ETV Bharat / state

पलामू के इन जगहों में निकलता है मोहर्रम का खास जुलूस, कर्बला के शहीदों को करते हैं याद

मुस्लिम समुदाय में मोहर्रम को लेकर तैयारी तेज हो गई है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार नए साल के पहले माह में मोहर्रम को शहादत के महीने के रूप में मनाया जाता है. पलामू जिले के हुसैनाबाद और हैदरनगर में मोहर्रम को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं.

मुस्लिम समुदाय के लोग
author img

By

Published : Sep 2, 2019, 6:57 PM IST

पलामू: मोहर्रम को लेकर मुस्लिम समुदाय को लोगों ने तैयारी तेज कर दी है. इस्लामिक कैलेंडर के पहले माह मोहर्रम को शहादत का महीना कहा गया है. दुनियाभर में मुसलमान इस माह को सादगी और इबादत के साथ गुजारते हैं. जिसको लेकर जिले के हुसैनाबाद और हैदरनगर में मुस्लिम समुदाय के लोग शुरुआती 2 महीने 8 दिन तक कोई शुभ कार्य नहीं करते हैं.

देखें पूरी खबर

पलामू के इन जगहों में मोहर्रम मनाने का अंदाज है अनोखा

हुसैनाबाद और हैदरनगर में मोहर्रम मनाने का अंदाज कुछ खास है. मोहर्रम की चांद रात से ही मजलिसों और नौहा का कार्यक्रम यहां के सभी इमामबारगाहों में चल रहा है. जहां एक तरफ पुरुष और दूसरी तरफ महिलाएं शहीद-ए-कर्बला का जिक्र करते हैं. हुसैनाबाद और हैदरनगर के इलाकों में बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोग निवास करते हैं. जिसके कारण यहां पर मोहर्रम मनाये का अंदाज दूसरी जगह से अलग हो जाता है.

ये भी पढ़ें:- शादी के 22 साल बाद पति ने दिया तलाक, पत्नी ने राज्यपाल और राष्ट्रपति से लगाई न्याय की गुहार

10 साल के बच्चों से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी मनाते है जंजीरी मातम

शिया समुदाय के मुतवल्ली सैयद अयूब हुसैन ने बताया कि मोहर्रम के चांद रात से 2 महीना 8 दिन तक समुदाय की सभी महिलाएं श्रृंगार, चूड़ी, बिंदी नहीं लगाती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी तरह के श्रृंगार नहीं करती हैं. मोहर्रम की चांद रात से पुरूष भी सादगी पूर्ण जीवन जीते हैं. उन्होंने पूरी जानकारी देते हुए बताया कि हुसैनाबाद और हैदरनगर में राष्ट्रीय स्तर के उलेमाओं को भी बुलाया गया है. इस दौरान 13 दिनों तक दिन-रात मजलिस और मर्सिया का कार्यक्रम होता रहता है. मोहर्रम के पांचवें दिन अली-अकबर का ताबूत निकाला जाता है. छठे दिन कुजे का मातम मनाया जाता है. सातवीं को मेंहदी की रस्म अदा होती है. आठवीं को जंजीरी मातम मनाया जाता है, नवमीं को सभी इमामबारगाहों में मजलिस होती है जबकि दसवीं को मोहर्रम की मजलिस और ब्लेड से मातम करते हुए समुदाय के सभी लोग कर्बला तक जाते हैं.

ये भी पढ़ें:- मैं टिकट के पीछे कभी नहीं भागता: मंत्री सीपी सिंह

वहीं, दसवें दिन सभी आलम, सिपर और ताजिया का पहलाम किया जायेगा. इस दौरान समुदाय के लोग जंजीरी मातम मनाएंगे. जिसको देखने के लिए जिले के कोने-कोने से लोग हैदरनगर और हुसैनाबाद पहुंचते हैं. इसके अलावे गढ़वा, बिहार के रोहतास और औरंगाबाद के लोग भी मातमी जुलूस देखने यहां पहुंचते हैं. मुतवल्ली सैयद अयूब हुसैन ने बताया कि कर्बला की जंग में हुसैनियों की तकलीफ का अहसास खुद पर चाकू और ब्लेड चला कर लोग करते हैं. जिसमे 10 साल के बच्चे से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी रहते हैं.

पलामू: मोहर्रम को लेकर मुस्लिम समुदाय को लोगों ने तैयारी तेज कर दी है. इस्लामिक कैलेंडर के पहले माह मोहर्रम को शहादत का महीना कहा गया है. दुनियाभर में मुसलमान इस माह को सादगी और इबादत के साथ गुजारते हैं. जिसको लेकर जिले के हुसैनाबाद और हैदरनगर में मुस्लिम समुदाय के लोग शुरुआती 2 महीने 8 दिन तक कोई शुभ कार्य नहीं करते हैं.

देखें पूरी खबर

पलामू के इन जगहों में मोहर्रम मनाने का अंदाज है अनोखा

हुसैनाबाद और हैदरनगर में मोहर्रम मनाने का अंदाज कुछ खास है. मोहर्रम की चांद रात से ही मजलिसों और नौहा का कार्यक्रम यहां के सभी इमामबारगाहों में चल रहा है. जहां एक तरफ पुरुष और दूसरी तरफ महिलाएं शहीद-ए-कर्बला का जिक्र करते हैं. हुसैनाबाद और हैदरनगर के इलाकों में बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोग निवास करते हैं. जिसके कारण यहां पर मोहर्रम मनाये का अंदाज दूसरी जगह से अलग हो जाता है.

ये भी पढ़ें:- शादी के 22 साल बाद पति ने दिया तलाक, पत्नी ने राज्यपाल और राष्ट्रपति से लगाई न्याय की गुहार

10 साल के बच्चों से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी मनाते है जंजीरी मातम

शिया समुदाय के मुतवल्ली सैयद अयूब हुसैन ने बताया कि मोहर्रम के चांद रात से 2 महीना 8 दिन तक समुदाय की सभी महिलाएं श्रृंगार, चूड़ी, बिंदी नहीं लगाती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी तरह के श्रृंगार नहीं करती हैं. मोहर्रम की चांद रात से पुरूष भी सादगी पूर्ण जीवन जीते हैं. उन्होंने पूरी जानकारी देते हुए बताया कि हुसैनाबाद और हैदरनगर में राष्ट्रीय स्तर के उलेमाओं को भी बुलाया गया है. इस दौरान 13 दिनों तक दिन-रात मजलिस और मर्सिया का कार्यक्रम होता रहता है. मोहर्रम के पांचवें दिन अली-अकबर का ताबूत निकाला जाता है. छठे दिन कुजे का मातम मनाया जाता है. सातवीं को मेंहदी की रस्म अदा होती है. आठवीं को जंजीरी मातम मनाया जाता है, नवमीं को सभी इमामबारगाहों में मजलिस होती है जबकि दसवीं को मोहर्रम की मजलिस और ब्लेड से मातम करते हुए समुदाय के सभी लोग कर्बला तक जाते हैं.

ये भी पढ़ें:- मैं टिकट के पीछे कभी नहीं भागता: मंत्री सीपी सिंह

वहीं, दसवें दिन सभी आलम, सिपर और ताजिया का पहलाम किया जायेगा. इस दौरान समुदाय के लोग जंजीरी मातम मनाएंगे. जिसको देखने के लिए जिले के कोने-कोने से लोग हैदरनगर और हुसैनाबाद पहुंचते हैं. इसके अलावे गढ़वा, बिहार के रोहतास और औरंगाबाद के लोग भी मातमी जुलूस देखने यहां पहुंचते हैं. मुतवल्ली सैयद अयूब हुसैन ने बताया कि कर्बला की जंग में हुसैनियों की तकलीफ का अहसास खुद पर चाकू और ब्लेड चला कर लोग करते हैं. जिसमे 10 साल के बच्चे से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी रहते हैं.

Intro:N


Body: हुसैनाबाद में अलग ढंग से मनाया जाता है मुहर्रम

शहीद ए कर्बला की याद में दो माह आठ दिन नहीं होता है कोई शुभ कार्य
आठवीं और दसवीं मुहर्रम को करते है जंजीर और ब्लेड से मातम
पलामू:ज़िला के हुसैनाबाद और हैदरनगर में मुहर्रम का त्योहार अलग अंदाज में मनाया जाता है। मुहर्रम की चांद रात से मजलिसों और नौहा का कार्यक्रम दिन रात विभिन्न इमामबारगाहों में चल रहा है। एक तरफ पुरुष दूसरी तरफ महिलाये शहीद ए कर्बला का ज़िक्र करते हैं। हुसैनाबाद इलाके में अलग अंदाज में मुहर्रम मनाये जाने का कारण इस इलाके में बड़ी संख्या में शिया समुदाय का होना है। समुदाय के लोग कही रहते काम करते हों, वो मुहर्रम का त्योहार मनाने घर आजाते हैं। समुदाय के मुतवल्ली सैयद अयूब हुसैन ने बताया कि मुहर्रम की चांद रात से 2 महीना 8 दिन समुदाय की सभी महिलायें श्रृंगार ,चूड़ी ,बिंदी नहीं लगती हैं। महिलायें और पुरुष दोनों सादी ज़िन्दगी जीते है। 2 माह 8 दिन बाद समुदाय के लोग घरों में खुशियां मनाते है। इसी दिन से खुशी के सभी कार्य शुरू हो जाते है। उन्होंने पूरी जानकारी देते हुए बताया कि हुसैनाबाद और हैदरनगर में राष्ट्रीय स्तर के उलेमाओं को भी बुलाया गया है। उन्होंने कहा कि 13 दिनों तक रात दिन मजलिस,मर्सिया का कार्यक्रम चलता रहेगा। मुहर्रम की पांचवीं को अली अकबर का ताबूत निकाला जायेगा, छठी को कुजे का मातम होगा, सातवीं को मेंहदी की रस्म अदा की जायेगी, आठवीं को जंजीरी मातम होगा,नवमी को विभिन्न इमामबारगाहों में मजलिस ,दसवीं मुहर्रम को मजलिस और ब्लेड मातम करते हुए समुदाय के सभी लोग कर्बला तक जायेंगे। वही सभी आलम,सिपर और ताज़िया का पहलाम किया जायेगा। समुदाय द्वारा किये जाने वाले जंजीरी मातम को देखने पलामू के कोने कोने के अलावा, गढ़वा, बिहार के रोहतास और औरंगाबाद तक के लोग पहुचते हैं। उन्होंने कहा कि कर्बला की जंग में हुसैनियों की तकलीफ का एहसास खुद पर चाकू और ब्लेड चला कर लोग करते हैं। जिसमे दस साल के बच्चे से लेकर 60 साल के बुजुर्ग भी रहते हैं।देखने वाले हैरान रहते हैं।मगर करने वालों के चहरे पर बल भी नही दिखते। मुहर्रम के त्योहार में इलाका दिन रात शहीद ए कर्बला के जिक्र और नौहा से गुंजायमान है।


Conclusion:N
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.