पलामू: सुखाड़ से जूझने वाले किसानों को गैर परंपरागत खेती से जोड़ा जा रहा है. इसी कड़ी में पलामू में सेब की खेती की शुरुआत की गई है (Apple farming in Palamu Jharkhand). हालांकि यह ट्रायल है, लेकिन ट्रायल सफल होने पर बड़े पैमाने पर इस अभियान से किसानों को जोड़ा जाएगा.
ये भी पढ़ें: 15 साल से हिमाचल में सेब खरीद रहा है अडानी एग्री फ्रेश, बागवानों को मुनाफा
आपने सुना होगा की सेब की खेती कश्मीर और ठंड वाले प्रदेशों में होती है, लेकिन पलामू जैसे गर्म और सुखाड़ से जूझने वाले इलाके में भी सेब की खेती की शुरुआत की गई है. सेब की खेती की शुरुआत पलामू के लेस्लीगंज के बसौरा, सदर प्रखंड के जोरकट और हरिहरगंज में की गई है. तीनो इलाको में सेब की हरिमन 99 प्रजाति का सेब लगाया गया है. कुछ वर्ष पहले पलामू में स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत की गई थी. स्ट्रॉबेरी की खेती सफल होने के बाद पलामू में 200 से अधिक किसान स्ट्रॉबेरी की उपज कर रहे हैं. स्ट्रॉबेरी की सफलता को देखते हुए पलामू में किसानों को गैर परंपरागत खेती से जोड़ने की पहल की जा रही है.
किसानों को दी जा रही वित्तिय सहायता: नीति आयोग और कृषि विभाग की पहल पर किसानों को गैर परंपरागत खेती से जोड़ने की शुरुआत की जा रही. नीति आयोग की पहल पर पलामू में सेब के पौधे लगाए गए. पलामू के विभिन्न इलाकों में करीब 150 से अधिक सेम के पौधे लगाए गए हैं. पलामू में नीति आयोग के एडीएफ नाजरिन ने बताया कि पलामू का इलाका सुखाड़ और गर्म वाला इलाका है. यहां के किसानों को गैर परंपरागत खेती से जुड़े जाने की योजना तैयार किया गया है. यह सफल होने पर किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया जाएगा और इस खेती से जोड़ा जाएगा. विशेष केंद्रीय अनुदान के माध्यम से खेती के लिए पहल की जा रही है.
45 से 50 डिग्री तापमान में भी होगी सेब की फसल: पलामू के इलाके में हरीमन 99 प्रजाति के पौधे लगाए गए हैं. इस प्रजाति की खासियत है कि यह 45 से 50 डिग्री तापमान में भी फल देता है. दिसंबर से जनवरी महीने के बीच इसके पौधे लगाए जाते हैं. ढाई से तीन वर्षों के बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं. सेब की खेती की निगरानी करने वाले हॉर्टिकल्चर कृष्णा कुमार ने बताया कि शुरुआत में पौधों को निगरानी में रखा गया है. पौधे पर निगरानी रखी जा रही है और उसके विकास को नोट किया जा रहा है. प्रयोग सफल रहने पर इलाके में यह बदलाव का बड़ा कारण बन सकता है. सेब की खेती इस इलाके में शुरू हो जाएगी. पलामू में जो पौधे लगाए गए हैं वह लगभग एक वर्ष के हो गए हैं.
स्ट्रॉबेरी की खेती का बड़ा केंद्र बन गया है पलामू: सेब की तरह ही पलामू में स्ट्रॉबेरी की खेती की प्रयोग किया गया था. आज पलामू में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. पलामू के हरिहरगंज स्ट्रॉबेरी खेती खेती का बड़ा केंद्र बन गया है. 200 से अधिक किसान स्टोबेरी की खेती से जुड़े हुए हैं. पलामू में 10 टन से अधिक स्ट्रॉबेरी का उत्पादन हो रहा है, जिसे बंगाल यूपी, छत्तीसगढ़ और उत्तर भारत के इलाके में भेजा जा रहा है.