पलामूः प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का रेड कॉरिडोर बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का नेटवर्क टूट गया है. रेड कॉरिडोर के 135 किलोमीटर के दायरे में 72 कंपनी सुरक्षाबलों को तैनात किया गया है. नतीजा है बिहार झारखंड के सीमावर्ती इलाके के माओवादियों का संपर्क छत्तीसगढ़ और दक्षिण भारत के नक्सलियों से टूट गया है.
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हाल के दिनों में आत्मसर्मपण करने वाले और गिरफ्तार होने वाले टॉप माओवादियों ने पुलिस एवं सुरक्षा एजेंसियों के समक्ष कई बड़े खुलासे किए है. सुरक्षाबलों के पूछताछ में माओवादियों के सेंट्रल कमिटी सदस्य विनय उर्फ मुराद, विमल यादव, नवीन यादव जैसे कमांडरों ने कई जानकारी दी है. माओवादियों का छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना नेटवर्क टूट गया है. हालांकि झारखंड के सारंडा के इलाके के नक्सलियों का छत्तीसगढ़ के नक्सलियों से संपर्क है.
क्या है नक्सलियों का रेड कॉरिडोर-कैसे जुड़ा है आपस मेंः नक्सलियों का रेड कॉरिडोर बिहार के छकरबंधा से लेकर छत्तीसगढ़ के बस्तर तक है. जिसमें बिहार में छकरबंधा से छत्तीसगढ़ के बूढ़ा पहाड़ और बलरामपुर तक का करीब 135 किलोमीटर का हिस्सा काफी अहम माना जाता था. इसी गलियारे पर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के टॉप कमांडरों का जमावड़ा लगा रहता था. इस कॉरिडोर में गया का इमामगंज, डुमरिया, चतरा का प्रतापपुर, कुन्दा, लावालौंग, पलामू का मनातू, पिपराटांड़, पांकी, लेस्लीगंज, लातेहार का हेरहंज, मनिका, बरवाडीह, गारु, छिपादोहर, गढवा का रंका, भंडरिया, छत्तीसगढ़ का रामानुजगंज, बलरामपुर का इलाका है.
इस कॉरिडोर पर करीब 72 कंपनियां सुरक्षाबलों की तैनाती की गयी है. कॉरिडोर प्रत्येक दो तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थायी कैंप बनाए गए हैं. कैंपों में कोबरा, सीआरपीएफ, एसएसबी, झारखंड जगुआर, जैप, आईआरबी, बिहार एसटीएफ के जवानों को तैनात किया गया है. समय-समय पर इलाके में सुरक्षाबलों की तैनाती की संख्या को बढ़ाई भी जाती है.
2020-21 के बाद नक्सलियों की मौजूदगी के सबूत नहींः माओवादियों के रेड कॉरिडोर के बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ तक बाहर के नक्सलियों के मौजूदगी के सबूत नहीं मिले है. 2018 में माओवादी अपने यूनिफाइड कमांड बूढ़ा पहाड़ का इंचार्ज बना कर सुधाकरण को भेजा था. सुधाकरण के साथ उसकी पत्नी और आधा दर्जन टॉप माओवादी पहुंचे थे. सुधाकरण ने अपनी टीम के साथ 2020-21 मे तेलंगाना में आत्मसर्मपण कर दिया था. वहीं 2016 में माओवादियों का तत्कालीन महासचिव गणपति ने छकरबंधा के इलाके का दौरा किया था. पिछले एक दशक से माओवादियों की महासभा जिसमें सभी राज्यों के टॉप कमांडर मौजूद रहते है, नहीं हुई है.
किस रणिनीति के तहत सुरक्षाबलों ने कॉरिडोर को किया ध्वस्तः सुरक्षाबल माओवादियों के रेड कॉरिडोर को ध्वस्त करने के लिए पिछले एक दशक से रहने के बाद काम कर रहे थे. सुरक्षा बल में सबसे पहले कॉरिडोर पर नक्सलियों के मूवमेंट, उनके ठहरने की जगह चिन्हित किया. सुरक्षाबलों ने नक्सलियो को सप्लाई लाइन को चिन्हित किया, उसके बाद एक एक जगह पर कैंप बनाया गया, कैंप बनाने के बाद इलाके को सेनेटाइज किया गया. सेनेटाइज करने से माओवादियों का मूवमेंट सीमित इलाके तक सिमट गया और बाहर के नक्सलियों से संपर्क टूट गया. पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि इस कॉरिडोर सुरक्षाबलों की कड़ी नजर है, एक एक गतिविधि पर हमारी नजर है.