पलामूः झारखंड में जमीन विवाद (Land dispute in Jharkhand) बड़ी समस्या है. पलामू में भी अक्सर जमीन विवाद में हिंसक घटनायें सामने आती है. इसके बावजूद जमीन विवाद का निष्पादन नहीं हो रहा है. कुछ ऐसा ही मामला गढ़वा जिले के सुनील मुखर्जी नगर की है. इस गांव को राज्य सरकार ने ही निजी कंपनी के हाथों बेच दिया है. अब गांव के लोग इस लड़ाई को कोर्ट में लड़ रहे हैं.
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अविभाजित बिहार में जमीन की लड़ाई चरम पर थी. इसी दौरान 90 के दशक में वामपंथी संगठनों की मदद से गढ़वा जिले के रमुना प्रखंड में सुनील मुखर्जी नगर को बसाया गया. लेकिन आज सुनील मुखर्जी नगर को राज्य सरकार ने निजी कंपनी को बेच दिया है. सुनील मुखर्जी नगर के लोग फिर जमीन की लड़ाई में उलझ गए हैं. गांव के लोगों ने पलामू प्रमंडल आयुक्त के कोर्ट में केस दर्ज किया है, जहां मामला चल रहा है. सुनील मुखर्जी नगर के रहने वाले धनंजय प्रसाद मेहता कहते हैं कि सरकार ने ही गांव को बेच दिया. इस मामले में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में परिवार को भी नुकशान हुआ है.
सुनील मुखर्जी नगर करीब 465 एकड़ में बसा हुआ है. इस भूखंड पर 250 से अधिक परिवार करीब तीन दशकों से रह रहे हैं. हालांकि, गांव के लोगों के पास कब्जे में जमीन है. लेकिन उनके पास कागजात नहीं है. इससे सड़क, पानी, बिजली जैसे मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है. गांव के मुन्ना और नौरंग पाल कहते हैं कि जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. गांव के लोग दशकों से रह रहे हैं. जमीन की लड़ाई में कई लोगों ने कुर्बानी दी है. जमीन की लड़ाई लड़ने पर आज भी उन्हें उग्रवादी की संज्ञा दी जाती है. नौरंग पाल ने बताया कि गांव को जब कंपनी ने खरीदा तो करीब 6 महीने बाद जानकारी नहीं मिली. कंपनी की ओर से गांव की घेराबंदी करने का प्रयास किया गया तो ग्रामीणों ने विरोध किया.
ग्रामीणों ने बताया कि गांव के लोगों को जमीन के कागजात नहीं है. इससे ग्रामीणों को जरूरी प्रमाण पत्र नहीं बन पाता है. हालांकि, दो दशक पहले गांव के लोगों को सरकारी आवास योजना का लाभ दिया गया था और आज भी कई लोगों को सरकारी योजना का लाभ मिल रहा है. जमीन के कागजात नहीं रहने के कारण पलामू कमिश्नर के कोर्ट में मामला चल रहा है, जिस कारण अधिकारी टिप्प्णी नहीं कर सकते हैं.