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Land Dispute: 60 के दशक से जारी है 73 हजार एकड़ जमीन का विवाद, गहराने लगी है कागजातों की समस्या, कई जमींदारों की जमीन की हो गई बंदोबस्ती - जमीन के कागजातों की समस्या

झारखंड-बिहार की सीमा से सटे क्षेत्रों में 60 के दशक से जमीन विवाद जारी है. 73 हजार एकड़ जमीन का मामला करीब 58 सालों से न्यायालय में लंबित है. किसी के पास जमीन है तो कागज नहीं हैं. वहीं किसी के पास कागजात तो हैं, लेकिन जमीन किसी और को बंदोबस्त है. ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को सरकारी सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है.

Land Dispute in Palamu
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Published : Feb 8, 2023, 7:00 PM IST

पलामू: झारखंड-बिहार सीमावर्ती क्षेत्रों में जमीन विवाद एक बड़ी समस्या है. जमीन की समस्या के कारण नक्सल के साथ-साथ कई अपराधिक घटनाएं भी होती रही है. 60 के दशक में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए सीलिंग एक्ट को लागू किया गया था. इस दौरान कई जिलों मे सीलिंग एक्ट लागू की गई थी. 1961 में सीलिंग एक्ट के माध्यम से भूमिहिनों की जमीन मिलने वालों का रकबा करीब 73 हजार एकड़ है. इसके विरोध में कई राजघराने और जमींदार परिवार कोर्ट गए थे. कई दशक के बाद आज भी यहां जमीन विवाद जारी है.

ये भी पढ़ें: Clash Over Land Dispute: जमीन विवाद में पुलिस के सामने भिड़े दो पक्ष, झामुमो उपाध्यक्ष ने की कड़ी कार्रवाई की मांग

सीलिंग एक्ट के माध्यम से लोगों को जमीन तो मिली, लेकिन उनके कागजात नहीं मिले. कई लोगों को कागजात मिले, लेकिन कब्जा नहीं मिला. हालांकि, बिहार के अरवल, जहानाबाद, गया, रोहतास के कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों को कागजात मिले हैं, लेकिन झारखंड के पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में सैकड़ों लोगों को जमीन संबंधी कागजात नहीं मिले हैं. 1969 के दौर से वामपंथी संगठनों ने जमीन को लेकर आंदोलन शुरू किया था.

सीपीआई के राज्य सचिव रहे केडी सिंह बताते थे कि वह दौर था जब बड़े जमींदारों खिलाफ आंदोलन शुरू हुए थे. बड़े पैमाने पर लोगों को जमींदारों से जमीन छीन कर भूमिहीनों के बीच दिए गए थे. उस दौर में हर इलाके में एक संघर्ष शुरू हुआ था और जिन्हें जनसमर्थन मिल रहा था. यह संघर्षों का दौर 90 के दशक तक जारी रहा था. वह बताते हैं कि कम्युनिस्टों के अलावा, उसके संस्थाओं ने भी जमीनी विवाद की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. लोगों का जमीन पर तो कब्जा है, लेकिन उन्हें कागजात नहीं मिले हैं. नतीजा है कि उन्हें कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. लोग जमीनों के कागजात के लिए कई दरवाजे खटखटा रहे हैं.

कई जमींदारों के सिलिंग एक्ट से बाहर के जमीन को कर दिया बंदोबस्त: सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद कई जमींदारों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. एक लंबे दौर के गुजर जाने के बाद कई जमींदारो के जमीन जो सिलिंग एक्ट से बाहर था, उसे बंदोबस्त कर दिया गया. पलामू के मनातू मौआर के सचिंद्रजीत सिंह बताते है कि सीलिंग एक्ट में उनकी बहुत सारी जमीनें गई थी, लेकिन सीलिंग एक्ट से कई जमीन बाहर थी. इन जमीनों को भी अलग-अलग रैयतों को बंदोबस्त कर दिया गया है. जमीन के कागजात उनके पास हैं, लेकिन जमीन किसी और को बंदोबस्त कर दिए गए हैं.

क्या था सिलिंग एक्ट में प्रावधान: जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए 1961 में सीलिंग एक्ट को लागू किया गया था. इस एक्ट के लागू होने के बाद एक परिवार को 15 एकड़ से अधिक सिंचित भूमि रखने का अधिकार नहीं था. गैर सिंचित क्षेत्र का रकबा 18 एकड़ तक किया गया था.

पलामू: झारखंड-बिहार सीमावर्ती क्षेत्रों में जमीन विवाद एक बड़ी समस्या है. जमीन की समस्या के कारण नक्सल के साथ-साथ कई अपराधिक घटनाएं भी होती रही है. 60 के दशक में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए सीलिंग एक्ट को लागू किया गया था. इस दौरान कई जिलों मे सीलिंग एक्ट लागू की गई थी. 1961 में सीलिंग एक्ट के माध्यम से भूमिहिनों की जमीन मिलने वालों का रकबा करीब 73 हजार एकड़ है. इसके विरोध में कई राजघराने और जमींदार परिवार कोर्ट गए थे. कई दशक के बाद आज भी यहां जमीन विवाद जारी है.

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सीलिंग एक्ट के माध्यम से लोगों को जमीन तो मिली, लेकिन उनके कागजात नहीं मिले. कई लोगों को कागजात मिले, लेकिन कब्जा नहीं मिला. हालांकि, बिहार के अरवल, जहानाबाद, गया, रोहतास के कई ऐसे इलाके हैं, जहां लोगों को कागजात मिले हैं, लेकिन झारखंड के पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में सैकड़ों लोगों को जमीन संबंधी कागजात नहीं मिले हैं. 1969 के दौर से वामपंथी संगठनों ने जमीन को लेकर आंदोलन शुरू किया था.

सीपीआई के राज्य सचिव रहे केडी सिंह बताते थे कि वह दौर था जब बड़े जमींदारों खिलाफ आंदोलन शुरू हुए थे. बड़े पैमाने पर लोगों को जमींदारों से जमीन छीन कर भूमिहीनों के बीच दिए गए थे. उस दौर में हर इलाके में एक संघर्ष शुरू हुआ था और जिन्हें जनसमर्थन मिल रहा था. यह संघर्षों का दौर 90 के दशक तक जारी रहा था. वह बताते हैं कि कम्युनिस्टों के अलावा, उसके संस्थाओं ने भी जमीनी विवाद की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. लोगों का जमीन पर तो कब्जा है, लेकिन उन्हें कागजात नहीं मिले हैं. नतीजा है कि उन्हें कई सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. लोग जमीनों के कागजात के लिए कई दरवाजे खटखटा रहे हैं.

कई जमींदारों के सिलिंग एक्ट से बाहर के जमीन को कर दिया बंदोबस्त: सीलिंग एक्ट लागू होने के बाद कई जमींदारों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा है. एक लंबे दौर के गुजर जाने के बाद कई जमींदारो के जमीन जो सिलिंग एक्ट से बाहर था, उसे बंदोबस्त कर दिया गया. पलामू के मनातू मौआर के सचिंद्रजीत सिंह बताते है कि सीलिंग एक्ट में उनकी बहुत सारी जमीनें गई थी, लेकिन सीलिंग एक्ट से कई जमीन बाहर थी. इन जमीनों को भी अलग-अलग रैयतों को बंदोबस्त कर दिया गया है. जमीन के कागजात उनके पास हैं, लेकिन जमीन किसी और को बंदोबस्त कर दिए गए हैं.

क्या था सिलिंग एक्ट में प्रावधान: जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के लिए 1961 में सीलिंग एक्ट को लागू किया गया था. इस एक्ट के लागू होने के बाद एक परिवार को 15 एकड़ से अधिक सिंचित भूमि रखने का अधिकार नहीं था. गैर सिंचित क्षेत्र का रकबा 18 एकड़ तक किया गया था.

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