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जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलने का सपना नहीं हुआ साकार, भरोसा दिलाकर PM भी भूल गए

झारखंड का एकमात्र पलामू स्थित जपला सीमेंट फैक्ट्री साल 1992 से बंद पड़ा हुआ है. पिछले कई चुनावों में यह अहम मुद्दा भी रहा है. बंद पड़े जपला फैक्ट्री को पीएम नरेंद्र मोदी ने मजदूरों से दोबारा शुरू करने का वादा भी किया था, लेकिन पिछले साल पटना हाई कोर्ट ने फैक्ट्री को उद्योगपतियों के हाथों नीलाम करवा दिया, लेकिन एकबार फिर से विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा गर्म होने वाला है.

जपला सीमेंट फैक्ट्री
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Published : Nov 4, 2019, 12:30 PM IST

पलामू: जपला सीमेंट फैक्ट्री पिछले 27 सालों से बंद पड़ा है. पिछले कई चुनावों में यह चुनावी मुद्दा भी रहा है. साल 2014 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने का वादा किया था, लेकिन आजतक यह सिर्फ वादा बनकर ही रह गया है.

देखें पूरी खबर

पिछले 27 सालों से बंद है जपला सीमेंट फैक्ट्री

पलामू का एकमात्र वृहत सीमेंट उद्योग जपला सीमेंट फैक्ट्री की किस्मत करीब 27 साल के बाद भी नहीं बदली. 28 मई 1992 को बंद हुए इस फैक्ट्री के मजदूर इंतजार की घड़ी में दुनिया भी छोड़ गए और जो जीवित हैं वो भी गरीबी के साए में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं. लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने का मुद्दा सभी दल के नेता उठाते रहे हैं और चुनाव खत्म होते ही सब अपनी राजनीति में व्यस्त हो जाते हैं. 27 वर्षों से कई एमपी-एमएलए ने यह दावा जरूर किया कि लोकसभा और विधानसभा में आवाज उठाई है, लेकिन आवाज कहां दबकर रह जाती है यह कोई बताने को तैयार नहीं होता है.

पीएम भी कर चुके हैं वादा

2014 लोकसभा के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जब पलामू के मेदिनीनगर पहुंचे थे, तो उन्होंने भी लोगों से वादा किया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो जपला सीमेंट फैक्ट्री को फिर से पुनर्जिवित किया जाएगा. इस चुनाव अभियान के दौरान अमित शाह ने भी हुसैनाबाद में चुनाव प्रचार के दौरान इस वादे को दोहराया था. यहां तक कि 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को शुरू करने का वादा किया था, लेकिन किसी ने आजतक इस वादे पर कोई अमल नहीं किया और मजदूरों के लिए समस्या बढ़ती रही.

ये भी पढ़ें- चुनाव के मद्देनजर राजधानी में बनाए गए 22 चेकनाका, काला धन, शराब और हथियारों की आवाजाही पर रहेगी नजर

फैक्ट्री से जुड़े अधिकांश मजदूरों की हो चुकी है मौत

जपला सीमेंट फैक्ट्री के मजदूर संगठन के लोग झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से पिछले 5 सालों में 5 बार मिलकर जपला सीमेंट फैक्ट्री के लिए किए गए वादों को याद दिलाया है, लेकिन मुख्यमंत्री ने हरबार सिर्फ आश्वासन ही देने का काम किया है. सरकार ने जब इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो साल 2018 में पटना उच्च न्यायालय ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को कबाड़ के भाव में उद्योगपतियों के हाथों नीलाम करवा दिया. अब हाल ये है कि इस फैक्ट्री से जुड़े अधिकांश मजदूरों की मौत हो चुकी है और जो बचे भी हैं वो किसी तरह अपना जीवन बसर कर रहे हैं. इस फैक्ट्री से जुड़े एक मजदूर ने बताया कि वह पान की दुकान और रिक्शा चलाकर अपने परिवार की जिंदगी चला रहे हैं.

ये भी पढ़ें- राजधानी में जारी है अवैध शराब का खेल, सीआईडी ने भेजी लिस्ट

फैक्ट्री के सैकड़ों एकड़ जमीन है खाली पड़ी है

बता दें कि अगर सरकार चाहे तो जपला सीमेंट फैक्ट्री की खाली पड़े सैकड़ों एकड़ भूमि में नया उद्योग भी लगा सकती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि सोन नदी के तट पर सैकड़ों एकड़ खाली पड़े जमीन पर सरकार चाहे तो उद्योग लगाकर हजारों लोगों को रोजगार दे सकती है. यहां प्रचुर मात्रा में पानी, आवागमन के लिए रेल और सड़क मार्ग समेत सभी तरह की व्यवस्था उपलब्ध है. ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, ताकी क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सके और राज्य का विकास हो सके. वहीं, स्थानीय लोगों ने एक बार फिर राज्य और केंद्र सरकार से जपला सीमेंट उद्योग की भूमि पर नए उद्योग लगाने की मांग की है. विधानसभा चुनाव को लेकर क्षेत्र में नेताओं ने दौरा भी शुरू कर दिया है, लेकिन वे भी इन मुद्दों पर बोलने से बच रहे हैं.

पलामू: जपला सीमेंट फैक्ट्री पिछले 27 सालों से बंद पड़ा है. पिछले कई चुनावों में यह चुनावी मुद्दा भी रहा है. साल 2014 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने का वादा किया था, लेकिन आजतक यह सिर्फ वादा बनकर ही रह गया है.

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पिछले 27 सालों से बंद है जपला सीमेंट फैक्ट्री

पलामू का एकमात्र वृहत सीमेंट उद्योग जपला सीमेंट फैक्ट्री की किस्मत करीब 27 साल के बाद भी नहीं बदली. 28 मई 1992 को बंद हुए इस फैक्ट्री के मजदूर इंतजार की घड़ी में दुनिया भी छोड़ गए और जो जीवित हैं वो भी गरीबी के साए में जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं. लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में जपला सीमेंट फैक्ट्री खुलवाने का मुद्दा सभी दल के नेता उठाते रहे हैं और चुनाव खत्म होते ही सब अपनी राजनीति में व्यस्त हो जाते हैं. 27 वर्षों से कई एमपी-एमएलए ने यह दावा जरूर किया कि लोकसभा और विधानसभा में आवाज उठाई है, लेकिन आवाज कहां दबकर रह जाती है यह कोई बताने को तैयार नहीं होता है.

पीएम भी कर चुके हैं वादा

2014 लोकसभा के दौरान भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जब पलामू के मेदिनीनगर पहुंचे थे, तो उन्होंने भी लोगों से वादा किया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो जपला सीमेंट फैक्ट्री को फिर से पुनर्जिवित किया जाएगा. इस चुनाव अभियान के दौरान अमित शाह ने भी हुसैनाबाद में चुनाव प्रचार के दौरान इस वादे को दोहराया था. यहां तक कि 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को शुरू करने का वादा किया था, लेकिन किसी ने आजतक इस वादे पर कोई अमल नहीं किया और मजदूरों के लिए समस्या बढ़ती रही.

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फैक्ट्री से जुड़े अधिकांश मजदूरों की हो चुकी है मौत

जपला सीमेंट फैक्ट्री के मजदूर संगठन के लोग झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से पिछले 5 सालों में 5 बार मिलकर जपला सीमेंट फैक्ट्री के लिए किए गए वादों को याद दिलाया है, लेकिन मुख्यमंत्री ने हरबार सिर्फ आश्वासन ही देने का काम किया है. सरकार ने जब इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो साल 2018 में पटना उच्च न्यायालय ने जपला सीमेंट फैक्ट्री को कबाड़ के भाव में उद्योगपतियों के हाथों नीलाम करवा दिया. अब हाल ये है कि इस फैक्ट्री से जुड़े अधिकांश मजदूरों की मौत हो चुकी है और जो बचे भी हैं वो किसी तरह अपना जीवन बसर कर रहे हैं. इस फैक्ट्री से जुड़े एक मजदूर ने बताया कि वह पान की दुकान और रिक्शा चलाकर अपने परिवार की जिंदगी चला रहे हैं.

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फैक्ट्री के सैकड़ों एकड़ जमीन है खाली पड़ी है

बता दें कि अगर सरकार चाहे तो जपला सीमेंट फैक्ट्री की खाली पड़े सैकड़ों एकड़ भूमि में नया उद्योग भी लगा सकती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि सोन नदी के तट पर सैकड़ों एकड़ खाली पड़े जमीन पर सरकार चाहे तो उद्योग लगाकर हजारों लोगों को रोजगार दे सकती है. यहां प्रचुर मात्रा में पानी, आवागमन के लिए रेल और सड़क मार्ग समेत सभी तरह की व्यवस्था उपलब्ध है. ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए, ताकी क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सके और राज्य का विकास हो सके. वहीं, स्थानीय लोगों ने एक बार फिर राज्य और केंद्र सरकार से जपला सीमेंट उद्योग की भूमि पर नए उद्योग लगाने की मांग की है. विधानसभा चुनाव को लेकर क्षेत्र में नेताओं ने दौरा भी शुरू कर दिया है, लेकिन वे भी इन मुद्दों पर बोलने से बच रहे हैं.

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Body:1992 से बंद जपला सीमेंट फैक्ट्री 2014 के लोक सभा और विधान सभा चुनाव में था अहम मुद्दा

पीएम नरेंद्र मोदी ने डालटनगंज, अमित शाह ने हुसैनाबाद और राजनाथ सिंह ने हैदरनगर की सभा मे खुलवाने का किया था वादा। गत वर्ष फैक्टी को लिकविडेटर ने कर दिया नीलम।

पलामू: ज़िले का एक मात्र वृहद जपला सीमेंट उद्योग 28 मई 1992 से बंद है। 2014 तक सभी राजनीतिक दलों का ये चुनावी मुद्दा बनता रहा। 2014 के लोक सभा चुनाव के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने डालटनगंज की सभा मे और अमित शाह ने हुसैनाबाद की सभा मे जनता से वादा किया था कि केंद्र में सरकार बनी तो जपला सीमेंट फैक्ट्री खुल जायेगी। विधानसभा चुनाव के दौरान राजनाथ सिंह ने कहा था कि राज्य में भी सरकार बनी तो जपला सीमेंट फैक्ट्री खुल जायेगी।दोनो जगह सरकार बनी ,मगर फैक्ट्री के संबंध में कोई कदम नही उठाया गया। मज़दूर संगठनों के नेताओं ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास से चार वर्ष में लगातार पांच बार मिले। हमेशा आश्वाशन मिला कि जपला फैक्ट्री खुलेगी। अचानक 2018 में पटना उच्च न्यायालय ने फैक्ट्री को कबाड़ा में नीलम करवा दिया। फैक्ट्री से जुड़े अधिकांश मज़दूर मर चुके हैं। जो बचे हैं वो भी किसी तरह जीवन की गाड़ी को खींच रहे हैं। उन्होंने बताया कि पान की दुकान और रिक्शा चला कर किसी तरह परिवार चला रहे हैं। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री बंद होने से पूरा परिवार बर्बाद हो गया। बच्चों की पढ़ाई गई, बेटियों की शादी किसी तरह हो पाई। मज़दूरों ने बताया कि अब उन्हें सरकार से भरोसा उठ चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहे तो जपला सीमेंट फैक्ट्री की भूमि पर नया उद्योग लग सकता है।उन्होंने बताया कि सोन नदी के तट पर जपला सीमेंट उद्योग की सैकड़ो एकड़ भूमि है। यहाँ प्रचुर मात्रा में पानी, आवागमन के लिये रेल और सड़क की व्यवस्था समेत उद्योग के लिये बेहतर माहौल भी है। मज़दूरों ने एक बार फिर राज्य और केंद्र सरकार से जपला सीमेंट उद्योग की भूमि पर नया उद्योग लगाने की मांग की है। विधान सभा चुनाव के पूर्व नेता गांव गांव का दौरा कर रहे हैं। मगर वो भूल कर भी जपला सीमेंट उद्योग की बात नहीं करते। किसी के बात छेड़ने पर वहाँ नया उद्योग लगाने की बात कहकर बात को बदलने में ही भलाई समझते हैं। क्योंकि 1992 से अबतक एकीकृत बिहार और झारखंड में बनी सरकारों ने बार बार वादा किया।जो कोरा साबित हुआ। इस मुद्दे पर सभी पार्टियां कटघरे में हैं। मज़दूरों का किसी पर भरोसा नही रहा। वो खुद को बेबस व लाचार महसूस कर रहे हैं।

विजुअल- बंद जपला सीमेंट फैक्ट्री, मज़दूरों का बाइट


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