन पर फोकस करना होगा. उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र राज्य का बैकबोन है. उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारी किसानों के साथ समन्वय बनाए ताकि राज्य में सुखाड़ की आशंका को लेकर निदान की दिशा में कदम बढ़ाए जा सके.
कृषि निदेशक निशा ने कहा कि राज्य के कुल इक्कीस जिलों में स्पेशल केयर करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि पेडी में सबसे ज्यादा शॉर्ट फॉल दिखाई दे रहा है. 2021 में 36.7 4% अब तक एरिया कवर किया गया था जबकि 2022 में मात्र 14.11 प्रतिशत ही एरिया में क्रॉप्स का काम हुआ है. कृषि निदेशालय ने ब्लॉक चेन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.