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एक शिक्षक के बेटे से दिशोम गुरु बनने तक कैसा रहा शिबू सोरेन का सफर

शिबू सोरेन 11 जनवरी को अपना 77वां जन्मदिन मना रहे हैं. शिबू सोरेन का सफर बहुत उतार चढ़ाव भरा रहा है. उन्होंने एक शिक्षक के बेटे से दिशोम गुरु तक सफर तय किया. उनके जीवन की प्रमुख बातों को जानने के लिए पूरी खबर पढ़ें.

Shibu Soren Birthday
शिबू सोरेन का सफर
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Published : Jan 11, 2021, 3:22 PM IST

रामगढ़ः दिशोम गुरु के जिक्र के बिना झारखंड की चर्चा पूरी नहीं हो सकती. शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ. उन्होंने ने दसवीं तक पढ़ाई की. शिबू सोरेन ने रूपी सोरेन से विवाह किया और उनके 4 बच्चे हैं. इसमें सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है. हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और अंजली सोरेन उनकी विरासत संभाल रहे हैं.

शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन शिक्षक थे. सूदखोरी और शराबबंदी का विरोध करने पर महाजनों ने 27 नवंबर 1957 को उनकी हत्या करवा दी. इसके बाद शिबू सोरेन ने आदिवासी हितों के लिए संघर्ष शुरू किया. 1970 में उन्होंने महाजनों के खिलाफ धान काटो आंदोलन चलाया. आदिवासियों की जमीन को धोखे से हड़पने वाले जमींदारों के खेतों की फसल को वो सामूहिक ताकत के दम पर काटने लगे. इसके बाद उन्होंने साल1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन फैसला लिया. इसी दौरान उन्होंने अलग झारखंड आंदोलन को फिर से हवा दी. 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो इंदिरा गांधी ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था. शिबू सोरेन ने तब आत्मसमर्पण कर दिया.

शिबू सोरेन का सफर
शिबू सोरेन का सफर

तीन बार संभाली मुख्यमंत्री की कुर्सी

1977 में शिबू सोरेन सियासत की तरफ मुड़े लेकिन टुंडी से विधानसभा चुनाव हार गए. फिर उन्होंने संताल को अपनी कर्मभूमी चुना. 1980 में उन्होंने दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले सांसद बने. वो यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं. 2002 और 2020 में वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे. यूपीए सरकार में 23 मई 2004 को शिबू सोरेन कोल और खनन मंत्री बनाए गए थे. उन्होंने तीन बार झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री पद भी संभाला लेकिन कभी भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. विधानसभा चुनाव 2005 में राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता भेजा. 2 मार्च 2005 को वे सीएम बनाए गए लेकिन जरूरी विधायकों की संख्या नहीं हासिल करने पर 10 दिन बाद ही 12 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सांसद रहते हुए शिबू सोरेन 27 अगस्त 2008 को दोबारा सीएम की गद्दी पर बैठे. लेकिन एक परीक्षा अब भी पास करना बाकी था. झटका तब लगा जब वे 8 जनवरी को तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गए. नतीजतन 144 दिनों बाद 18 जनवरी 2009 को सरकार गिर गई और झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. शिबू सोरेन को तीसरी बार सीएम बनने का मौका 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक 152 दिनों के लिए मिला. तब केंद्र में बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.

ये भी पढ़ें-लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि, कई मंत्री-नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

गुरुजी कैसे बने शिबू सोरेन

शिबू सोरेन को सबसे पहले धनबाद जिले के उपायुक्त केबी सक्सेना ने गुरुजी कहकर संबोधित किया था. कहा जाता है कि केबी सक्सेना बेहद ईमानदार आईएएस अफसर के तौर पर जाने जाते थे. उन्होंने एक बार शिबू सोरेन के टुंडी स्थित आश्रम का दौरा किया और वहां बच्चों, आदिवासियों के हित में किए जा रहे काम, पाठशाला और शराबबंदी कराते देख उन्हें गुरुजी कह कर संबोधित किया. इसके बाद शिबू सोरेन गुरुजी के नाम से मशहूर हो गए.

गुरुजी का विवादों से भी नाता कम नहीं रहा. 23 जनवरी 1975 को जामताड़ा जिले के चिरूडीह गांव में दिकू यानी बाहरी लोगों के विरोध के दौरान हिंसा में 11 लोग मारे गए थे. इस मामले में शिबू सोरेन सहित 68 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इसके साथ ही यूपीए सरकार में कोयला मंत्री रहने के दौरान उन पर अपने निजी सचिव शशि नाथ झा की हत्या का भी आरोप लगा, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. शिबू सोरेन का सफरनामा उतार-चढ़ाव भरा और प्रेरणादायी रहा है.

रामगढ़ः दिशोम गुरु के जिक्र के बिना झारखंड की चर्चा पूरी नहीं हो सकती. शिबू सोरेन को आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ. उन्होंने ने दसवीं तक पढ़ाई की. शिबू सोरेन ने रूपी सोरेन से विवाह किया और उनके 4 बच्चे हैं. इसमें सबसे बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है. हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन और अंजली सोरेन उनकी विरासत संभाल रहे हैं.

शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन शिक्षक थे. सूदखोरी और शराबबंदी का विरोध करने पर महाजनों ने 27 नवंबर 1957 को उनकी हत्या करवा दी. इसके बाद शिबू सोरेन ने आदिवासी हितों के लिए संघर्ष शुरू किया. 1970 में उन्होंने महाजनों के खिलाफ धान काटो आंदोलन चलाया. आदिवासियों की जमीन को धोखे से हड़पने वाले जमींदारों के खेतों की फसल को वो सामूहिक ताकत के दम पर काटने लगे. इसके बाद उन्होंने साल1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन फैसला लिया. इसी दौरान उन्होंने अलग झारखंड आंदोलन को फिर से हवा दी. 25 जून 1975 को जब आपातकाल की घोषणा हुई तो इंदिरा गांधी ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था. शिबू सोरेन ने तब आत्मसमर्पण कर दिया.

शिबू सोरेन का सफर
शिबू सोरेन का सफर

तीन बार संभाली मुख्यमंत्री की कुर्सी

1977 में शिबू सोरेन सियासत की तरफ मुड़े लेकिन टुंडी से विधानसभा चुनाव हार गए. फिर उन्होंने संताल को अपनी कर्मभूमी चुना. 1980 में उन्होंने दुमका से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के पहले सांसद बने. वो यहां से 8 बार सांसद रह चुके हैं. 2002 और 2020 में वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे. यूपीए सरकार में 23 मई 2004 को शिबू सोरेन कोल और खनन मंत्री बनाए गए थे. उन्होंने तीन बार झारखंड राज्य के मुख्यमंत्री पद भी संभाला लेकिन कभी भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. विधानसभा चुनाव 2005 में राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने का न्योता भेजा. 2 मार्च 2005 को वे सीएम बनाए गए लेकिन जरूरी विधायकों की संख्या नहीं हासिल करने पर 10 दिन बाद ही 12 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सांसद रहते हुए शिबू सोरेन 27 अगस्त 2008 को दोबारा सीएम की गद्दी पर बैठे. लेकिन एक परीक्षा अब भी पास करना बाकी था. झटका तब लगा जब वे 8 जनवरी को तमाड़ विधानसभा उपचुनाव हार गए. नतीजतन 144 दिनों बाद 18 जनवरी 2009 को सरकार गिर गई और झारखंड में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. शिबू सोरेन को तीसरी बार सीएम बनने का मौका 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक 152 दिनों के लिए मिला. तब केंद्र में बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और राज्य में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.

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गुरुजी कैसे बने शिबू सोरेन

शिबू सोरेन को सबसे पहले धनबाद जिले के उपायुक्त केबी सक्सेना ने गुरुजी कहकर संबोधित किया था. कहा जाता है कि केबी सक्सेना बेहद ईमानदार आईएएस अफसर के तौर पर जाने जाते थे. उन्होंने एक बार शिबू सोरेन के टुंडी स्थित आश्रम का दौरा किया और वहां बच्चों, आदिवासियों के हित में किए जा रहे काम, पाठशाला और शराबबंदी कराते देख उन्हें गुरुजी कह कर संबोधित किया. इसके बाद शिबू सोरेन गुरुजी के नाम से मशहूर हो गए.

गुरुजी का विवादों से भी नाता कम नहीं रहा. 23 जनवरी 1975 को जामताड़ा जिले के चिरूडीह गांव में दिकू यानी बाहरी लोगों के विरोध के दौरान हिंसा में 11 लोग मारे गए थे. इस मामले में शिबू सोरेन सहित 68 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इसके साथ ही यूपीए सरकार में कोयला मंत्री रहने के दौरान उन पर अपने निजी सचिव शशि नाथ झा की हत्या का भी आरोप लगा, लेकिन हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. शिबू सोरेन का सफरनामा उतार-चढ़ाव भरा और प्रेरणादायी रहा है.

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