रामगढ़: रामगढ़ कैंट में सिख रेजीमेंट (Sikh Regiment) ने शनिवार को को अपनी स्थापना के 175 साल पूरे किए. इस दौरान रेजीमेंट के रामगढ़ कैंट में एक समारोह का आयोजन किया गया. इसकी शुरुआत रेजिमेंट के युद्ध स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुई. इसके बाद वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सिख रेजिमेंट के कर्नल लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने सैनिक सम्मेलन (Sainik Sammelan) का आयोजन किया.
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विडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन, कर्नल ऑफ द सिख रेजीमेंट द्वारा सैनिक सम्मेलन को सम्बोधित किया. लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन, कर्नल ऑफ द सिख रेजीमेंट ने इस दिन को यादगार बनाने के लिए 'फर्स्ट डे कवर' जारी किया, साथ ही 'सिक्ख' पत्रिका का विमोचन और 'डोडरन्सबीसेंटेनियल' सिल्वर ट्रॉफी का अनावरण भी किया.
सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन को 30 जुलाई 1846 को XIV फिरोजपुर सिख के रूप में स्थापित किया गया था. रेजीमेंट ने स्वतंत्रता पूर्व युग में जिसमें प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध भी शामिल हैं. कई सफल लड़ाइयां लड़ी हैं. सारागढ़ी की लड़ाई अभी भी 'अंतिम सांस-अंतिम गोली' के लक्ष्य को चरितार्थ करते हुए अदम्य साहस के प्रदर्शन के साथ कठिन लड़ाई मानी जाती है. इस युद्ध में सिख रेजिमेंट के सिर्फ 21 सैनिकों ने 10,000 अफगानों से लोहा लिया था. इस रेजीमेंट को न केवल देश की बल्कि पूरे राष्ट्रमंडल में सर्वोच्च अलंकृत रेजीमेंट होने का सम्मान प्राप्त है.
इस रेजीमेंट ने आजादी के बाद हर उस लड़ाई में अपनी ताकत साबित की है. जिसमें देश ने बड़ी जीत हासिल की है. रेजीमेंट की एक बटालियन 27 अक्टूबर 47 को शत्रुओं के जाल से मुक्त कराने के लिए जहाज द्वारा श्रीनगर पहुंचने वाली पहली बटालियन का गौरव प्राप्त है. जिस कारण उसे 'घाटी के रक्षक' की उपाधि से भी नवाजा गया है.
'ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेवेस्ट' यानि शूरवीरों के शूरवीर के नाम से जाने जानी वाली सिख रेजीमेंट पलटन ने एक नहीं कई बार अपनी विजय पताका को फहराया है. दो बार इस पलटन को अफगानिस्तान में विजय के लिए 'बैटल ऑनर' के खिताब से नवाजा गया है.