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Palamu News: गढ़वा रोड और बरवाडीह रेलवे स्टेशन के बीच 50 वर्षों में हुए 65 रेल हादसे, फिर भी हादसों से सबक नहीं ले रहा रेलवे

रेल सेफ्टी और यात्रियों की सुरक्षा पर रेल मंत्रालय को तेजी से काम करने की जरूरत है. ओडिशा के बालासोर में भीषण रेल हादसे के बाद देश भर के सभी रेलखंडों में यात्री सुरक्षा को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है. कई रेलखंड दुर्घटना संभावित हैं, जहां रेलवे को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इसमें गढ़वा रोड और बरवाडीह रेलवे खंड भी शामिल हैं. जहां 50 वर्षों में अब तक 65 रेल हादसे हुए हैं.

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Train Accidents In Palamu Division
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Published : Jun 3, 2023, 1:12 PM IST

पलामू: ओडिशा के बालासोर में रेलवे दुर्घटना के बाद एक बार फिर रेल सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं. इस दुर्घटना में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. बताते चलें कि रेलवे का सेंट्रल इंडस्ट्रियल कोर (सीआईसी) सेक्शन जो धनबाद से एमपी के सिंगरौली तक हो कर गुजरती है, इस सेक्शन के अंतर्गत गढ़वा रोड और बरवाडीह रेलवे स्टेशन के बीच का रेल लाइन भी दुर्घटना संभावित लाइन है. इस रेल लाइन पर पिछले 50 वर्षों में 65 रेल हादसे हुए हैं. जबकि दोनों रेलवे स्टेशनों के बीच की दूरी मात्र 60 किलोमीटर है. इन रेल हादसों में 100 से अधिक लोगों की जान गई थी. पलामू प्रमंडल में कई बड़े रेल हादसे हुए हैं. जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी.

ये भी पढ़ें-Garhwa News: एनएचएआई की सेंट्रल टीम ने किया गढ़वा बाईपास का निरीक्षण, अधूरे कार्यो को लेकर केंद्र सरकार को सौंपेगी रिपोर्ट

गढ़वा रोड और डालटनगंज रेल मार्ग पर अब तक हुए रेल हादसेः रेल हादसों का इतिहास की बात करें तो 1986-87 में गढ़वा रोड और डालटनगंज रेलवे स्टेशन के बीच टाटा-जम्मूतवी एक्सप्रेस अमानत नदी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. इस दुर्घटना में 40 से अधिक रेल यात्रियों की मौत हुई थी. इस दुर्घटना में शिकार एक महिला के जेवरात के लिए उसकी अंगुली काट दी गई थी. वहीं 1991-92 में चोपन पैसेंजर और मालगाड़ी की टक्कर हुई थी. इस दुर्घटना में भी 20 से अधिक लोगों की जान गई थी. वहीं 1995-96 में मंगरा के पास चोपन पैसेंजर फिर से दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी. 2003-04 में मंगरा रेलवे स्टेशन के पास ही फिर से रेल हादसा हुआ था, जिसमें तीन मजदूरों की मौत हो गई थी. इनमें दो मजदूरों का शव निकाल लिया गया था, जबकि तीसरे शव को निकालने में 96 घंटे लगे थे.

एंटी कोलिजन डिवाइस लगाने का कार्य धीमा: रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एंटी कोलिजन डिवाइस लगाया जाए रहा है. इस डिवाइस की खासियत यह है कि सामने आ रही ट्रेन को डिवाइस पकड़ लेता है और 600 मीटर पहले ट्रेन रुक जाती है. एक पूर्व टॉप रेल अधिकारी ने बताया कि इसका ट्रॉयल काफी अच्छा रहा है, लेकिन इसके लगाने की रफ्तार काफी धीमी है. इस डिवाइस को ट्रेनों में तेजी से लगाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हाल के दिनों में ट्रेनों की स्पीड बढ़ाई गई है, लेकिन उसके मुताबिक पटरी की चौड़ाई और अन्य चीजों को अपग्रेड नहीं किया गया है. यही वजह है कि कई जगह दुर्घटना की आशंका बनी हुई रहती है.

कई रेलवे पुल 100 वर्ष से भी अधिक पुरानेः धनबाद रेल डिवीजन पलामू के इलाके में पहली रेल लाइन 1903 में बिछाई गई थी. उस दौरान कई नदियों पर पुल का निर्माण किया गया था. 115 साल पुराने रेलवे पुलों पर आज भी ट्रेनें गुजर रही हैं. कई जगहों पर रेलवे ने स्पीड लिमिट भी तय किया है. यह स्पीड लिमिट 25 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से तय की गई है. कई जगह पर समय के साथ स्पीड लिमिट को बदला जाता है. 1903 के बाद से अब तक 15 से अधिक बार रेलवे पटरी को बदला गया है. हालांकि थर्ड लाइन को छोड़ दिया जाए तो एक भी नए पुल का निर्माण नहीं किया गया है.

पलामू: ओडिशा के बालासोर में रेलवे दुर्घटना के बाद एक बार फिर रेल सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं. इस दुर्घटना में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. बताते चलें कि रेलवे का सेंट्रल इंडस्ट्रियल कोर (सीआईसी) सेक्शन जो धनबाद से एमपी के सिंगरौली तक हो कर गुजरती है, इस सेक्शन के अंतर्गत गढ़वा रोड और बरवाडीह रेलवे स्टेशन के बीच का रेल लाइन भी दुर्घटना संभावित लाइन है. इस रेल लाइन पर पिछले 50 वर्षों में 65 रेल हादसे हुए हैं. जबकि दोनों रेलवे स्टेशनों के बीच की दूरी मात्र 60 किलोमीटर है. इन रेल हादसों में 100 से अधिक लोगों की जान गई थी. पलामू प्रमंडल में कई बड़े रेल हादसे हुए हैं. जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी.

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गढ़वा रोड और डालटनगंज रेल मार्ग पर अब तक हुए रेल हादसेः रेल हादसों का इतिहास की बात करें तो 1986-87 में गढ़वा रोड और डालटनगंज रेलवे स्टेशन के बीच टाटा-जम्मूतवी एक्सप्रेस अमानत नदी के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. इस दुर्घटना में 40 से अधिक रेल यात्रियों की मौत हुई थी. इस दुर्घटना में शिकार एक महिला के जेवरात के लिए उसकी अंगुली काट दी गई थी. वहीं 1991-92 में चोपन पैसेंजर और मालगाड़ी की टक्कर हुई थी. इस दुर्घटना में भी 20 से अधिक लोगों की जान गई थी. वहीं 1995-96 में मंगरा के पास चोपन पैसेंजर फिर से दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी. 2003-04 में मंगरा रेलवे स्टेशन के पास ही फिर से रेल हादसा हुआ था, जिसमें तीन मजदूरों की मौत हो गई थी. इनमें दो मजदूरों का शव निकाल लिया गया था, जबकि तीसरे शव को निकालने में 96 घंटे लगे थे.

एंटी कोलिजन डिवाइस लगाने का कार्य धीमा: रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एंटी कोलिजन डिवाइस लगाया जाए रहा है. इस डिवाइस की खासियत यह है कि सामने आ रही ट्रेन को डिवाइस पकड़ लेता है और 600 मीटर पहले ट्रेन रुक जाती है. एक पूर्व टॉप रेल अधिकारी ने बताया कि इसका ट्रॉयल काफी अच्छा रहा है, लेकिन इसके लगाने की रफ्तार काफी धीमी है. इस डिवाइस को ट्रेनों में तेजी से लगाने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि हाल के दिनों में ट्रेनों की स्पीड बढ़ाई गई है, लेकिन उसके मुताबिक पटरी की चौड़ाई और अन्य चीजों को अपग्रेड नहीं किया गया है. यही वजह है कि कई जगह दुर्घटना की आशंका बनी हुई रहती है.

कई रेलवे पुल 100 वर्ष से भी अधिक पुरानेः धनबाद रेल डिवीजन पलामू के इलाके में पहली रेल लाइन 1903 में बिछाई गई थी. उस दौरान कई नदियों पर पुल का निर्माण किया गया था. 115 साल पुराने रेलवे पुलों पर आज भी ट्रेनें गुजर रही हैं. कई जगहों पर रेलवे ने स्पीड लिमिट भी तय किया है. यह स्पीड लिमिट 25 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से तय की गई है. कई जगह पर समय के साथ स्पीड लिमिट को बदला जाता है. 1903 के बाद से अब तक 15 से अधिक बार रेलवे पटरी को बदला गया है. हालांकि थर्ड लाइन को छोड़ दिया जाए तो एक भी नए पुल का निर्माण नहीं किया गया है.

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