पलामू: हैदरनगर पूर्वी पंचायत के गंजपर टोला में निकलने वाला पहलवानी सिपड़ हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है. सिपड़ के पीछे की कहानी इस पंचायत की पूर्व मुखिया सीमा देवी के परिवार से जुड़ा है. पूर्व मुखिया सीमा देवी ने बताया कि उनके परिवार के पूर्वज दिवगंत भोनू साव अपने जमाने के पहलवान थे. गंजपर टोला में जब फिरोज अंसारी के पूर्वजों ने जब मुहर्रम को लेकर सिपड़ का निर्माण किया तो सिपड़ काफी भारी बन गया. इस कारण सिपड़ को उठाना आम इंसान के बस की बात नहीं थी. जिसके बाद भोनू साव को सिपड़ उठाने के लिए बोला गया. इस वह तैयार हो गए और उन्होंने पहली बारी सिपड़ उठाया. जिसके बाद से भोनू साव के परिवार के लोग ही हैदरनगर में सिपड़ उठाते हैं और इस कारण यहां के सिपड़ का नाम पहलवानी सिपड़ पड़ गया.
पहलवान भोनू साव ने सबसे पहले उठाया था सिपड़ः भोनू साव के बाद उनके पुत्र रामरतन साव सिपड़ उठाते थे. रामरतन साव के बाद वर्तमान में उनके सबसे छोटे पुत्र उमेश साव इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. बताया जाता है कि एक साल मुहर्रम के समय रामरतन साव किसी कार्यवश डाल्टनगंज में ही रह गए थे. ऐसे में सिपड़ को उठाकर मिलनी और पहलाम कराने की समस्या उत्पन्न हो गई थी. अंत में इसकी खबर रामरतन साव को दी गई. जिसके बाद वह मालगाड़ी से हैदरनगर पहुंचे थे. उनके पहुंचने के बाद सिपड़ की मिलनी हुई थी. जानकारी के अनुसार गंजपर टोला में सिपड़ का निर्माण होता है और 9वीं मुहर्रम की रात गंजपर में ही दोनों समुदाय के हजारों लोग फातेहा कराते हैं. इस दौरान दोनों समुदाय के लोग मन्नतें मांगते हैं. मन्नत पूरा होने पर सोने-चांदी के चिराग, दुपट्टा आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है. यहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोग सिरनी चढ़ाते आए हैं और फातिहा कराते आए हैं.
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है पहलवानी सिपड़ः बताते चलें कि इस वर्ष भी सिपड़ निर्मित स्थल पर ही रखा गया. जहां फातिहा की रस्म दोनों समुदाय के लोगों ने पूरी की. फातेहा के बाद देर रात गाजे-बाजे के साथ सिपड़ को परंपरा के मुताबिक रामरतन साव के घर की चहारदीवारी में रखा गया. जहां पहुंचकर अकीदतमंदों हर वर्ष की तरह फातेहा दिया. मुहर्रम की 10वीं शनिवार की सुबह रामरतन साव के आवासीय परिसर से सिपड़ को उठाया गया और अन्य अखाड़ों के साथ भाई बिगहा स्थित इमामबाड़ा के समीप चिरागन सिपड़ से मिलनी कराई गई.
इस वर्ष उमेश साव ने उठाय सिपड़ः वर्तमान में रामरतन साव काफी बुजुर्ग हो चुके हैं. इसलिए परंपरा के मुताबिक उनके पुत्र उमेश साव ने सिपड़ को भांजने और मिलनी कराने की रस्म अदा की. इस दृश्य को देखने प्रखंड के कई गांवों के लोग पहुंचे थे. सिपड़ को मिलनी के बाद अन्य अखाड़ों के साथ बाजार में घूमाया गया. जिसके बाद सिपड़ को वापस रामरतन साव के घर की चहारदीवारी में रखा गया. इस बीच लोगों का आना-जाना लगा रहा. वहीं रामरतन साव का परिवार सिपड़ की श्रद्धा के साथ देखभाल किया और अन्य व्यवस्था में लगे रहे. बाजार की पहलवानी सिपड़ और भाई बिगहा की चिरागन सिपड़ का 10वीं को मिलन के बाद दोनों को अपनी जगह स्थापित कर दिया जाता है. इन दोनों का पहलाम मुहर्रम की 11वीं को परंपरागत हथियारों की खेलकूद प्रतियोगिता के बाद होता है.