पलामू: पीटीआर के अधिकारी और कर्मियों को बोमा तकनीक की ट्रेनिंग दी गई. मध्य प्रदेश के कान्हा और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के अधिकारियों से यह ट्रेनिंग मिली है. पलामू टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर, दोनों डिप्टी डायरेक्टर और दो दर्जन से अधिक कर्मी कान्हा और बांधवगढ़ गए थे, जहां सभी तीन दिनों तक रुके थे. वहीं सभी को वन्य जीवों को पकड़ने और ट्रांसलोकेशन के लिए बोमा (BOMA) तकनीक की ट्रेनिंग दी गयी.
दरअसल, पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में हिरण चीतल के लिए सॉफ्ट रिलीज केंद्र बनाया जाना है. वहीं कई गांवों को भी विस्थापित किया जाना है. पलामू टाइगर रिजर्व कई इलाकों में ग्रास लैंड को भी विकसित कर रहा है. हिरण और चीतल को उठा कर दूसरे इलाकों में भेजा जाना है. सॉफ्ट रिलीज सेंटर में हिरण और चीतल को ले जाने के लिए बोमा तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.
पलामू टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक प्रजेश कांत जेना ने बताया कि तीन दिनों तक अधिकारी और कर्मियों को बोमा तकनीक का प्रशिक्षण दिया गया है. इस तकनीक का इस्तेमाल वैज्ञानिक तरीके से वन्यजीवों के ट्रांसलोकेशन, सॉफ्ट रिलीज सेंटर और ग्रास लैंड को विकसित करने में किया जाएगा.
क्या है बोमा तकनीक: बोमा तकनीक दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंची है. बोमा तकनीक के तहत इस प्रभावित इलाके में वी आकार से एक घेरा बनाया जाता है. उसके बाद संबंधित जीवों को हांक कर इलाके से बाहर कर दिया जाता है. वन्य जीव वी के अंदर घिरे रहते हैं और दूसरे इलाके में चले जाते हैं. मध्य प्रदेश में इस तकनीक का इस्तेमाल नीलगाय को भगाने के लिए किया जाता रहा है. एमपी के विभिन्न टाइगर रिजर्व में सॉफ्ट ट्रेनिंग सेंटर में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. नीलगाय को लेकर पलामू के इलाके में भी इस तकनीक को लागू करने की मांग उठ चुकी है. पलामू टाइगर रिजर्व 1129 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इलाकों में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कई बिंदुओं पर कार्य हो रहा है.