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रांची: बीकेयू में कृषि क्षेत्र के कार्यक्रमों के लिए बनेगी विशेषज्ञ समिति, अनुसंधान परिषद की हुई 40वीं बैठक

रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान परिषद् की 40वीं बैठक में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा हुई.कृषि सम्बन्धी सरकारी नीतियों, नीति निर्माण और कार्यान्वन में कमियों को चिन्हित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर जोर दिया है.

बीकेयू में बैठक
बीकेयू में बैठक
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Published : Nov 11, 2020, 6:39 AM IST

रांचीः कृषि सचिव अबुबकर सिद्दीकी ने झारखंड में कृषि सम्बन्धी सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सरकारी विनियोग, वैज्ञानिकों की आधुनिक तकनीकों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किसानों के प्रयासों के प्रभाव के आकलन तथा नीति निर्माण और कार्यान्वन में कमियों को चिन्हित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर जोर दिया है.

उन्होंने कहा कि ऐसी समिति के निष्कर्ष से कृषि क्षेत्र के भावी विकास के लिए एक सुदृढ़ रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी.

मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान परिषद् की 40वीं बैठक को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि धान-गेहूं की खेती की परंपरागत सोच में बदलाव लाते हुए राज्य के किसानों को समेकित कृषि पद्धति, बागवानी फसल तथा उच्च कीमत वाली नकदी फसलें अपनाने को प्रेरित करना चाहिए.

विश्वविद्यालय में शिक्षकों की घोर कमी की ओर अपना ध्यान आकृष्ट कराये जाने पर उन्होंने कहा कि नियुक्ति के लिए झारखंड लोक सेवा आयोग को अब तक भेजी गयी अधियाचना की प्रति उन्हें शीघ्र भेजी जाए ताकि वह भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने हेतु आयोग के अध्यक्ष से बात कर सकें.

उन्होंने कहा कि बीएयू का परिनियम 3-4 दशक पुराना है, इसमें सुधार-बदलाव सम्बन्धी अनुशंसा के लिए विश्वविद्यालय को शीघ्र एक समिति गठित करनी चाहिए.

अनुशंसा प्राप्त होने के दो महीनों के अंदर सरकार से इसकी स्वीकृति दिलाने का वह प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा बीएयू के शिक्षकों को करियर एडवांसमेंट स्कीम और सातवें वेतनमान का लाभ शीघ्र मिले इसके लिए सरकार गंभीर है और वर्तमान वित्त वर्ष के अंत तक दोनों के संबंध में आदेश निर्गत हो जाने की संभावना है.

राज्य की कृषि निदेशक राखी निशा उरांव ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि, किसानों और कृषक महिलाओं के सशक्तिकरण तथा मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए बीएयू और कृषि विभाग के बीच बेहतर तालमेल और समन्वयन पर जोर दिया.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बेहतर शोध परिणाम के लिए वैज्ञानिकों को प्रायोगिक खेतों में ज्यादा समय देने की सलाह दी.

शिक्षकों की कमी से कामकाज प्रभावित

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 85 प्रतिशत और पदाधिकारियों के 90 प्रतिशत पद रिक्त पड़े हैं, जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है. कुलपति ने कृषि सचिव से जेपीएससी से शिक्षकों की नियमित भर्ती, बीएयू के स्नातकों के नियमित नियोजन तथा शिक्षकों-वैज्ञानिकों के लिए सातवें वेतनमान और करियर एडवांसमेंट स्कीम की स्वीकृति में सहयोग का आग्रह किया.

अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद ने कहा कि राज्य सरकार के पालिसी सपोर्ट, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित आधुनिक तकनीकों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा मेहनतकश किसानों के सतत प्रयासों के कारण पिछले 15-20 वर्षों में राज्य में खाद्यान्न उत्पादन 22 लाख टन से बढ़कर लगभग 50 लाख टन हो गया है और खाद्यान्न के मामले में झारखण्ड अब आत्मनिर्भरता के कगार पर है.

टांड जमीन में बेहतर उत्पादकता के लिए अब किसानों को वहां धान के बजाय मक्का, दलहन और मडुआ लगाने को प्रेरित किया जाएगा.

यह भी पढ़ेंः मतदाता सूची संक्षित विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर DC की बैठक, दिए निर्देश

आईसीएआर के पूर्वी क्षेत्र अनुसंधान परिसर के रांची केंद्र (पलांडू) के पूर्व प्रमुख डॉ शिवेंद्र कुमार तथा हजारीबाग स्थित केन्द्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिव मंगल प्रसाद ने बागवानी फसलों तथा चावल अनुसंधान कार्यक्रमों की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए.

अपर निदेशक अनुसंधान डॉ सुशील प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम का संचालन शशि सिंह ने किया. इस अवसर पर पूर्व अनुसंधान निदशक डॉ जीएस दुबे, डॉ डीके सिंह द्रोण सहित बीएयू के वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे.

कृषि संकाय के विभागाध्यक्षों तथा क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों के सह निदेशकों के पिछले वर्ष की अनुसंधान उपलब्धियों का ब्यौरा रखा. प्रगतिशील कृषक नकुल महतो (पिठोरिया, रांची) तथा ध्रुव नारायण सिंह (पलामू) ने भी अपने विचार रखे .

रांचीः कृषि सचिव अबुबकर सिद्दीकी ने झारखंड में कृषि सम्बन्धी सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों, सरकारी विनियोग, वैज्ञानिकों की आधुनिक तकनीकों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किसानों के प्रयासों के प्रभाव के आकलन तथा नीति निर्माण और कार्यान्वन में कमियों को चिन्हित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर जोर दिया है.

उन्होंने कहा कि ऐसी समिति के निष्कर्ष से कृषि क्षेत्र के भावी विकास के लिए एक सुदृढ़ रोडमैप तैयार करने में मदद मिलेगी.

मंगलवार को बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान परिषद् की 40वीं बैठक को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि धान-गेहूं की खेती की परंपरागत सोच में बदलाव लाते हुए राज्य के किसानों को समेकित कृषि पद्धति, बागवानी फसल तथा उच्च कीमत वाली नकदी फसलें अपनाने को प्रेरित करना चाहिए.

विश्वविद्यालय में शिक्षकों की घोर कमी की ओर अपना ध्यान आकृष्ट कराये जाने पर उन्होंने कहा कि नियुक्ति के लिए झारखंड लोक सेवा आयोग को अब तक भेजी गयी अधियाचना की प्रति उन्हें शीघ्र भेजी जाए ताकि वह भर्ती प्रक्रिया में तेजी लाने हेतु आयोग के अध्यक्ष से बात कर सकें.

उन्होंने कहा कि बीएयू का परिनियम 3-4 दशक पुराना है, इसमें सुधार-बदलाव सम्बन्धी अनुशंसा के लिए विश्वविद्यालय को शीघ्र एक समिति गठित करनी चाहिए.

अनुशंसा प्राप्त होने के दो महीनों के अंदर सरकार से इसकी स्वीकृति दिलाने का वह प्रयास करेंगे. उन्होंने कहा बीएयू के शिक्षकों को करियर एडवांसमेंट स्कीम और सातवें वेतनमान का लाभ शीघ्र मिले इसके लिए सरकार गंभीर है और वर्तमान वित्त वर्ष के अंत तक दोनों के संबंध में आदेश निर्गत हो जाने की संभावना है.

राज्य की कृषि निदेशक राखी निशा उरांव ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि, किसानों और कृषक महिलाओं के सशक्तिकरण तथा मौसम परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए बीएयू और कृषि विभाग के बीच बेहतर तालमेल और समन्वयन पर जोर दिया.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बेहतर शोध परिणाम के लिए वैज्ञानिकों को प्रायोगिक खेतों में ज्यादा समय देने की सलाह दी.

शिक्षकों की कमी से कामकाज प्रभावित

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 85 प्रतिशत और पदाधिकारियों के 90 प्रतिशत पद रिक्त पड़े हैं, जिससे कामकाज प्रभावित हो रहा है. कुलपति ने कृषि सचिव से जेपीएससी से शिक्षकों की नियमित भर्ती, बीएयू के स्नातकों के नियमित नियोजन तथा शिक्षकों-वैज्ञानिकों के लिए सातवें वेतनमान और करियर एडवांसमेंट स्कीम की स्वीकृति में सहयोग का आग्रह किया.

अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद ने कहा कि राज्य सरकार के पालिसी सपोर्ट, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित आधुनिक तकनीकों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा मेहनतकश किसानों के सतत प्रयासों के कारण पिछले 15-20 वर्षों में राज्य में खाद्यान्न उत्पादन 22 लाख टन से बढ़कर लगभग 50 लाख टन हो गया है और खाद्यान्न के मामले में झारखण्ड अब आत्मनिर्भरता के कगार पर है.

टांड जमीन में बेहतर उत्पादकता के लिए अब किसानों को वहां धान के बजाय मक्का, दलहन और मडुआ लगाने को प्रेरित किया जाएगा.

यह भी पढ़ेंः मतदाता सूची संक्षित विशेष पुनरीक्षण अभियान को लेकर DC की बैठक, दिए निर्देश

आईसीएआर के पूर्वी क्षेत्र अनुसंधान परिसर के रांची केंद्र (पलांडू) के पूर्व प्रमुख डॉ शिवेंद्र कुमार तथा हजारीबाग स्थित केन्द्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिव मंगल प्रसाद ने बागवानी फसलों तथा चावल अनुसंधान कार्यक्रमों की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए.

अपर निदेशक अनुसंधान डॉ सुशील प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम का संचालन शशि सिंह ने किया. इस अवसर पर पूर्व अनुसंधान निदशक डॉ जीएस दुबे, डॉ डीके सिंह द्रोण सहित बीएयू के वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे.

कृषि संकाय के विभागाध्यक्षों तथा क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों के सह निदेशकों के पिछले वर्ष की अनुसंधान उपलब्धियों का ब्यौरा रखा. प्रगतिशील कृषक नकुल महतो (पिठोरिया, रांची) तथा ध्रुव नारायण सिंह (पलामू) ने भी अपने विचार रखे .

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