रांची: मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल करने के बाद बिहार, झारखंड और हिमाचल प्रदेश ही हिन्दी पट्टी वाले ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी सत्ता में नहीं है. इन तीनों राज्यों में सबसे पहले झारखंड में ही विधानसभा चुनाव होना है. इसलिए अब पीएम मोदी का अगला लक्ष्य झारखंड है. हालांकि यहां पर विधानसभा चुनाव होने से पहले लोकसभा चुनाव भी होने हैं, लिहाजा झारखंड के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों के लिए रणनीति लगभग तय मानी जा रही है.
हिन्दी पट्टी वाले राज्य झारखंड में फिलहाल हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की सरकार है. यहां पर बीजेपी सत्ता में वापसी करना चाहेगी. इसके लिए पीएम मोदी और अमित शाह ने खास रणनीति बनाई है. जिसका असर बीजेपी के फैसलों में दिखने लगा है. झारखंड एक आदिवासी राज्य है, यहां पर पार्टी आदिवासी नेताओं को आगे बढ़ा रही है. तीन राज्यों में भारी बहुमत पाने के बाद दो राज्यों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सीएम चुनने के लिए इन राज्यों के दो नेताओं अर्जुन मुंडा और आशा लकड़ा को अहम जिम्मेवारी मिली है. उन्हें पर्यवेक्षक बनाया गया है. तीन राज्यों में कुल नौ पर्यवेक्षक बनाए गए हैं, जिसमें दो आदिवासी चेहरा झारखंड से ही हैं. बीजेपी के इसी फैसले से झारखंड की अहमियत समझी जा सकती है. इतना ही नहीं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के इस्तीफे के बाद कृषि मंत्रालय का कार्यभार भी केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा को दिया गया है.
पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ और झारखंड में काफी समानताएं हैं. दोनों ही राज्य आदिवासी बहुल हैं. छत्तीसगढ़ में 33 प्रतिशत आदिवासी हैं तो झारखंड में 27 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. छत्तीसगढ़ में एसटी के लिए 29 सीट आरक्षित हैं तो झारखंड में 28 सीटें. दोनों ही राज्यों के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता है. इसलिए माना जाता है छत्तीसगढ़ में राजनीति का असर झारखंड में भी पड़ता है. अब जब छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली है, तो पीएम मोदी का अगला निशाना झारखंड होगा.
झारखंड पर पीएम मोदी का फोकस: झारखंड स्थापना दिवस के मौके पर पीएम मोदी झारखंड दौरे पर आए थे. इस दौरान भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू भी गए थे. जहां उन्होंने विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरूआत की. विकसित भारत संकल्प यात्रा के साथ यहां से कई योजनाओं की शुरूआत हुई. झारखंड दौरे के दौरान पीएम मोदी बिरसा मुंडा संग्रहालय भी गए, जहां भगवान बिरसा ने अंतिम सांस ली थी. झारखंड को पीएम मोदी का लॉन्चिंग पैड भी कहा जाता है. यहीं से पीएम ने आयुष्मान भारत योजना को भी लॉन्च किया था. चुनावी सभा को छोड़कर पीएम मोदी अब तक 12 से अधिक बार झारखंड दौरे पर आ चुके हैं. वहीं भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप मनाने की घोषणा पीएम मोदी पहले की कर चुके हैं.
झारखंड के नेताओं का छत्तीसगढ़ में प्रदर्शन: छत्तीसगढ़ चुनाव में एक दर्जन से अधिक बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार की जिम्मेवारी दी गई थी. जिसमें कई विधायक भी शामिल हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने 10 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी, जिसमें से 8 पर जीत मिली. वहीं राजमहल से विधायक अनंत ओझा ने 14 सीटों पर काम किया था, जिसमें सभी सीटों पर जीत हासिल हुई है. ऐसे में माना जा सकता है कि जिस तरह से झारखंड के बीजेपी नेताओं का प्रभाव दिखा है, उसी तरह से छत्तीसगढ़ में बीजेपी की जीत का असर झारखंड पर भी पड़ेगा.
आशा लकड़ा को क्यों आगे बढ़ा रही बीजेपी: रांची की मेयर रहीं आशा लकड़ा का बीजेपी में लगातार कद बढ़ रहा है. आशा लकड़ा वर्तमान में नड्डा की टीम की सदस्य हैं. उन्हें राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेवारी मिली हुई है. फिलहाल उन्हें मध्य प्रदेश का पर्यवेक्षक बनाया गया है. इससे पहले आशा लकड़ा अमेठी में स्मृति ईरानी के साथ काम कर चुकी हैं. झारखंड एक आदिवासी राज्य है. यहां बीजेपी के पास दो बड़े आदिवासी चेहरे हैं, एक बाबूलाल मरांडी और दूसरे अर्जुन मुंडा. बाबूलाल मरांडी को प्रेदश की कमान सौंपकर भाजपा परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने में जुटी है. बीजेपी भविष्य को देखते हुए एक महिला चेहरे के तौर पर आशा लकड़ा को भी आगे बढ़ा रही है. आशा लकड़ा एक तेजतर्रार और मुखर नेता हैं. बीजेपी की नीतियां और राष्ट्रवाद को लेकर भी काफी मुखर रहीं हैं.
हालिया बड़े फैसले: बीजेपी ने पिछले कुछ महीनों में झारखंड को लेकर कई बड़े फैसले लिए हैं. यहां पर सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी को प्रदेश में पार्टी का मुखिया बनाया गया. वहीं एक दलित नेता अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी दी गई. वहीं गुटबाजी को दरकिनार करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को सक्रिय राजनीति से अगल कर ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया.
अर्थ आधारित राजनीति को प्रभावित करता है झारखंड: वरिष्ठ पत्रकार रजत गुप्ता का कहना है कि आदिवासी समुदाय को फिर से अपने पाले में करने की कोशिश में जुटी है भाजपा. तीन राज्यों के चुनाव परिणाम बताते हैं कि इसमें सफलता भी मिली है. लोकसभा सीटों के लिहाज से झारखंड महत्वपूर्ण नहीं है पर खनिज राज्य होने की वजह से यह राज्य देश की अर्थ आधारित राजनीति को प्रभावित करती है. इसलिए झारखंड पर अधिक फोकस होता है.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक: वरिष्ठ पत्रकार नीरज सिन्हा कहते हैं कि बेशक बीजेपी आलाकमान की सीधी नजर झारखंड पर है. छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान के आदिवासी इलाकों में सुरक्षित सीटों पर बीजेपी की प्रभावी जीत ने उसकी उम्मीदें जगा दी हैं. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी इन नतीजों के मायने हैं. छत्तीसगढ़ की 29 एसटी सीटों पर बीजेपी ने 16 पर और कांग्रेस ने 12 सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस के खाते में 27 सीटें आई थीं. जाहिर है छत्तीसगढ़ में जो समीकरण उभरे हैं उससे झारखंड की सियासत में हलचल है और बीजेपी को इससे ऊर्जा मिली है. रही बात अर्जुन मुंडा की तो वे केंद्र में जनजातीय मामले के साथ ही कृषि मंत्री भी हैं और झारखंड में मुख्यमंत्री भी रहे हैं. आशा लकड़ा को भी आदिवासी चेहरा के नाते आलाकमान तवज्जो देता रहा है और उनमें संभावना भी तलाश रहा है.
वैसे तो झारखंड में विधानसभा चुनाव में लगभग एक साल का वक्त है. तीन राज्यों के नतीजों ने हेमंत सोरेन के कान खड़े कर दिए हैं, साथ ही माथे पर बल भी पड़ें हैं. झारखंड के जनजातीय इलाकों में क्या असर पड़ेगा और मोदी मैजिक क्या गुल खिलाएगा यह देखने वाली बात होगी. क्योंकि राजनीति में परिस्थिति और परसेप्शन बदलते देर नहीं लगती है.
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