ETV Bharat / state

आंदोलन से उपजी पार्टी झामुमो के 50 साल- जल जंगल जमीन से सत्ता के सिंहासन तक का सफर

झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने स्थापना के 50 साल को पूरा करने जा रहा है(50 years of Jharkhand Mukti Morcha). जल जंगल जमीन के आंदोलन वाले गर्भ से निकली पार्टी ने अपने 50 सालों में कई बड़े उतार चढ़ाव देखे हैं.

Etv Bharat
डिजाइन इमेज
author img

By

Published : Jan 5, 2023, 8:45 PM IST

Updated : Jan 7, 2023, 1:24 PM IST

रांचीः 4 फरवरी 2023 को झारखंड मुक्ति मोर्चा अपनी स्थापना की 50वीं सालगिरह मनाने जा रहा है(50 years of Jharkhand Mukti Morcha), 4 फरवरी 1973 को झामुमो की स्थापना हुई थी. तीन लोगों ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी, आज उसमें से शिबू सोरेन ही जिंदा हैं जो उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक महासचिव थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन 4 फरवरी 1973 को हुआ. झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के समय शिबू सोरेन की उम्र 28 साल की थी. 1973 से लेकर आज तक झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राजनीतिक तौर पर अपना विकास किया है. केंद्र से लेकर राज्य तक में मोर्चा की मजबूत दखल रही है. झारखंड राज्य बंटवारे के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राज्य बनाने तक संघर्ष किया. दलित, शोषित और सूदखोरों के खिलाफत वाली विरोध के गर्भ से उपजे झारखंड मुक्ति मोर्चा, इन्हीं लोगों के विकास की राजनीति भी करती रही है. महाजनी प्रथा का विरोध शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन का आधार बना और इसी आधार को लेकर वो झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ राजनीतिक सफर के 50 साल को पूरा करने जा रहे हैं.



संयुक्त बिहार के साथ की राजनीति: संयुक्त बिहार में आदिवासी राजनीति की अपनी पकड़ कभी कमजोर नहीं थी. बिहार विधानसभा के लिए जितने चुनाव हुए उसमें झारखंड पार्टी का अपना अलग ही बोलबाला था. जेपी आंदोलन से राजनैतिक स्वरूप बदला उसने क्षेत्रीय पार्टियों के उदय को जगह दी. झारखंड में जो संयुक्त रूप से चलने वाली पार्टी थी उसमें भी टूट हुई और कई राजनीतिक दल खड़े हुए. 15 नवंबर 2000 झारखंड का गठन हुआ, हालांकि यह सबकुछ 1974 के पहले तक की राजनीति में अपनी मजबूती से टिका रहा. बिहार के आठवें विधानसभा के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के उद्भव के साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा भी चुनावी मैदान में था और आठवीं विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कुल 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना के बाद यह पहला चुनाव भी था और बड़ी जीत भी.

संयुक्त बिहार के हर चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी मजबूत पकड़ दिखाई. नौवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि दसवीं विधानसभा के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 11 वीं बिहार विधानसभा का चुनाव जब हुआ तो उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा दो गुटों में बंट गया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा मार्डी गुट. झारखंड मुक्ति मोर्चा सोरेन गुट को ग्यारहवीं बिहार विधानसभा के चुनाव में 16 सीटें मिली जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा मार्डी ग्रुप केवल 2 सीट पर ही सिमट गया।


ग्यारहवीं बिहार विधानसभा: इस चुनाव के बाद इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि बिहार से झारखंड बटेगा. हालांकि उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा का आंदोलन झारखंड बंटवारे के लिए तेज था और बिहार में लालू यादव बंटवारा नहीं होने देने की जिद पर टिके हुए थे. 15 नवंबर सन 2000 को झारखंड बांट दिया गया. उसके बाद से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड के विकास के लिए अपनी नई राजनीतिक रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया. बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा बिहार में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा हालांकि उसके बाद बड़ी राजनैतिक उपलब्धि झारखंड मुक्ति मोर्चा को बिहार में नहीं हासिल हुई. झारखंड मुक्ति मोर्चा की हनक बिहार में लगातार बरकरार रही. लालू राज के बाद नीतीश सरकार के गठन होने के बाद 2015 के हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिहार में 1 सीट पर जीत दर्ज की थी.


झारखंड की राजनीति में झामुमो: झारखंड मुक्ति मोर्चा के 50 साल के सफर में कई बड़े उतार-चढ़ाव रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिहार में अपनी राजनीतिक मजबूती तो रखी. झारखंड के लिए जितनी लड़ाई झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लड़ा था, वह झारखंड बंटवारे के तुरंत बाद राजनीतिक रूप से फायदे के तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा की झोली में नहीं आई. झारखंड मुक्ति मोर्चा की राज्य में 5 बार सरकार बनी. 2005, 2008 और 2009 में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने थे जबकि 2013 और 2014 में हेमंत सोरेन को गद्दी मिली. यह सभी सरकारे ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई और किसी भी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया.

झारखंड के पहला चुनावः झारखंड में पहली विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 33 सीटें मिली थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा को 12 सीटें मिली, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 11 राष्ट्रीय जनता दल को 9 समता पार्टी को 5 जनता दल यूनाइटेड 3 यूजीडीपी को 2 सीपीआई माले को 1 निर्दलीय मनोनीत कुल 3 सीटें मिली थी.


झारखंड के दूसरे विधानसभा की बात करें भारतीय जनता पार्टी को 30 और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 17 सीटें मिली थी. सहयोगी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ में थी उनको भी जो आंकड़े आए थे उसमें भी गिरावट ही थी, कांग्रेस को 9 और राष्ट्रीय जनता दल 7 सीट ही जीत पायी थी. जनता दल यूनाइटेड ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी आजसू को 2 सीटें मिली थी और वाम दल और दूसरी पार्टियां बाकी सीटों पर जीत दर्ज की थी.


झारखंड विधानसभा के तीसरे चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर रही भारतीय जनता पार्टी को 18 सीटें मिली. झारखंड मुक्ति मोर्चा को 18 सीट कांग्रेस 14 सीटें जीती थी. झारखंड विकास मोर्चा को 11 सीटें मिली थी राष्ट्रीय जनता दल ने 5 सीटों पर जीत कायम की थी और आजसू पार्टी भी 5 सीटें जीती थी. जनता दल यूनाइटेड 2 सीट पर आ गई थी बाकी दूसरे राजनीतिक दलों ने जीत दर्ज की थी.


भाजपा वाली जीत: 2014 में चौथे विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी वापसी करते हुए 37 सीटें जीती थी और झारखंड में स्थाई और पूर्ण बहुमत की सरकार बीजेपी ने बनाई थी हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19 कांग्रेस को 8 आजसू पार्टी 3 सीट पर जीत मिली और बाकी राजनीतिक दलों को एक और दो सीटें ही मिली थीं.

झामुमो वाली जीत: झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन और झारखंड बंट जाने के बाद 2019 का झारखंड विधानसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के 50 साल की राजनीतिक सफर के सबसे बड़े जीत का गवाह बना. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने खाते में 30 सीटें जीती. भारतीय जनता पार्टी को पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पीछे करते हुए झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई जो अभी तक चल रही है.

बड़ी राह पर झामुमोः पार्टी के गठन से लेकर अभी तक शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान समय में पार्टी के दसवीं बार अध्यक्ष चुने गए हैं. यह अलग बात है पार्टी के लिए जिस तरीके की रणनीति हेमंत सोरेन तैयार किए 2015 में उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को संभाला और केंद्रीय अध्यक्ष के तौर पर शिबू सोरेन पार्टी की कमान को देख रहे हैं लेकिन अभी बिल्कुल साफ है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पकड़ हेमंत सोरेन की है और 50 साल के सफरनामे की सबसे बड़ी कहानी यही है बात की सियासत को बेटे ने नया मुकाम देते हुए झारखंड में गुरुजी के सोच और सपनों की सरकार को बनाया है और 2019 से सरकार को चला रहे हैं. 50 साल के सफरनामे में बदलते राजनीतिक हालात की कई वैसी भी कहानियां है जिसे झामुमो और गुरूजी के लिए मुश्किल भी खड़े किए हैं और कई कड़े इम्तहान भी हुए हैं लेकिन उन सब के बाद भी पार्टी अपने सुनहरे सोपान के लिए लगातार अग्रसर है.

रांचीः 4 फरवरी 2023 को झारखंड मुक्ति मोर्चा अपनी स्थापना की 50वीं सालगिरह मनाने जा रहा है(50 years of Jharkhand Mukti Morcha), 4 फरवरी 1973 को झामुमो की स्थापना हुई थी. तीन लोगों ने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी, आज उसमें से शिबू सोरेन ही जिंदा हैं जो उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक महासचिव थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन 4 फरवरी 1973 को हुआ. झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के समय शिबू सोरेन की उम्र 28 साल की थी. 1973 से लेकर आज तक झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राजनीतिक तौर पर अपना विकास किया है. केंद्र से लेकर राज्य तक में मोर्चा की मजबूत दखल रही है. झारखंड राज्य बंटवारे के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राज्य बनाने तक संघर्ष किया. दलित, शोषित और सूदखोरों के खिलाफत वाली विरोध के गर्भ से उपजे झारखंड मुक्ति मोर्चा, इन्हीं लोगों के विकास की राजनीति भी करती रही है. महाजनी प्रथा का विरोध शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन का आधार बना और इसी आधार को लेकर वो झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ राजनीतिक सफर के 50 साल को पूरा करने जा रहे हैं.



संयुक्त बिहार के साथ की राजनीति: संयुक्त बिहार में आदिवासी राजनीति की अपनी पकड़ कभी कमजोर नहीं थी. बिहार विधानसभा के लिए जितने चुनाव हुए उसमें झारखंड पार्टी का अपना अलग ही बोलबाला था. जेपी आंदोलन से राजनैतिक स्वरूप बदला उसने क्षेत्रीय पार्टियों के उदय को जगह दी. झारखंड में जो संयुक्त रूप से चलने वाली पार्टी थी उसमें भी टूट हुई और कई राजनीतिक दल खड़े हुए. 15 नवंबर 2000 झारखंड का गठन हुआ, हालांकि यह सबकुछ 1974 के पहले तक की राजनीति में अपनी मजबूती से टिका रहा. बिहार के आठवें विधानसभा के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के उद्भव के साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा भी चुनावी मैदान में था और आठवीं विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कुल 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना के बाद यह पहला चुनाव भी था और बड़ी जीत भी.

संयुक्त बिहार के हर चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी मजबूत पकड़ दिखाई. नौवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि दसवीं विधानसभा के चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 11 वीं बिहार विधानसभा का चुनाव जब हुआ तो उसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा दो गुटों में बंट गया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा मार्डी गुट. झारखंड मुक्ति मोर्चा सोरेन गुट को ग्यारहवीं बिहार विधानसभा के चुनाव में 16 सीटें मिली जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा मार्डी ग्रुप केवल 2 सीट पर ही सिमट गया।


ग्यारहवीं बिहार विधानसभा: इस चुनाव के बाद इस बात की सुगबुगाहट तेज हो गई थी कि बिहार से झारखंड बटेगा. हालांकि उस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा का आंदोलन झारखंड बंटवारे के लिए तेज था और बिहार में लालू यादव बंटवारा नहीं होने देने की जिद पर टिके हुए थे. 15 नवंबर सन 2000 को झारखंड बांट दिया गया. उसके बाद से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड के विकास के लिए अपनी नई राजनीतिक रणनीति को अंजाम देना शुरू कर दिया. बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद भी झारखंड मुक्ति मोर्चा बिहार में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा हालांकि उसके बाद बड़ी राजनैतिक उपलब्धि झारखंड मुक्ति मोर्चा को बिहार में नहीं हासिल हुई. झारखंड मुक्ति मोर्चा की हनक बिहार में लगातार बरकरार रही. लालू राज के बाद नीतीश सरकार के गठन होने के बाद 2015 के हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिहार में 1 सीट पर जीत दर्ज की थी.


झारखंड की राजनीति में झामुमो: झारखंड मुक्ति मोर्चा के 50 साल के सफर में कई बड़े उतार-चढ़ाव रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बिहार में अपनी राजनीतिक मजबूती तो रखी. झारखंड के लिए जितनी लड़ाई झारखंड मुक्ति मोर्चा ने लड़ा था, वह झारखंड बंटवारे के तुरंत बाद राजनीतिक रूप से फायदे के तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा की झोली में नहीं आई. झारखंड मुक्ति मोर्चा की राज्य में 5 बार सरकार बनी. 2005, 2008 और 2009 में शिबू सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री बने थे जबकि 2013 और 2014 में हेमंत सोरेन को गद्दी मिली. यह सभी सरकारे ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई और किसी भी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया.

झारखंड के पहला चुनावः झारखंड में पहली विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 33 सीटें मिली थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा को 12 सीटें मिली, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 11 राष्ट्रीय जनता दल को 9 समता पार्टी को 5 जनता दल यूनाइटेड 3 यूजीडीपी को 2 सीपीआई माले को 1 निर्दलीय मनोनीत कुल 3 सीटें मिली थी.


झारखंड के दूसरे विधानसभा की बात करें भारतीय जनता पार्टी को 30 और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 17 सीटें मिली थी. सहयोगी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ में थी उनको भी जो आंकड़े आए थे उसमें भी गिरावट ही थी, कांग्रेस को 9 और राष्ट्रीय जनता दल 7 सीट ही जीत पायी थी. जनता दल यूनाइटेड ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी आजसू को 2 सीटें मिली थी और वाम दल और दूसरी पार्टियां बाकी सीटों पर जीत दर्ज की थी.


झारखंड विधानसभा के तीसरे चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर रही भारतीय जनता पार्टी को 18 सीटें मिली. झारखंड मुक्ति मोर्चा को 18 सीट कांग्रेस 14 सीटें जीती थी. झारखंड विकास मोर्चा को 11 सीटें मिली थी राष्ट्रीय जनता दल ने 5 सीटों पर जीत कायम की थी और आजसू पार्टी भी 5 सीटें जीती थी. जनता दल यूनाइटेड 2 सीट पर आ गई थी बाकी दूसरे राजनीतिक दलों ने जीत दर्ज की थी.


भाजपा वाली जीत: 2014 में चौथे विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बड़ी वापसी करते हुए 37 सीटें जीती थी और झारखंड में स्थाई और पूर्ण बहुमत की सरकार बीजेपी ने बनाई थी हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा को 19 कांग्रेस को 8 आजसू पार्टी 3 सीट पर जीत मिली और बाकी राजनीतिक दलों को एक और दो सीटें ही मिली थीं.

झामुमो वाली जीत: झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन और झारखंड बंट जाने के बाद 2019 का झारखंड विधानसभा चुनाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के 50 साल की राजनीतिक सफर के सबसे बड़े जीत का गवाह बना. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने खाते में 30 सीटें जीती. भारतीय जनता पार्टी को पहली बार झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पीछे करते हुए झारखंड की सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई जो अभी तक चल रही है.

बड़ी राह पर झामुमोः पार्टी के गठन से लेकर अभी तक शिबू सोरेन पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान समय में पार्टी के दसवीं बार अध्यक्ष चुने गए हैं. यह अलग बात है पार्टी के लिए जिस तरीके की रणनीति हेमंत सोरेन तैयार किए 2015 में उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को संभाला और केंद्रीय अध्यक्ष के तौर पर शिबू सोरेन पार्टी की कमान को देख रहे हैं लेकिन अभी बिल्कुल साफ है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पकड़ हेमंत सोरेन की है और 50 साल के सफरनामे की सबसे बड़ी कहानी यही है बात की सियासत को बेटे ने नया मुकाम देते हुए झारखंड में गुरुजी के सोच और सपनों की सरकार को बनाया है और 2019 से सरकार को चला रहे हैं. 50 साल के सफरनामे में बदलते राजनीतिक हालात की कई वैसी भी कहानियां है जिसे झामुमो और गुरूजी के लिए मुश्किल भी खड़े किए हैं और कई कड़े इम्तहान भी हुए हैं लेकिन उन सब के बाद भी पार्टी अपने सुनहरे सोपान के लिए लगातार अग्रसर है.

Last Updated : Jan 7, 2023, 1:24 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.