पलामूः आधुनिकता की दौड़ में हम जीपीएस की बात करते हैं. जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम. इस सिस्टम के माध्यम से हम कहीं भी पहुंच सकते हैं और इलाके की जानकारी ले सकते हैं. लेकिन माओवादियों के पास एक चलता फिरता जीपीएस है. यह जीपीएस एक इंसान है और झारखंड की सरकार ने उस पर पांच लाख रुपए का इनाम भी रखा हुआ है.
ये भी पढ़ेंः कोल्हान में स्पाइक होल के सहारे नक्सली, सुरक्षाबलों के लिए बन रहा परेशानी का सबब!
दरअसल टॉप माओवादी कमांडर प्रदीप सिंह खरवार को नक्सली कमांडरों ने जीपीएस नाम दिया है. प्रदीप सिंह खरवार को लातेहार ,लोहरदगा और बूढ़ापहाड़ के इलाके की एक-एक पहाड़ और जंगल की जानकारी है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदीप सिंह खरवार उर्फ जीपीएस पुलिस के हत्थे चढ़ गया है. हालांकि उसकी गिरफ्तारी को लेकर कोई भी पुलिस अधिकारी पुष्टि नहीं कर रहे हैं. जीपीएस लातेहार के चंदवा के इलाके का रहने वाला है. उसने माओवादी के टॉप कमांडर रवींद्र गंझू और छोटू खरवार के बारे में पुलिस को कई जानकारी दी है. प्रदीप सिंह खरवार उर्फ जीपीएस पर लातेहार, लोहरदगा और बूढ़ापहाड़ के इलाके में कई हमले को अंजाम देने का आरोप है.
बताया जाता है कि जीपीएस जिस पहाड़ से गुजरता था उसके बारे में हर एक जानकारी उसके पास होती थी. वह रास्ता कभी नहीं भटकता था और एक नजर में पहाड़ की ऊंचाई और लंबाई को भांप जाता था. उसे इलाके और इलाके के ग्रामीणों के बारे में एक-एक बात की जानकारी थी. माओवादियों के टॉप कमांडरों ने उसके क्षमता के कारण उसका नाम जीपीएस रख दिया था. एक पूर्व नक्सली उपेंद्र ने बताया कि नक्सलियों में इस तरह की क्षमता वाले बेहद कम लोग होते हैं. दस्ता के चलने के दौरान पहाड़ की ऊंचाई और दूरी को जानना काफी मुश्किल होता है. शायद प्रदीप में कुछ अधिक क्षमता रही होगी, जिसकी वजह से उसका नाम जीपीएस रखा गया होगा.