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स्वतंत्रता सेनानियों के स्मारक हो रहे उपेक्षा के शिकार, स्वाधीनता दिवस पर भी नहीं हुई साफ सफाई, लगा कचरे का अंबार - आजादी का अमृत काल

जिन वीर सपूतों के बलिदान और शहादत के कारण सभी सुख चैन का जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्हीं की पलामू में उपेक्षा की जा रही है. पलामू में बने शहीदों के स्मारकों की स्वतंत्रता दिवस के दिन भी साफ सफाई नहीं की गई. स्मारकों के पास कचरे का अंबार लगा हुआ है.

Memorials of freedom fighters neglect in Palamu
Memorials of freedom fighters neglect in Palamu
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Published : Aug 17, 2023, 6:23 PM IST

जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार

पलामू: आजादी का अमृत काल चल रहा है. इस अवसर पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. आजादी की इस अमृत महोत्सव में केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर कई समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इस दौरान स्वतंत्रता सेनानी और शहीद वीर सपूतों की धरती से मिट्टी भी इकट्ठा की जा रही है. लेकिन, इन्हीं वीर सपूतों की याद में बनाए गए स्मारकों का हाल कैसा है, इसकी सूध लेने वाला कोई नहीं है.

यह भी पढ़ें: Jharkhand News: मेरी माटी मेरा देश कार्यक्रम के तहत झारखंड के कई गांव से इकट्ठा की जा रही मिट्टी, वीर सेनानियों की याद में कार्यक्रम

स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनाए गए स्मारक से अलग कहानी निकल कर सामने आ रही है. स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर भी जहां हर कोई वीर सपूतों को नमन करता है. इस मौके पर भी पलामू में शहीद स्मारकों की सफाई नहीं की गई और तो और इन स्मारकों के अगल-बगल कचरों का अंबार लगा हुआ है.

1973-76 के बीच आजादी के 25 वर्ष पूरे होने पर स्वतंत्रता सेनानियों की याद में उनकी स्मारक बनाई गई थी. यह स्मारक सभी प्रखंड मुख्यालय में बनाई गई थी. इन स्मारकों में भारतीय संविधान की प्रस्तावना के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी अंकित किए गए थे. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में पुरानी जेल सह प्रखंड कार्यालय परिसर के अलावा पांकी, मनातू, बिश्रामपुर समेत कई जगहों पर स्मारक बनाए गए थे. इसके अलावा गढ़वा और लातेहार के कई प्रखंडों में स्मारक बनाए गए थे.

उपेक्षा के शिकार हुए सभी स्मारक: लेकिन विडंबना ये है कि पलामू में स्थित सभी स्मारक उपेक्षा के शिकार हो गए हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी स्मारकों की सफाई नहीं हुई. 1973 में बने इन स्मारकों में कई अशुद्धियां भी हैं. कई स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी गलत लिखे गए हैं. जबकि कई नाम अब छुप गए हैं. यहां तक कि लातेहार जिला का नाम अतिहार लिखा हुआ है. स्वतंत्रता सेनानी गोकुलनाथ वर्मा का नाम गोलू नाथ वर्मा, कृष्णानंद सहाय का नाम कृष्णा नंदन सहाय, नीलकंठ सहायक का नाम निक्कंठ सहाय, तीरथ प्रकाश का नाम रिक्ष प्रकाश लिखा हुआ है. जबकि सुकोमल दत्ता का नाम पेंट से छुप गया है. ऐसे में शहीदों को किस तरह सम्मान दिया जा रहा है, समझा जा सकता है.

जानकारी देते संवाददाता नीरज कुमार

पलामू: आजादी का अमृत काल चल रहा है. इस अवसर पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. आजादी की इस अमृत महोत्सव में केंद्र से लेकर राज्य स्तर पर कई समारोह का आयोजन किया जा रहा है. इस दौरान स्वतंत्रता सेनानी और शहीद वीर सपूतों की धरती से मिट्टी भी इकट्ठा की जा रही है. लेकिन, इन्हीं वीर सपूतों की याद में बनाए गए स्मारकों का हाल कैसा है, इसकी सूध लेने वाला कोई नहीं है.

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स्वतंत्रता सेनानियों की याद में बनाए गए स्मारक से अलग कहानी निकल कर सामने आ रही है. स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर भी जहां हर कोई वीर सपूतों को नमन करता है. इस मौके पर भी पलामू में शहीद स्मारकों की सफाई नहीं की गई और तो और इन स्मारकों के अगल-बगल कचरों का अंबार लगा हुआ है.

1973-76 के बीच आजादी के 25 वर्ष पूरे होने पर स्वतंत्रता सेनानियों की याद में उनकी स्मारक बनाई गई थी. यह स्मारक सभी प्रखंड मुख्यालय में बनाई गई थी. इन स्मारकों में भारतीय संविधान की प्रस्तावना के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी अंकित किए गए थे. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में पुरानी जेल सह प्रखंड कार्यालय परिसर के अलावा पांकी, मनातू, बिश्रामपुर समेत कई जगहों पर स्मारक बनाए गए थे. इसके अलावा गढ़वा और लातेहार के कई प्रखंडों में स्मारक बनाए गए थे.

उपेक्षा के शिकार हुए सभी स्मारक: लेकिन विडंबना ये है कि पलामू में स्थित सभी स्मारक उपेक्षा के शिकार हो गए हैं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी स्मारकों की सफाई नहीं हुई. 1973 में बने इन स्मारकों में कई अशुद्धियां भी हैं. कई स्वतंत्रता सेनानियों के नाम भी गलत लिखे गए हैं. जबकि कई नाम अब छुप गए हैं. यहां तक कि लातेहार जिला का नाम अतिहार लिखा हुआ है. स्वतंत्रता सेनानी गोकुलनाथ वर्मा का नाम गोलू नाथ वर्मा, कृष्णानंद सहाय का नाम कृष्णा नंदन सहाय, नीलकंठ सहायक का नाम निक्कंठ सहाय, तीरथ प्रकाश का नाम रिक्ष प्रकाश लिखा हुआ है. जबकि सुकोमल दत्ता का नाम पेंट से छुप गया है. ऐसे में शहीदों को किस तरह सम्मान दिया जा रहा है, समझा जा सकता है.

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