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Orange Cultivation In Palamu: पलामू का संतरा देश में बना रहा पहचान, बदल रही सुखाग्रस्त इलाके की तस्वीर - Cultivation of oranges on barren land

पलामू का संतरा देश में पहचान बना रहा है. पलामू में संतरे की खेती यहां के सुखाड़ वाले इलाके की तस्वीर बदल सकती है. साल 2007 में शुरू हुआ प्रयोग अब तक सफल रहा है. वर्तमान समय में पलामू का संतरा बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के इलाके में निर्यात की जा रही है.

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पलामू का संतरा
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Published : Jan 21, 2022, 7:03 PM IST

Updated : Jan 21, 2022, 7:57 PM IST

पलामूः जिला के संतरे की मिठास पूरे देश में पहचान बना रहा हैं. यह संतरा पलामू के सुखाड़ के पहचान बदल सकती है. संतरा की खेती किसानों के आर्थिक हालात को भी बदल सकती है. पलामू के चियांकि में बिरसा कृषि अनुसंधान केंद्र (Birsa Agricultural Research Center) ने रिसर्च सेंटर में 2007 में पहली बार संतरा की खेती के लिए प्रयोग किया गया था. अनुसंधान केंद्र ने बंजर जमीन पर संतरे की खेती शुरू की. यह प्रयोग सफल रहा और अब यहां से लाखों के संतरे उत्पादन हो रहा है. पलामू का संतरा बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़ और एमपी के इलाके में निर्यात की जा रही है. अनुसंधान केंद्र से 2021 में पांच लाख रुपये के संतरे बेचे जा चुके हैं.

इसे भी पढ़ें- लॉकडाउन में छूटी नौकरी तो शुरू किया जैविक खेती, रंग ला रही है मेहनत

पलामू का संतरा देश में पहचान बना रहा है. पलामू में संतरे की खेती यहां के सुखाड़ वाले इलाके की तस्वीर बदल रही है. क्योंकि पलामू की पहचान पूरे देश मे नक्सली हिंसा और सुखाड़ को लेकर बनी हुई है. पिछले दो दशक में पलामू जिला तीन बार अकाल और चार बार सुखाड़ क्षेत्र घोषित हो चुका है. पलामू में संतरे की खेती इस पहचान को बदल सकती है. बिरसा कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद सिंह ने बताया कि पलामू की पुरानी पहचान को संतरे की खेती बदल सकती है. प्रति हेक्टेयर किसान तीन से चार लाख रुपया कमा सकते हैं. पलामू में उपजाया जाने वाला संतरा काफी मीठा है और बाजार में इसकी काफी मांग है. उन्होंने बताया कि पलामू में संतरा, मौसंबी, कीनू के फसल की अच्छी संभावना है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

किसान संतरे की खेती के लिए प्रेरित हो रहेः संतरे की खेती को लेकर पलामू के किसानों में उत्साह है. अनुसंधान केंद्र से निकलकर यह खेती हरिहरगंज, छतरपुर, सतबरवा के इलाके में भी हो रही है. किसान कुतबुद्दीन अंसारी ने बताया कि संतरे की खेती से कई फायदे हैं. संतरे के पेड़ के नीचे दूसरी खेती भी हो सकती है. पेड़ के नीचे चना, अरहर समेत कई फसल लगाई जा सकती है. उन्होंने बताया कि चार वर्ष पहले इसकी शुरूआत की थी, आज उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.

पलामूः जिला के संतरे की मिठास पूरे देश में पहचान बना रहा हैं. यह संतरा पलामू के सुखाड़ के पहचान बदल सकती है. संतरा की खेती किसानों के आर्थिक हालात को भी बदल सकती है. पलामू के चियांकि में बिरसा कृषि अनुसंधान केंद्र (Birsa Agricultural Research Center) ने रिसर्च सेंटर में 2007 में पहली बार संतरा की खेती के लिए प्रयोग किया गया था. अनुसंधान केंद्र ने बंजर जमीन पर संतरे की खेती शुरू की. यह प्रयोग सफल रहा और अब यहां से लाखों के संतरे उत्पादन हो रहा है. पलामू का संतरा बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़ और एमपी के इलाके में निर्यात की जा रही है. अनुसंधान केंद्र से 2021 में पांच लाख रुपये के संतरे बेचे जा चुके हैं.

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पलामू का संतरा देश में पहचान बना रहा है. पलामू में संतरे की खेती यहां के सुखाड़ वाले इलाके की तस्वीर बदल रही है. क्योंकि पलामू की पहचान पूरे देश मे नक्सली हिंसा और सुखाड़ को लेकर बनी हुई है. पिछले दो दशक में पलामू जिला तीन बार अकाल और चार बार सुखाड़ क्षेत्र घोषित हो चुका है. पलामू में संतरे की खेती इस पहचान को बदल सकती है. बिरसा कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद सिंह ने बताया कि पलामू की पुरानी पहचान को संतरे की खेती बदल सकती है. प्रति हेक्टेयर किसान तीन से चार लाख रुपया कमा सकते हैं. पलामू में उपजाया जाने वाला संतरा काफी मीठा है और बाजार में इसकी काफी मांग है. उन्होंने बताया कि पलामू में संतरा, मौसंबी, कीनू के फसल की अच्छी संभावना है.

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किसान संतरे की खेती के लिए प्रेरित हो रहेः संतरे की खेती को लेकर पलामू के किसानों में उत्साह है. अनुसंधान केंद्र से निकलकर यह खेती हरिहरगंज, छतरपुर, सतबरवा के इलाके में भी हो रही है. किसान कुतबुद्दीन अंसारी ने बताया कि संतरे की खेती से कई फायदे हैं. संतरे के पेड़ के नीचे दूसरी खेती भी हो सकती है. पेड़ के नीचे चना, अरहर समेत कई फसल लगाई जा सकती है. उन्होंने बताया कि चार वर्ष पहले इसकी शुरूआत की थी, आज उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है.

Last Updated : Jan 21, 2022, 7:57 PM IST
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