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ये फूल है क्लाइमेट इंडिकेटर, रामायण में भी है इसके महत्वों का वर्णन, जानिए क्या है वो - kash ke Phool

झारखंड में प्राकृतिक सुंदरता की कोई कमी नहीं है. पहाड़, पठार, झरना, जंगल के सौंदर्य में लिपटा ये प्रदेश अपने आप में मनोरम छटा समेटे हुए है. इसी सुंदरता में चार चांद लगाता कास का फूल, जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है और रामायण में भी इसके महत्वों का वर्णन किया गया है.

know about Climate indicator Kaas flower which importance described in Ramayana
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 12, 2023, 7:29 PM IST

Updated : Sep 12, 2023, 7:51 PM IST

देखें स्पेशल रिपोर्ट

पलामूः प्रकृति ने झारखंड को कई खूबसूरती से नवाजा है. प्रकृति की कुछ खूबसूरती मन को मोहती है लेकिन उसमें एक चेतावनी भी होती है. इसका वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी है. अगर आप झारखंड बिहार के इलाके में रह रहे हैं और जलस्रोतों के अगल बगल से गुजर रहे हैं तो आपको चारों तरफ एक सफेद सी चादर नजर आएगी. यह सफेद चादर है कास के फूल.

इसे भी पढ़ें- Palash Flower in Jharkhand: प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक पलाश का फूल, जानिए आदिवासी संस्कृति में इसका क्या है महत्व

कास के इस फूल का धार्मिक, प्राकृतिक और व्यावसायिक महत्व भी है. कास एक घास की प्रजाति का पौधा है, इसके फूल काफी सुंदर होते हैं. इसकी लंबाई तीन से सात फीट तक होती है. कास फूल का वैज्ञानिक नाम Saccharum spontaneum है. कास का फूल खिलने का मतलब है कि बरसात बूढ़ी हो गई है और मानसून जाने वाला है. भादो का महीना चल रहा है. झारखंड के विभिन्न हिस्सों में कास के फूल लहलहा रहे हैं. कास के फूल खिलने के बाद लोगों को चिंता सताने लगी है कि अब बारिश नहीं होगी. साल 2022 में भी झारखंड सुखाड़ से जूझ रहा था, 2023 में भी बरसात कम हुई है.

पर्यावरणविद प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि कास फूल का वैज्ञानिक महत्व है. कास का फूल एक तरह से क्लाइमेट इंडिकेटर है, इसका फूल लगने के साथ ही यह समझ लेना चाहिए की अब बारिश नहीं होगी. वे बताते हैं कि हाल के दिनों में बड़ा बदलाव हुआ है यह समय से पहले फूल खिलने लगे हैं. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि मानसून की वापसी के बाद कास के फूल खिलते थे लेकिन अब भादो के महीने में फूल खिल गए हैं. अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह की जगह अब सितंबर में ही कास के फूल नजर आने लगे हैं, इससे लोगों को अलर्ट रहने की जरूरत है.

रामचरित मानस में कास के फूल का जिक्रः रामचरित मानस में एक चौपाई लिखी गई है, जिसमें कास के फूल का वर्णन है. रामचरित मानस में लिखा गया है 'फुले कास सकल मही छाई, जनी बरसात प्रकट बुढ़ाई', इसका तात्पर्य यह है कि चारों ओर कास के फूल लग जाए तो समझ लेना चाहिए बरसात बूढ़ी हो गई है. शिक्षाविद परशुराम तिवारी बताते हैं कि कास के फूल का रामचरित मानस में जिक्र है. ये सही है कि इसके फूल आज समय से पहले लग रहे हैं, इसके महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में बारिश बेहद कम हो रही है. परशुराम तिवारी बताते हैं कि आने वाली पीढ़ी इसके महत्वों को कम समझ पाएगी, हमें प्रकृति के प्रति जागरूक होने की जरूरत है. लोगों को पर्यावरण के संरक्षण पर ध्यान देने चाहिए ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे.

कास के फूल का व्यवसाय और धार्मिक कार्यो में भी इस्तेमालः कास के फूल का प्राकृतिक के साथ-साथ व्यावसायिक महत्व भी है. पलामू इलाके में बड़े पैमाने पर कास के फूल से बने हुए झाड़ू की अच्छी बिक्री होती है, इसकी मांग काफी है. नवरात्र के दौरान भी कास और उसके फूल से बनी हुए सामग्री का इस्तेमाल खूब होता है. अंतिम संस्कार के दौरान भी मुखाग्नि देने के लिए कास के पौधे का इस्तेमाल किया जाता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

पलामूः प्रकृति ने झारखंड को कई खूबसूरती से नवाजा है. प्रकृति की कुछ खूबसूरती मन को मोहती है लेकिन उसमें एक चेतावनी भी होती है. इसका वर्णन हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी है. अगर आप झारखंड बिहार के इलाके में रह रहे हैं और जलस्रोतों के अगल बगल से गुजर रहे हैं तो आपको चारों तरफ एक सफेद सी चादर नजर आएगी. यह सफेद चादर है कास के फूल.

इसे भी पढ़ें- Palash Flower in Jharkhand: प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक पलाश का फूल, जानिए आदिवासी संस्कृति में इसका क्या है महत्व

कास के इस फूल का धार्मिक, प्राकृतिक और व्यावसायिक महत्व भी है. कास एक घास की प्रजाति का पौधा है, इसके फूल काफी सुंदर होते हैं. इसकी लंबाई तीन से सात फीट तक होती है. कास फूल का वैज्ञानिक नाम Saccharum spontaneum है. कास का फूल खिलने का मतलब है कि बरसात बूढ़ी हो गई है और मानसून जाने वाला है. भादो का महीना चल रहा है. झारखंड के विभिन्न हिस्सों में कास के फूल लहलहा रहे हैं. कास के फूल खिलने के बाद लोगों को चिंता सताने लगी है कि अब बारिश नहीं होगी. साल 2022 में भी झारखंड सुखाड़ से जूझ रहा था, 2023 में भी बरसात कम हुई है.

पर्यावरणविद प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव ने बताया कि कास फूल का वैज्ञानिक महत्व है. कास का फूल एक तरह से क्लाइमेट इंडिकेटर है, इसका फूल लगने के साथ ही यह समझ लेना चाहिए की अब बारिश नहीं होगी. वे बताते हैं कि हाल के दिनों में बड़ा बदलाव हुआ है यह समय से पहले फूल खिलने लगे हैं. प्रोफेसर डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि मानसून की वापसी के बाद कास के फूल खिलते थे लेकिन अब भादो के महीने में फूल खिल गए हैं. अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह की जगह अब सितंबर में ही कास के फूल नजर आने लगे हैं, इससे लोगों को अलर्ट रहने की जरूरत है.

रामचरित मानस में कास के फूल का जिक्रः रामचरित मानस में एक चौपाई लिखी गई है, जिसमें कास के फूल का वर्णन है. रामचरित मानस में लिखा गया है 'फुले कास सकल मही छाई, जनी बरसात प्रकट बुढ़ाई', इसका तात्पर्य यह है कि चारों ओर कास के फूल लग जाए तो समझ लेना चाहिए बरसात बूढ़ी हो गई है. शिक्षाविद परशुराम तिवारी बताते हैं कि कास के फूल का रामचरित मानस में जिक्र है. ये सही है कि इसके फूल आज समय से पहले लग रहे हैं, इसके महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय में बारिश बेहद कम हो रही है. परशुराम तिवारी बताते हैं कि आने वाली पीढ़ी इसके महत्वों को कम समझ पाएगी, हमें प्रकृति के प्रति जागरूक होने की जरूरत है. लोगों को पर्यावरण के संरक्षण पर ध्यान देने चाहिए ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे.

कास के फूल का व्यवसाय और धार्मिक कार्यो में भी इस्तेमालः कास के फूल का प्राकृतिक के साथ-साथ व्यावसायिक महत्व भी है. पलामू इलाके में बड़े पैमाने पर कास के फूल से बने हुए झाड़ू की अच्छी बिक्री होती है, इसकी मांग काफी है. नवरात्र के दौरान भी कास और उसके फूल से बनी हुए सामग्री का इस्तेमाल खूब होता है. अंतिम संस्कार के दौरान भी मुखाग्नि देने के लिए कास के पौधे का इस्तेमाल किया जाता है.

Last Updated : Sep 12, 2023, 7:51 PM IST
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