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बरसात के दौरान बूढ़ा पहाड़ इलाके में सुरक्षाबलों की चुनौती, सड़क और पुल को सुरक्षित रखना बड़ा चैलेंज

झारखंड में मानसून के पहुंचने के साथ ही बूढ़ा पहाड़ इलाके में तैनात सुरक्षा बलों की मुश्किलें बढ़ जाती है. इनके लिए पुलों और सड़कों को सुरक्षित रख पाना मुश्किल टास्क होता है. हालांकि इस बार सुरक्षा बलों ने बरसात के लिए खास तैयारी की है.

Challenge of security forces in Budha Pahar area
Challenge of security forces in Budha Pahar area
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Published : Jun 22, 2023, 7:50 PM IST

Updated : Jun 22, 2023, 8:01 PM IST

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पलामू: बरसात का मौसम सुरक्षाबलों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, जबकि यह नक्सलियों के लिए सबसे अधिक अनुकूल समय होता है. नक्सलियों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में से एक बूढ़ापहाड़ पर सुरक्षाबलों का छह महीने पहले कब्जा हो गया है. सुरक्षाबलों के कब्जे के बाद इलाके में आधा दर्जन से अधिक कैंप स्थापित किए गए हैं, जहां जवानों को तैनात किया गया है. बरसात के शुरू होने से पहले बूढ़ा पहाड़ के इलाके में हाई अलर्ट जारी किया गया है.

ये भी पढ़ें: बूढ़ापहाड़ वन्य जीवों के संरक्षण का बनेगा बड़ा केंद्र, इलाके को सॉफ्ट रिलीज सेंटर और ग्रास लैंड बनाने की मिली मंजूरी

बूढ़ा पहाड़ के इलाके को पुलिस एवं सुरक्षा बल घेराबंदी में लगे हुए हैं. बरसात के दिनों में सुरक्षाबलों के कैंप की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं और अतिरिक्त बलों को तैनाती को जा रही है.जिन जवानों को बूढ़ा पहाड़ पर तैनात किया जाना हैं उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग दी गयी है और उनकी काउंसलिंग की गई है. बूढ़ापहाड़ के इलाके में तैनात जवानों को प्रत्येक दो महीने में बदल दिया जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में तीन से चार महीने तक जवानों को तैनात रखने की योजना तैयार की गयी है. बूढ़ा पहाड़ के लिए बरसात के दिनों में हेलीकॉप्टर की भी व्यवस्था की गई है जिसके माध्यम से पूरे इलाके में निगरानी रखी जाएगी.

रोड और पुल को सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती: बरसात के दिनों में बूढ़ापहाड़ के इलाके में बने रोड और पुल को सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती है. बूढ़ा पहाड़ के इलाके में जाने के लिए नहीं सुरक्षाबलों ने खुद से ही चार से अधिक पुलों का निर्माण किया है. ये सभी पुल कच्चे हैं, नदी में बाढ़ आने के बाद इन पुलों के टूटने या बहने का खतरा है. वहीं कैम्पों में जाने के लिए कच्चे रास्तों को तैयार किया गया है. हालांकि इन रास्तों लैंड माइंस का खतरा बना हुआ रहता है. जिस कारण बूढ़ा पहाड़ के इलाके में पुलिस और सुरक्षाबलों ने एक दर्जन से अधिक संवेदनशील रास्तों को चिन्हित किया है. उन्हें सेनेटाइज करना शुरू किया है और निगरानी भी बढ़ा दी गई है. सुरक्षाबलों ने गढ़वा कुल्ही से पुनदाग होते हुए बूढ़ापहाड़, जबकि लातेहार के छिपादोहर से नावाडीह तक के रोड को सबसे संवेदनशील माना है. बरसात के दिनों में नक्सल संगठनों को छिपने के लिए जगह और पीने के लिए पानी आसानी से मिल जाता है.

क्या कहते है पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लकड़ा: पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लाकड़ा बताते हैं कि बरसात को लेकर बूढ़ापहाड़ और उसके आसपास के इलाके के लिए योजना तैयार की गयी है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है. पुलिस एवं सुरक्षाबलों के लिए बूढ़ा पहाड़ एक महत्वपूर्ण जगह, इस इलाके से नक्सलियों को खदेड़ दिया गया है. इलाका नक्सल मुक्त है और इलाके में कई विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. उन्होंने बताया कि इलाके के लिए बूढ़ापहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की भी शुरुआत की गई है.

तीन दशक में बूढ़ापहाड़ के इलाके में 59 जवान हुए है शहीद: बूढ़ापहाड़ के इलाके में पिछले तीन दशक में 59 पुलिस के जवान शहीद हुए हैं. बरसात के दिनों में बूढ़ा पहाड़ के इलाके में कई बड़े नक्सल हमले भी हुए हैं. 2018 में इस इलाके में माओवादियो के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया गया था, इस अभियान के दौरान हुए नक्सल हमले में पुलिस के छह जवान शहीद हुए थे. तीन दशक से इलाके में गर्मियों के दौरान नक्सलियों के खिलाफ अभियान शुरू किया जाता था और मानसून के आगमन से पहले अभियान बंद कर दिया जाता था. 2022 में सुरक्षाबलों ने बरसात के अंतिम समय सितंबर के महीने में अभियान ऑक्टोपस की शुरुआत की थी और दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक बूढ़ापहाड़ पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था.

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पलामू: बरसात का मौसम सुरक्षाबलों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, जबकि यह नक्सलियों के लिए सबसे अधिक अनुकूल समय होता है. नक्सलियों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में से एक बूढ़ापहाड़ पर सुरक्षाबलों का छह महीने पहले कब्जा हो गया है. सुरक्षाबलों के कब्जे के बाद इलाके में आधा दर्जन से अधिक कैंप स्थापित किए गए हैं, जहां जवानों को तैनात किया गया है. बरसात के शुरू होने से पहले बूढ़ा पहाड़ के इलाके में हाई अलर्ट जारी किया गया है.

ये भी पढ़ें: बूढ़ापहाड़ वन्य जीवों के संरक्षण का बनेगा बड़ा केंद्र, इलाके को सॉफ्ट रिलीज सेंटर और ग्रास लैंड बनाने की मिली मंजूरी

बूढ़ा पहाड़ के इलाके को पुलिस एवं सुरक्षा बल घेराबंदी में लगे हुए हैं. बरसात के दिनों में सुरक्षाबलों के कैंप की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं और अतिरिक्त बलों को तैनाती को जा रही है.जिन जवानों को बूढ़ा पहाड़ पर तैनात किया जाना हैं उन्हें स्पेशल ट्रेनिंग दी गयी है और उनकी काउंसलिंग की गई है. बूढ़ापहाड़ के इलाके में तैनात जवानों को प्रत्येक दो महीने में बदल दिया जाता है, लेकिन बरसात के दिनों में तीन से चार महीने तक जवानों को तैनात रखने की योजना तैयार की गयी है. बूढ़ा पहाड़ के लिए बरसात के दिनों में हेलीकॉप्टर की भी व्यवस्था की गई है जिसके माध्यम से पूरे इलाके में निगरानी रखी जाएगी.

रोड और पुल को सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती: बरसात के दिनों में बूढ़ापहाड़ के इलाके में बने रोड और पुल को सुरक्षित रखना बड़ी चुनौती है. बूढ़ा पहाड़ के इलाके में जाने के लिए नहीं सुरक्षाबलों ने खुद से ही चार से अधिक पुलों का निर्माण किया है. ये सभी पुल कच्चे हैं, नदी में बाढ़ आने के बाद इन पुलों के टूटने या बहने का खतरा है. वहीं कैम्पों में जाने के लिए कच्चे रास्तों को तैयार किया गया है. हालांकि इन रास्तों लैंड माइंस का खतरा बना हुआ रहता है. जिस कारण बूढ़ा पहाड़ के इलाके में पुलिस और सुरक्षाबलों ने एक दर्जन से अधिक संवेदनशील रास्तों को चिन्हित किया है. उन्हें सेनेटाइज करना शुरू किया है और निगरानी भी बढ़ा दी गई है. सुरक्षाबलों ने गढ़वा कुल्ही से पुनदाग होते हुए बूढ़ापहाड़, जबकि लातेहार के छिपादोहर से नावाडीह तक के रोड को सबसे संवेदनशील माना है. बरसात के दिनों में नक्सल संगठनों को छिपने के लिए जगह और पीने के लिए पानी आसानी से मिल जाता है.

क्या कहते है पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लकड़ा: पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लाकड़ा बताते हैं कि बरसात को लेकर बूढ़ापहाड़ और उसके आसपास के इलाके के लिए योजना तैयार की गयी है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है. पुलिस एवं सुरक्षाबलों के लिए बूढ़ा पहाड़ एक महत्वपूर्ण जगह, इस इलाके से नक्सलियों को खदेड़ दिया गया है. इलाका नक्सल मुक्त है और इलाके में कई विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. उन्होंने बताया कि इलाके के लिए बूढ़ापहाड़ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की भी शुरुआत की गई है.

तीन दशक में बूढ़ापहाड़ के इलाके में 59 जवान हुए है शहीद: बूढ़ापहाड़ के इलाके में पिछले तीन दशक में 59 पुलिस के जवान शहीद हुए हैं. बरसात के दिनों में बूढ़ा पहाड़ के इलाके में कई बड़े नक्सल हमले भी हुए हैं. 2018 में इस इलाके में माओवादियो के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू किया गया था, इस अभियान के दौरान हुए नक्सल हमले में पुलिस के छह जवान शहीद हुए थे. तीन दशक से इलाके में गर्मियों के दौरान नक्सलियों के खिलाफ अभियान शुरू किया जाता था और मानसून के आगमन से पहले अभियान बंद कर दिया जाता था. 2022 में सुरक्षाबलों ने बरसात के अंतिम समय सितंबर के महीने में अभियान ऑक्टोपस की शुरुआत की थी और दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक बूढ़ापहाड़ पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था.

Last Updated : Jun 22, 2023, 8:01 PM IST
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