पलामूः बीड़ी पत्ता जिसे हम केंदु पता भी कहते हैं, झारखंड में नक्सली संगठन का बड़ा पोषक तत्व है. बीड़ी पत्ता से नक्सली संगठन और ठेकेदार मालामाल हो गए हैं. लेकिन बीड़ी पत्ता तोड़ने वाले मजदूरों के हालात नहीं बदले हैं. झारखंड सिर्फ कोयला अन्य खनिज पदार्थों के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि यहां की वन संपदा भी करोड़ों रुपये का राजस्व देती है. पूरे देश में झारखंड का बीड़ी पत्ता की सबसे अधिक मांग है. इस बीड़ी पत्ता से नक्सली संगठन करोड़ों की लेवी वसूलते है जबकि इसके ठेकेदार भी करोड़पति हो गए हैं. पलामू का इलाका बीड़ी पत्ता का बड़ा केंद्र रहा है. मार्च से जून के दूसरे सप्ताह तक बीड़ी पत्ता तोड़ी जाती है. इसके बाद पत्तों को सुखाकर उत्तर और दक्षिण भारत के राज्यों में बेचा जाता है. नक्सली संगठन बीड़ी पत्ता के प्रति बैग से लेवी वसूलते हैं.
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पलामू में बीड़ी पत्ता का कारोबार से नक्सली संगठन और ठेकेदार पैसा कमा रहे हैं. लेकिन जहां के केंदु पत्ता मजदूर बदहाल हैं. लेकिन बीड़ी पत्ता से होने वाले लेवी के कारोबार पर पुलिस की पैनी नजर है. पिछले एक दशक में पलामू का माहौल बदल गया है. पुलिस और सुरक्षा बलों के पहुंच हर एक इलाके तक हो गयी है. पलामू रेंज के डीआईजी राजकुमार लकड़ा बताते हैं कि नक्सली संगठनों तक लेवी नहीं पहुंचे इसके लिए पुलिस कार्रवाई कर रही है. उन्होंने बताया कि पुलिस सभी से अपील करती है कि वो नक्सली संगठनों को लेवी नहीं दें, हर इलाके में पुलिस बल मौजूद है. उन्होंने बताया कि पुलिस ने एक कार्य योजना तैयार किया है जिसके तहत लेवी वसूलने वाले के साथ देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. पलामू, लातेहार और चतरा सीमावर्ती इलाके से करीब 30 से 35 लाख बैग बीड़ी पत्ता की तुड़ाई होती है. नक्सल संगठनों में माओवादी 70 से 80, टीएसपीसी 60 से 70 और अन्य संगठन 35 से 40 रुपये प्रति बैग रुपये वसूलते हैं. पलामू में इलाके के नक्सली संगठन 25 से 30 करोड़ रुपये की लेवी वसूलते हैं.