रामगढ़: जिले के बरलंगा थाना क्षेत्र के लुकैयाटांड़ स्थित दिशोम गुरु शिबू सोरेन के शहीद पिता सोना सोबरन मांझी के शहादत स्थल लुकैयाटांड़ मैदान में 27 नवंबर को शहादत दिवस धूमधाम से मनाया जायेगा, जिसमें झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, नवनिर्वाचित विधायक बसंत सोरेन, दिशोम गुरु शिबू सोरेन सहित कई विधायक और नेता शिरकत करेंगे.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पैतृक आवास में भी तैयारी की जा रही है, क्योंकि सीएम का पूरा परिवार उस दिन जुटेगा. इस वर्ष समारोह में राज्य के सीएम, झामुमो सुप्रीमो सह राज्यसभा सांसद सहित राज्य के कई मंत्री शामिल होंगे. शहादत दिवस समारोह खास इसलिए होता हैं क्योंकि इस दिन क्षेत्र के सभी गरीब बुजुर्ग लोग शहादत दिवस में पहुंचते हैं. यहां आने वाले लोगों को खिचड़ी खिलाया जाता हैं. इसके साथ ही कंबल का भी वितरण होता है. शहादत दिवस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि राज्य के सीएम हेमंत सोरेन और झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ-साथ नवनिर्वाचित विधायक बसंत सोरेन भी शिरकत करेंगे. शहादत स्थल के पास कार्यक्रम के बाद वे सभी पैतृक आवास नेमरा भी जाएंगे, जहां सोहराय पर्व में हिस्सा लेंगे.
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कार्यक्रम की तैयारी में जुटे झामुमो के सतीश कुमार ने बताया कि 27 नवंबर को फुटबॉल का फाइनल टूर्नामेंट का आयोजन किया जाएगा, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में सीएम शामिल होंगे. सीएम के आगमन को लेकर खिलाड़ियों में उत्साह हैं. झामुमो के नेता जट्टाधारी साहू ने बताया कि हर वर्ष शहीद सोना सोबरन मांझी का शहादत दिवस मनाते आ रहे हैं. इस बार भी भव्य तरीके से मनाया जायेगा. इस कार्यक्रम में राज्य के सीएम और झामुमो सुप्रीमो शामिल होंगे. शहीद सोना सोबरन एक शिक्षक थे और शिक्षा के क्षेत्र में उनका बहुत नाम रहा. वहीं, जीतलाल टुड्डू ने कहा शहीद सोना सोबरन मांझी का शहादत दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. सीएम की चाची बताती हैं कि मेरा भतीजा हेमंत सोरेन 27 को नेमरा आएगा. हम सभी परिवार एक साथ एक जगह जुटेंगे. सोहराय पर्व भी हैं हमलोग मिलकर खुशी मनाएंगे.
कौन थे सोना सोबरन सोरेन
सोबरन सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दादा थे. उन्होंने ही राज्य में संथाल आदिवासियों को महाजनों से मुक्त कराने का आंदोलन शुरू किया था. दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पिता गोला प्रखंड के नेमरा इलाके के गिने-चुने पढ़े लिखे युवाओं में से एक थे और पेशे से शिक्षक थे. उनका राजनीति में भी दखल था, लेकिन महाजनों-सूदखोरों से उनकी नहीं पटती थी. उस दौर में शोषण का एक आम तरीका यह था कि महाजन जरूरत पड़ने पर सूद पर धान देते और फसल कटने पर डेढ़ गुना वसूलते. एक बार उन्होंने एक महाजन को सरेआम पीटा भी था और इसलिए वे उनकी आंख की किरकिरी बन गए. उन दिनों शिबू सोरेन गोला के एक स्कूल में पढ़ते थे और वहीं होस्टल में अपने भाई राजाराम सोरेन के साथ रहते थे. 27 नवंबर 1957 को शोबरन शिबू के लिए राशन पहुंचाने जा रहे थे, तभी घात लगाकर जंगल में उनकी हत्या कर दी गई थी.