पलामूः झारखंड का बूढ़ा पहाड़ मॉडल की पूरे देश भर में चर्चा हो रही है. केंद्र और राज्य की सरकार यह बता रही है कि किस तरह बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त करवाया गया लेकिन इस इलाके में अभी भी कई चुनौतियां हैं.
इसे भी पढ़ें- बरसात के दौरान बूढ़ा पहाड़ इलाके में सुरक्षाबलों की चुनौती, सड़क और पुल को सुरक्षित रखना बड़ा चैलेंज
इसका उदाहरण इलाके में मौजूद 15 किलोमीटर का एक रोड है, इस सड़क पर दो कच्चे पूल भी हैं. 15 किलोमीटर रोड की सुरक्षा में सीआरपीएफ की दो कंपनियां तैनात हैं. हर दो से तीन किलोमीटर को दूरी पर छोटे छोटे पोस्ट बनाए गए हैं ताकि सड़क की निगरानी की जा सके. जिस रोड की बात की जा रही है वो लातेहार के बारेसाढ़ के यादव मोड़ से बूढ़ा पहाड़ के तिसिया तक है. बूढ़ा पहाड़ अभियान के लिए बारेसाढ़ से तिसिया तक कच्चा रोड बनाया गया था जबकि बूढ़ा नदी और एक नाले पर जवानों ने खुद से कच्चा पूल तैयार किया था.
रोड को लैंड माइंस से सुरक्षित रखना बड़ी चुनौतीः बारेसाढ़ से तिसिया तक की सड़क को लैंड माइंस से सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती है. सुरक्षाबल प्रत्येक दो से तीन दिन में रोड की जांच करते हैं. वीआईपी मूवमेंट के दौरान रोड पर दो से तीन कंपनियों को तैनात किया जाता है. यह सड़क पहाड़ों की श्रृंखला और घने जंगलों से भरा हुआ है. इलाके में चल रहे अभियान के क्रम में इस इलाके से दर्जनों लैंड माइंस बरामद हुए थे.
इस रोड के माध्यम से बूढ़ा पहाड़ के नावाटोली और तिसिया में तैनात जवानों कई तरह की सामग्री दी जाती है. मिली जानकारी के अनुसार इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी बेहद ही कम है. सुरक्षाबलों को इलाके में नक्सल अभियान से अधिक रोड को सुरक्षित रखने में ज्यादा ताकत लगानी पड़ रही है. ग्रामीण सुबोध यादव के अनुसार प्रत्येक दो से तीन दिन में रोड की जांच होती है, उनके लिए यह रोड लाइफ लाइन है, इसे पक्का करने की जरूरत है. इसी रोड से ग्रामीण बाजार समेत अन्य इलाकों में आना जाना करते हैं.
बूढ़ा पहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में कई रोड का चयनः सुरक्षाबलों का बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा होने के बाद इलाके में डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की घोषणा की गई. पुलिस की तरफ से कई रोड का चयन किया गया है. बारेसाढ़ से तिसिया तक रोड का चयन भी इसी प्रोजेक्ट के तहत किया गया है. पलामू जोन के आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि इलाके में कई रोड का चयन किया गया है, जिसमें यह रोड भी शामिल है. सीएम हेमंत सोरेन के बूढ़ा पहाड़ दौरा के बाद एक डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की घोषणा हुई थी और इलाके में 200 करोड़ से भी अधिक की धनराशि खर्च करने की योजना तैयार की गयी है.
दिसंबर 2022 में सुरक्षाबलों ने बूढ़ा पहाड़ को कराया था मुक्तः दिसंबर 2022 में बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों के खिलाफ अभियान ऑक्टोपस शुरू किया गया था. सुरक्षाबलों ने बूढ़ा पहाड़ की चोटी पर कब्जा जमाया. बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा जमाने के बाद से इलाके में 5000 से अधिक लैंड माइंस और कई आधुनिक हथियार बरामद हुआ. यह इलाका छत्तीसगढ़ सीमा से सटा हुआ है, करीब तीन दशक तक यहां पर माओवादियों का कब्जा रहा. बूढ़ा पहाड़ का यह इलाका माओवादियों का ट्रेनिंग सेंटर और यूनिफाइड कमांड हुआ करता था.