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पाकुड़: मुख्यमंत्री के गोद लिए प्रखंड में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही आई सामने, लाचार दिखी पीड़ित

पाकुड़ में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति काफी खराब है. मुख्यमंत्री के गोद लिए लिट्टीपाड़ा प्रखंड की घटना किसी की भी होश उड़ा देगी. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सदर अस्पताल के डॉक्टरों ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया. दर्द से कराहती महिला के लिए कोई भी सामने नहीं आया.

सदर अस्पताल
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Published : Oct 23, 2019, 3:17 PM IST

पाकुड़: मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद लिए लिट्टीपाड़ा प्रखंड के मरीजों की स्थिति काफी खराब है. यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सदर अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी मरीज का इलाज नहीं करते हैं बल्कि टाल मटोल करते हैं.

देखेंं पूरी खबर

ऐसा ही कुछ हुआ है जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के गुड़ापहाड़ की रहने वाली आदिम जनजाति पहाड़िया दिव्यांग बामड़ी पहाड़िन के साथ. दिव्यांग बामड़ी को प्रसव पीड़ा हुई लेकिन, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने वाले स्वास्थ्य महकमा से जुड़े लोग इसे अस्पताल नहीं पहुंचा पाए और उसने अपने घर में मृत बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को जन्म के बाद बामड़ी दर्द से कराहती रही. परिजनों ने उसे लिट्टीपाड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया. चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बामड़ी का इलाज तो नहीं किया, उल्टे उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया, यह बताकर की उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है.

health department negligence came out in pakur
स्वास्थ्य सुविधा

किसी तरह बामड़ी के परिजन उसे सदर अस्पताल लाए, यहां भी वहीं हुआ जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में किया गया. सदर अस्पताल के ड्यूटी में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों ने बामड़ी की बीमारी को देखना तो दूर उसकी पीड़ा और कठिनाई को जानने तक की कोशिश नहीं की. उल्टा इसे यह नसीहत देते हुए सदर अस्पताल से लौटा दिया कि उसका इलाज यहां संभव नहीं है.

ये भी देखें- कमलेश तिवारी के बाद इस हिंदूवादी नेता को मिली धमकी, कहा- अब तुम्हारा नंबर

आदिम जनजाति दिव्यांग बामड़ी की समस्या सुनकर हिरणपुर प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार भगत अपने साथियों के साथ सदर अस्पताल पहुंचे और मजबूरन इलाज के लिए उसे जिला मुख्यालय के नर्सिंग होम में लाया गया. जैसे ही बामड़ी के निजी नर्सिंग होम में पहुंचने की जानकारी सिविल सर्जन को मिली तो वह कथित रूप से सक्रिय हुए और उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बोला.

ये भी देखें- अपनी नई कार निसान जोंगा में सवार होकर भारतीय टीम से मिलने पहुंचे थे धोनी

बामड़ी सदर अस्पताल पहुंची भी पर उसका इलाज नहीं हुआ. चिकित्सकों ने उसे परिजनों के हाथ रेफर का पर्ची थमा दिया. बामड़ी के परिजनों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को पकड़ा और दुबारा स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ उसे स्वस्थ करने के लिए पाकुड़ नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया. फिलहाल बामड़ी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है लेकिन, इस मामले ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता को सामने ला दिया.

ये भी देखें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 : टुंडी में AJSU का 'बूथ जीतो चुनाव जीतो' कार्यक्रम, सुदेश महतो ने दिए टिप्स

लोगों के साथ-साथ बामड़ी के परिजनों में भी यह चर्चा आम हो गए कि आखिर मुख्यमंत्री साल में सबसे ज्यादा लिट्टीपाड़ा का भ्रमण कर रहे हैं इसलिए कि यहां रह रहे पहाड़िया और आदिवासियों के जीवनस्तर में बदलाव आएगा, लेकिन अधिकारी अपने नीति और नियत में बदलाव क्यों नहीं ला रहे है. सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होना यह सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर आयुष्मान भारत का लाभ दुरुस्त गांव में रहने वाले ग्रामीणों को पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन कब सजग होगी.

इस मामले में सिविल सर्जन डॉ एस एन झा ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई लापरवाही नहीं की गई है बल्कि उसे प्राथमिक उपचार के बाद रेफर किया गया है. अस्पताल से एबुलेंस भी मुहैया कराया गया था. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मी नहीं रहने के कारण ही उन्हें रेफर किया गया था.

पाकुड़: मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद लिए लिट्टीपाड़ा प्रखंड के मरीजों की स्थिति काफी खराब है. यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सदर अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी मरीज का इलाज नहीं करते हैं बल्कि टाल मटोल करते हैं.

देखेंं पूरी खबर

ऐसा ही कुछ हुआ है जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के गुड़ापहाड़ की रहने वाली आदिम जनजाति पहाड़िया दिव्यांग बामड़ी पहाड़िन के साथ. दिव्यांग बामड़ी को प्रसव पीड़ा हुई लेकिन, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने वाले स्वास्थ्य महकमा से जुड़े लोग इसे अस्पताल नहीं पहुंचा पाए और उसने अपने घर में मृत बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को जन्म के बाद बामड़ी दर्द से कराहती रही. परिजनों ने उसे लिट्टीपाड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया. चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बामड़ी का इलाज तो नहीं किया, उल्टे उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया, यह बताकर की उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है.

health department negligence came out in pakur
स्वास्थ्य सुविधा

किसी तरह बामड़ी के परिजन उसे सदर अस्पताल लाए, यहां भी वहीं हुआ जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में किया गया. सदर अस्पताल के ड्यूटी में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों ने बामड़ी की बीमारी को देखना तो दूर उसकी पीड़ा और कठिनाई को जानने तक की कोशिश नहीं की. उल्टा इसे यह नसीहत देते हुए सदर अस्पताल से लौटा दिया कि उसका इलाज यहां संभव नहीं है.

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आदिम जनजाति दिव्यांग बामड़ी की समस्या सुनकर हिरणपुर प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार भगत अपने साथियों के साथ सदर अस्पताल पहुंचे और मजबूरन इलाज के लिए उसे जिला मुख्यालय के नर्सिंग होम में लाया गया. जैसे ही बामड़ी के निजी नर्सिंग होम में पहुंचने की जानकारी सिविल सर्जन को मिली तो वह कथित रूप से सक्रिय हुए और उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बोला.

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बामड़ी सदर अस्पताल पहुंची भी पर उसका इलाज नहीं हुआ. चिकित्सकों ने उसे परिजनों के हाथ रेफर का पर्ची थमा दिया. बामड़ी के परिजनों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को पकड़ा और दुबारा स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ उसे स्वस्थ करने के लिए पाकुड़ नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया. फिलहाल बामड़ी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है लेकिन, इस मामले ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता को सामने ला दिया.

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लोगों के साथ-साथ बामड़ी के परिजनों में भी यह चर्चा आम हो गए कि आखिर मुख्यमंत्री साल में सबसे ज्यादा लिट्टीपाड़ा का भ्रमण कर रहे हैं इसलिए कि यहां रह रहे पहाड़िया और आदिवासियों के जीवनस्तर में बदलाव आएगा, लेकिन अधिकारी अपने नीति और नियत में बदलाव क्यों नहीं ला रहे है. सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होना यह सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर आयुष्मान भारत का लाभ दुरुस्त गांव में रहने वाले ग्रामीणों को पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन कब सजग होगी.

इस मामले में सिविल सर्जन डॉ एस एन झा ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई लापरवाही नहीं की गई है बल्कि उसे प्राथमिक उपचार के बाद रेफर किया गया है. अस्पताल से एबुलेंस भी मुहैया कराया गया था. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मी नहीं रहने के कारण ही उन्हें रेफर किया गया था.

Intro:बाइट 1 : बामड़ी पहाड़िन, पीड़िता
बाइट 2 : जीशु पहाड़िया, पीड़िता का भाई
बाइट 3 : अनिमा हालदार, स्वास्थ्य कर्मी
बाइट 4 : डॉ एस एन झा, सिविल सर्जन
पाकुड़ : मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद लिए लिट्टीपाड़ा प्रखंड के मरीजों का गोद लेना तो दूर उन्हें छूना तक मुनासिब नहीं समझते। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सदर अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी पाकुड़ जिले के स्वास्थ्य महकमा में बैठे लोगों का जमीर मर गया है और पैसे के बल पर सिर्फ आमिर ही इलाज करा रहे हैं, गरीबों की तो देखने वाला दूर। यहां इलाज के लिए स्वास्थ्य महकमा के पूछने वाले लोग दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते। ऐसा ही कुछ हुआ है जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के गुड़ापहाड़ की रहने वाली अभागीन आदिम जनजाति पहाड़िया दिव्यांग बामड़ी पहाड़िन के साथ।


Body:हुआ यह कि दिव्यांग बामड़ी को प्रसव पीड़ा हुई परंतु संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने वाले स्वास्थ्य महकमा से जुड़े लोग इसे अस्पताल नहीं पहुंचा पाए और उसने अपने घर में मृत बच्चे को जन्म दिया। बच्चे को जन्म के बाद बामड़ी दर्द से कराहती रही। परिजनों ने उसे लिट्टीपाड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया। चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों ने बामड़ी का इलाज तो नहीं किया, उल्टे उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया कर दिया यह बताकर की उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है। किसी तरह बामड़ी के परिजन उसे सदर अस्पताल लाया, यहां भी वही हुआ जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में किया गया। सदर अस्पताल में ड्यूटी में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों ने बामड़ी की बीमारी को देखना तो दूर उसकी पीड़ा और कठिनाई को जाने तक की कोशिश नहीं की उल्टा इसे यह नसीहत देते हुए सदर अस्पताल से लौटा दिया कि उसका इलाज यहां संभव नहीं है। आदिम जनजाति दिव्यांग बामड़ी की समस्या को सुनकर हिरणपुर प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार भगत अपने साथियों के साथ सदर अस्पताल पहुंचे और मजबूरन इलाज के लिए उसे जिला मुख्यालय के नर्सिंग होम में लाया गया। जैसे ही बामडी के निजी नर्सिंग होम में पहुंचने की जानकारी सिविल सर्जन को मिली तो वह कथित रूप से सक्रिय हुए और उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बोला गया। बामड़ी सदर अस्पताल पहुंची भी पर उसका इलाज नहीं हुआ। चिकित्सकों ने उसे परिजनों के हाथ रेफर का पर्ची थमा दिया। बामड़ी के परिजनों ने किन सामाजिक कार्यकर्ताओं को पकड़ा और दुबारा स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ उसे स्वस्थ करने के लिए पाकुड़ नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया। फिलहाल बामड़ी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है लेकिन इस मामले ने केंद्र एवं राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता को सामने ला दिया। लोगों के साथ बामड़ी के परिजनों में यह चर्चा आम हो गए कि आखिर मुख्यमंत्री साल में सबसे ज्यादा लिट्टीपाड़ा का भ्रमण कर रहे हैं इसलिए कि वह यहां रह रहे पहाड़िया एवं आदिवासियों के जीवनस्तर में बदलाव आएगा परंतु अधिकारी अपने नीति और नियत में बदलाव क्यों नहीं ला रहे हैं। सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होना यह सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर आयुष्मान भारत का लाभ दुरुस्त गांव में रहने वाले ग्रामीणों को पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन कब सजग होगी के साथ घटी घटना संस्थागत प्रसव के स्वास्थ्य विभाग के दावे को झुठला रहा है। यह भी चर्चा कर रहे हैं कि स्वास्थ्य महकमा में बैठे लोगों की जमीर मर गई है इसलिए पैसे वाले अपना इलाज बाहर वाले हैं और परेशान हो रहे हैं गरीब।


Conclusion:इस मामले में सिविल सर्जन डॉ एस एन झा ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई लापरवाही नही गयी है बल्कि उसे प्राथमिक उपचार के बाद रेफर किया गया है और अस्पताल से एबुलेंस भी मुहैया कराया गया। उन्होंनो कहा कि स्वास्थ्य कर्मी नही रहने के कारण ही उसे रेफर किया गया था।
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