रांची: कृषि शुल्क विधेयक को लेकर व्यवसायी और राज्य सरकार आमने सामने है. लाख कोशिशों के बाबजूद राज्यपाल की सहमति इस बिल पर मिल चुकी है, जिस वजह से व्यवसायियों की नाराजगी और बढ गई है. इस बिल को काला कानून बताते हुए झारखंड के व्यवसायी आंदोलन पर हैं. वहीं, सरकार खजाने में 50 करोड़ से अधिक की वृद्धि होने की संभावना को देखते हुए हर हाल में लागू करने पर अड़ी हुई है.
सरकार के अड़ियल रुख से नाराज झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने 15 फरवरी से खाद्यान्न के आवक को ठप्प करने की धमकी दी है. यदि वास्तव में यह हो गया तो ना केवल सरकार को राजस्व की क्षति होगी बल्कि राज्य में खाद्यान्नों की किल्लत होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. अनुमान के मुताबिक राज्य में प्रति दिन 100 करोड़ के खाद्यान्न का उठाव व्यापारियों द्वारा किया जाता है. सबसे ज्यादा परेशानी कच्चा माल को लेकर होगा जिसका खामियाजा आखिरकार किसानों को होगा.
इस तरह होगा व्यवसायियों का आंदोलन: सरकार के इस कानून के खिलाफ व्यवसायियों का आंदोलन राज्यभर में जारी है. शुक्रवार यानी 10 फरवरी को ई-नाम के फर्जीवाड़े को लेकर झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने प्रधानमंत्री और विभिन्न व्यवसायी संगठन को पत्र लिख रहे हैं वहीं 11 फरवरी को कृषि मंत्री बादल पत्रलेख का हर जिले में पुतला दहन करने का फैसला किया है. झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स के महासचिव डॉ अभिषेक रमाधीन ने इसे काला कानून बताते हुए कहा कि इसके खिलाफ 12 फरवरी को अपने अपने क्षेत्र के विधायक और मंत्री से संपर्क कर विरोध जतायेंगे वहीं 13 फरवरी को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पोस्टकार्ड लिखा जायेगा.
14 फरवरी को हर जिला मुख्यालय में व्यवसायी धरना प्रदर्शन कर 15 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जायेंगे. उन्होंने कहा कि सरकार इस संदर्भ में व्यवसायियों से वार्ता करने के बजाय मनमाने ढंग से इसे लागू करने पर तुली हुई है. जो कांग्रेस केन्द्र की कृषि कानून का विरोध करती थी वही आज झारखंड में इसे जबरन थोप रही है. इस कानून के लागू होने से हर सामान महंगा हो जायेगा, जिसका खामियाजा जनता को उठाना पड़ेगा.