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Palamu News: पलामू में अमरूद की लकड़ी और सोने की चेन से नापा जाता है जमीन के नीचे का जलस्तर, सैकड़ों लोग अपना रहे ये तरीका

पलामू जिले में भूगर्भ जलस्तर अमरूद की लकड़ी और सोना की चेन से नापा जाता है. इस पारंपरिक तरीके को लोग अपना भी रहे हैं.

पलामू जिले में भूगर्भ जलस्तर
पलामू जिले में भूगर्भ जलस्तर
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Published : May 6, 2023, 8:39 PM IST

Updated : May 6, 2023, 9:59 PM IST

पलामू: क्या आपको पता है आज के इस आधुनिक दौर में भूगर्भ जलस्तर को अमरूद की लकड़ी और सोने की चेन से नापा जाता है. यह पारंपरिक तरीका पलामू के इलाके में काफी चर्चित है. सैकड़ों लोग इस तरीके से भूगर्भ जलस्तर को नपवा चुके हैं. पलामू के मेदिनीनगर के रहने वाले चंदन कुमार प्रभाकर इस पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जलस्तर को नापते हैं. वह पिछले एक दशक से यह कार्य कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें: बिहार की एक शातिर महिला सुरक्षाबलों के लिए बनी रहस्य, माओवादी कमांडरों की ऐसे करती थी मदद, तलाश रही दो राज्यों की पुलिस

चंदन कुमार प्रभाकर बताते हैं कि यह अंधविश्वास नहीं है, इसमें बस थोड़ा विज्ञान है. अमरूद की लकड़ी और सोने की चेन से भूगर्भ जल स्तर नापने के दौरान एक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे यह पता चलता है कि जल स्तर क्या है. वे बताते हैं कि मशीन से भी जल स्तर को नाप सकते हैं, लेकिन वे अमरूद की लकड़ी का अधिक इस्तेमाल करते हैं. अभी तक जीतनी भी जगह उन्होंने जलस्तर को नापा है, सभी जगह सही निकला है. वे इसके लिए कोई भी चार्ज नहीं लेते हैं, जिसे जितनी मर्जी होती है, वह उतना पैसा दे देता है. चंदन बताते हैं कि वे इस पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जल स्तर को नापने के लिए देवघर, रांची समेत कई इलाकों में जा चुके हैं. मेदिनीनगर में अकेले एक सौ से अधिक जगहों पर भी जलस्तर को नाप चुके हैं.

लगातार नीचे जा रहा है जलस्तर, नदी की धारा जैसी है भूगर्भ जलस्तर: चंदन कुमार प्रभाकर बताते हैं कि जिस वक्त उन्होंने पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जल स्तर को नापने का कार्य शुरू किया था. उस दौरान पलामू के इलाके में 60 से 70 फीट पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब कई इलाकों में 500 फीट से 1000 फीट में भी पानी नहीं मिलता है. वे बताते हैं कि लोग निर्माण कार्य के दौरान जल संरक्षण का ध्यान नहीं रखते हैं, भूगर्भ जलस्तर नदी की धारा की तरह है. जो टेढ़े मेढ़े ढंग से चलती है. पलामू के रहने वाले गोविंद बताते है कि उन्होंने पारंपरिक से भूगर्भ जलस्तर को नपवाया है, इस दौरान उन्हें बताया गया था कि 200 से 220 फीट पर पानी है. उन्होंने बोरिंग कराई थी तो 210 फीट पर पानी मिला था.

क्या कहते हैं भूगर्भशास्त्री, कितना कारगर है यह तरीका: पलामू के जीएलए कॉलेज के प्रोफेसर इंद्रजीत यादव का कहना है कि इस तरह के तरीकों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इस पर विश्वास करना भी मुश्किल है. उन्होंने बताया कि कई लोग इस तरह के तरीकों पर विश्वास करते हैं, जिन्हें मना करना मुश्किल है, सबकी अपनी अपनी मान्यता है.

90 प्रतिशत लोग अपना रहे पारंपरिक तरीके: पलामू में प्रतिवर्ष विभिन्न इलाकों में 500 से अधिक बोरिंग करवाई जाती है. इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक लोग भूगर्भ जलस्तर को नापने के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. पलामू के इलाके में बोरिंग से जलस्तर नीचे जा रहा है. पिछले एक दशक में पलामू का जलस्तर कई इलाकों में 200 फीट नीचे तक चला गया है. प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर के कई इलाकों में 400 से 600 फीट नीचे पानी चला गया है, जबकि कई इलाके ड्राई जोन हो गए हैं.

पलामू: क्या आपको पता है आज के इस आधुनिक दौर में भूगर्भ जलस्तर को अमरूद की लकड़ी और सोने की चेन से नापा जाता है. यह पारंपरिक तरीका पलामू के इलाके में काफी चर्चित है. सैकड़ों लोग इस तरीके से भूगर्भ जलस्तर को नपवा चुके हैं. पलामू के मेदिनीनगर के रहने वाले चंदन कुमार प्रभाकर इस पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जलस्तर को नापते हैं. वह पिछले एक दशक से यह कार्य कर रहे हैं.

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चंदन कुमार प्रभाकर बताते हैं कि यह अंधविश्वास नहीं है, इसमें बस थोड़ा विज्ञान है. अमरूद की लकड़ी और सोने की चेन से भूगर्भ जल स्तर नापने के दौरान एक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे यह पता चलता है कि जल स्तर क्या है. वे बताते हैं कि मशीन से भी जल स्तर को नाप सकते हैं, लेकिन वे अमरूद की लकड़ी का अधिक इस्तेमाल करते हैं. अभी तक जीतनी भी जगह उन्होंने जलस्तर को नापा है, सभी जगह सही निकला है. वे इसके लिए कोई भी चार्ज नहीं लेते हैं, जिसे जितनी मर्जी होती है, वह उतना पैसा दे देता है. चंदन बताते हैं कि वे इस पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जल स्तर को नापने के लिए देवघर, रांची समेत कई इलाकों में जा चुके हैं. मेदिनीनगर में अकेले एक सौ से अधिक जगहों पर भी जलस्तर को नाप चुके हैं.

लगातार नीचे जा रहा है जलस्तर, नदी की धारा जैसी है भूगर्भ जलस्तर: चंदन कुमार प्रभाकर बताते हैं कि जिस वक्त उन्होंने पारंपरिक तरीके से भूगर्भ जल स्तर को नापने का कार्य शुरू किया था. उस दौरान पलामू के इलाके में 60 से 70 फीट पर पानी मिल जाता था, लेकिन अब कई इलाकों में 500 फीट से 1000 फीट में भी पानी नहीं मिलता है. वे बताते हैं कि लोग निर्माण कार्य के दौरान जल संरक्षण का ध्यान नहीं रखते हैं, भूगर्भ जलस्तर नदी की धारा की तरह है. जो टेढ़े मेढ़े ढंग से चलती है. पलामू के रहने वाले गोविंद बताते है कि उन्होंने पारंपरिक से भूगर्भ जलस्तर को नपवाया है, इस दौरान उन्हें बताया गया था कि 200 से 220 फीट पर पानी है. उन्होंने बोरिंग कराई थी तो 210 फीट पर पानी मिला था.

क्या कहते हैं भूगर्भशास्त्री, कितना कारगर है यह तरीका: पलामू के जीएलए कॉलेज के प्रोफेसर इंद्रजीत यादव का कहना है कि इस तरह के तरीकों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और इस पर विश्वास करना भी मुश्किल है. उन्होंने बताया कि कई लोग इस तरह के तरीकों पर विश्वास करते हैं, जिन्हें मना करना मुश्किल है, सबकी अपनी अपनी मान्यता है.

90 प्रतिशत लोग अपना रहे पारंपरिक तरीके: पलामू में प्रतिवर्ष विभिन्न इलाकों में 500 से अधिक बोरिंग करवाई जाती है. इनमें से 90 प्रतिशत से अधिक लोग भूगर्भ जलस्तर को नापने के लिए पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. पलामू के इलाके में बोरिंग से जलस्तर नीचे जा रहा है. पिछले एक दशक में पलामू का जलस्तर कई इलाकों में 200 फीट नीचे तक चला गया है. प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर के कई इलाकों में 400 से 600 फीट नीचे पानी चला गया है, जबकि कई इलाके ड्राई जोन हो गए हैं.

Last Updated : May 6, 2023, 9:59 PM IST
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