पलामू: सुखाड़ प्रभावित इलाकों में खेती के नए प्रयोग किसानों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं. पिपरमेंट की खेती से किसानों को दोहरा लाभ हो रहा है. एक तरफ जहां उन्हें नीलगायों की समस्या से राहत मिली है, वहीं दूसरी तरफ उन्हें नकद पैसे भी मिल रहे हैं. ये तब शुरू हुआ जब हुसैनाबाद के दंगवार के रहने वाले किसानों ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के इलाके का दौरा किया. किसानों ने देखा कि बाराबंकी के इलाके में बड़े पैमाने पर पिपरमेंट की खेती होती है और यहां के किसान अच्छी कमाई भी कर रहे हैं.
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2019 में पलामू के हुसैनाबाद में भी किसानों ने बाराबंकी की तर्ज पर पिपरमेंट की खेती शुरू की. अब इलाके में 500 से अधिक किसान पिपरमेंट की खेती कर रहे हैं और प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपये कमा रहे हैं. किसान पिपरमेंट को उत्तर प्रदेश के वाराणसी, नोएडा और दिल्ली के व्यापारियों को बेच रहे हैं. जबकि इसकी खेती से किसानों को नीलगायों की समस्या से भी निजात मिल रही है. नीलगाय पिपरमेंट के पौधे नहीं खाते हैं और इसके गंध से इलाके में भी उनकी मौजूदगी भी नहीं रहती है. जिससे अन्य फसलों को भी नुकसान नहीं हो रहा है.
किसान प्रियरंजन ने की थी शुरुआत, आज सैकड़ों किसान जुड़े: हुसैनाबाद के दंगवार के रहने वाले प्रियरंजन सिंह ने सबसे पहले पिपरमिंट की खेती की शुरूआत की थी. प्रियरंजन सिंह को फायदा होने के बाद अन्य किसानों ने उनकी तरह खेती शुरू कर दी. आज हुसैनाबाद के इलाके में सैकड़ों एकड़ में पिपरमेंट की खेती हो रही है. किसानों ने पिपरमेंट के पौधों से तेल बनाने के लिए प्लांट भी लगाया है. प्रियरंजन सिंह बताते है कि उन्हें इस खेती से काफी फायदा हो रहा है, यह नकदी फसल है. वे बताते है कि पीपरमिंट के पौधों को को प्लांट में पेराई के लिए डाला जाता है, जिससे एक बार मे 30 से 35 लीटर तेल निकलता है. इस तेल को व्यापारी 1400 से 1500 रुपये लीटर खरीदते हैं. उन्होंने बताया कि यह फसल तीन महीने में तैयार हो जाती है. इसके तेल से दर्द निवारक दवा, बाम, इत्र समेत कई दवाएं बनाई जाती है.
नीलगाय से फसलों को बचाने के लिए वरदान हुआ साबित: नीलगाय से फसलों को बचाने के लिए पिपरमेंट की खेती वरदान साबित हो रही है. नीलगाय पिपरमेंट की फसल को नहीं खाते हैं. इसके गंध से नीलगाय दूर भागते हैं ऐसे में वे अन्य फसलों को भी नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं. हुसैनाबाद के किसान अनिल कुमार सिंह और सुरेंद्र कुमार ने बताया कि पहने उनके फसलों को बड़े पैमाने पर नीलगाय नुकसान पहुंचाते थे, लेकिन जब से उन्होंने पिपरमेंट की खेती शुरू की है वे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं.