पलामू: वामपंथी विचारधारा के जनक कार्ल मार्क्स की आज(5 मई) 203वीं जयंती है. मार्क्स एक जर्मन दार्शनिक थे. कार्ल मार्क्स की जयंती पर ईटीवी भारत ने वामपंथी विचारक शैलेंद्र कुमार से खास बातचीत की. उन्होंने कार्ल मार्क्स के विचारों को लेकर कई जानकारी दी. इसके साथ ही वामपंथ के कमजोर और मजबूत पहलुओं के बारे में बताया.
शैलेंद्र कुमार ने बताया कि नक्सलवाद को कार्ल मार्क्स के विचारों से जोड़ना कठिन है. नक्सलवाद वाजिब प्रश्न का गैर वाजिब उत्तर है. उन्होंने बताया कि लेनिन ने अपनी किताब में लिखा था उग्रवाद एक बचकाना मार्ग है. इसके बाद कुछ बोलने के लिए नहीं बचता है. नक्सलवाद को कार्ल मार्क्स के विचारों से जोड़ना बेहद ही कठिन है.
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संकट के वक्त बढ़ जाती है मार्क्स की नीतियों की प्रासंगिकता
शैलेंद्र बताते हैं कि जब दुनिया में संकट आती है तब कार्ल मार्क्स के विचारों और उनकी नीतियों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है. वर्तमान कोरोना काल की बात करें या आर्थिक मंदी का दौर, दुनिया में सबसे अधिक कार्ल मार्क्स द्वारा लिखी गई किताब दास कैपिटल बिकी है. उन्होंने कहा कि नए विचारधारा का रूप में उत्पन्न हुआ तो लोग बताने लगे कि कार्ल मार्क्स का अंत होने वाला है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि मार्क्स की प्रासंगिकता और बढ़ गई.
मार्क्स की बातें फुल स्टॉप नहीं
शैलेंद्र ने कहा कि कार्ल मार्क्स के विचार फुल स्टॉप नहीं हैं. समय-समय पर इनके विचार कई रुप में निकल कर सामने आते हैं. समाजवाद के रूप में चीन जैसे देश का निर्माण नहीं किया जा सकता है. चीन में सैनिक शासन है और चीन की हालत सभी को पता है. मार्क्सवाद मनुष्यता की मुक्ति का विराट दर्शन है. भारत जैसे देश में कार्ल मार्क्स की विचारधारा प्रासंगिक है. हालांकि, यह अलग बात है कि धार्मिक जातिगत या अन्य ध्रुवीकरण के कारण विचारधारा मजबूत नहीं हुई है. वामपंथी विचारधारा की देन है कि भारत में खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मनरेगा और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हुए. भारत में वामपंथी विचारधारा के कमजोर होने का विषय एक लंबी बहस है. आज के विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच वामपंथी विचारधारा मजबूत है. इसे पकड़ने में नेतृत्व कमजोर हुआ है. मार्क्स की विचारधारा की प्रासंगिकता हमेशा रहेगी और यह एक परंपरा है जो आगे बढ़ती रहेगी.