पलामूः लाल आतंक के तपती धरती से निकला गुड़ कई इलाकों में मिठास को घोल रहा है. कहने का तात्पर्य है ऐसे इलाके जिस इलाके में नक्सल हिंसा चरम पर हुआ करती थी, उस इलाके के लोग अब ईख की खेती कर गुड़ का उत्पादन कर रहे हैं. जिस जमीन का इस्तेमाल माओवादी नक्सल हमले के लिए करते थे, अब उस इलाके की जमीन पर गुड़ का उत्पादन हो रहा है.
हम बात कर रहे हैं पलामू के पांकी, पिपराटांड़ और लातेहार के हेरहंज, बालूमाथ के इलाके की. इन इलाकों में नक्सल के कमजोर होने के बाद बड़े पैमाने पर लोग मुख्यधारा में लौटे हैं. इन इलाकों में किसान ईख की खेती कर रहे हैं और इससे तैयार गुड़ को कई इलाकों में बेच रहे हैं. नक्सलियों के प्रभाव तक यह खेती इलाके में मुश्किल से एक से दो एकड़ में हुआ करती थी, लेकिन अब यह खेती 70 से 80 एकड़ में हो रही है. इलाके में 40 से अधिक परिवार इस खेती से जुड़ कर गुड़ का उत्पादन कर रहे हैं. जिस इलाके में यह खेती विकसित हुई और गुड़ का उत्पादन शुरू हुआ है, वह इलाका पोस्ता की खेती के लिए भी चर्चित रहा है. पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि यह सुखद है कि इलाके में बदलाव हुआ है, इलाके में सुरक्षित माहौल भी तैयार हुआ है. यह प्रशासन की सफलता है. आईजी ने कहा कि किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा.
गुड़ की मिठास बरकरार है, लेकिन बदल गया इलाके का माहौल, कई परिवार हुए स्वावलंबीः पलामू-लातेहार सीमा पर गुड़ के उत्पादन से कई परिवार स्वावलंबी हुए हैं. पलामू के पांकी ताल घाटी के बगल में ईख की खेती कर गुड़ का उत्पादन करने वाले इस्लाम अंसारी बताते हैं कि पहले वह चार से पांच कट्ठा में ईख की खेती करते थे और गुड़ तैयार करते थे. अब करीब पांच से छह एकड़ में खेती कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके गुड़ की मिठास पहले की तरह है लेकिन इलाके का माहौल बदल गया है, उनकी गुड़ अब दूर दूर तक जाती है. वहीं लातेहार के हेरहंज के रहने वाले अखिलेश यादव ने बताया कि नक्सलियों के कमजोर होने के बाद खेती का दायरा बढ़ा है. लेकिन इस बार थोड़ा सुखाड़ का असर हुआ है. जिस कारण गुणवत्ता प्रभावित हुई है. वह अपने गुड़ को चतरा, गढ़वा, लातेहार समेत कई इलाकों में बेचने के लिए भेजते हैं. प्रतिदिन 30 से 35 किलो गुड़ का उत्पादन करते हैं और बाजारों में भेजते हैं.
एक दशक तक पोस्ता की खेती से प्रभावित रहा है इलाका, लेकिन हो रहा बदलावः पलामू का पांकी, पिपराटांड़ और लातेहार का बालूमाथ हेरहंज एक दशक से भी अधिक समय से पोस्ता की खेती से प्रभावित रहा है. इसी इलाके से पोस्ता की खेती शुरुआत हुई थी, लेकिन अब इस इलाके में पोस्ता की खेती बेहद ही कम हो गई है. इलाके में बदलाव शुरू हुआ है नक्सलियों के कमजोर होने के बाद लोग अब परंपरागत खेती की तरफ लौटने लगे हैं. कुछ वर्ष पहले तक प्रतिबंधित नक्सली संगठन टीएसपीसी के संरक्षण में पोस्ता की खेती होती थी, टीएसपीसी का प्रभाव अब इलाके में बेहद कम हो गया है और किसान परंपरागत खेती से जुड़ रहे हैं. पलामू और लातेहार में गुड़ कारोबार काफी बड़ा है. आकंड़ों के मुताबिक पलामू और लातेहार में सालाना 20 से 22 करोड़ रुपये का गुड़ का कारोबार होता है. इलाके में सालाना चार हजार क्विंटल गुड़ की खपत होती है, लेकिन 97 प्रतिशत से भी अधिक गुड़ इलाके में बिहार और यूपी के इलाके से आते हैं.