पाकुड़: मुख्यमंत्री रघुवर दास के गोद लिए लिट्टीपाड़ा प्रखंड के मरीजों की स्थिति काफी खराब है. यहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर सदर अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी मरीज का इलाज नहीं करते हैं बल्कि टाल मटोल करते हैं.
ऐसा ही कुछ हुआ है जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के गुड़ापहाड़ की रहने वाली आदिम जनजाति पहाड़िया दिव्यांग बामड़ी पहाड़िन के साथ. दिव्यांग बामड़ी को प्रसव पीड़ा हुई लेकिन, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने वाले स्वास्थ्य महकमा से जुड़े लोग इसे अस्पताल नहीं पहुंचा पाए और उसने अपने घर में मृत बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को जन्म के बाद बामड़ी दर्द से कराहती रही. परिजनों ने उसे लिट्टीपाड़ा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया. चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों ने बामड़ी का इलाज तो नहीं किया, उल्टे उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया, यह बताकर की उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है.
किसी तरह बामड़ी के परिजन उसे सदर अस्पताल लाए, यहां भी वहीं हुआ जो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में किया गया. सदर अस्पताल के ड्यूटी में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों और चिकित्सकों ने बामड़ी की बीमारी को देखना तो दूर उसकी पीड़ा और कठिनाई को जानने तक की कोशिश नहीं की. उल्टा इसे यह नसीहत देते हुए सदर अस्पताल से लौटा दिया कि उसका इलाज यहां संभव नहीं है.
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आदिम जनजाति दिव्यांग बामड़ी की समस्या सुनकर हिरणपुर प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार भगत अपने साथियों के साथ सदर अस्पताल पहुंचे और मजबूरन इलाज के लिए उसे जिला मुख्यालय के नर्सिंग होम में लाया गया. जैसे ही बामड़ी के निजी नर्सिंग होम में पहुंचने की जानकारी सिविल सर्जन को मिली तो वह कथित रूप से सक्रिय हुए और उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराने के लिए बोला.
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बामड़ी सदर अस्पताल पहुंची भी पर उसका इलाज नहीं हुआ. चिकित्सकों ने उसे परिजनों के हाथ रेफर का पर्ची थमा दिया. बामड़ी के परिजनों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को पकड़ा और दुबारा स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने के साथ-साथ उसे स्वस्थ करने के लिए पाकुड़ नर्सिंग होम में भर्ती करा दिया. फिलहाल बामड़ी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है लेकिन, इस मामले ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन की संवेदनशीलता को सामने ला दिया.
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लोगों के साथ-साथ बामड़ी के परिजनों में भी यह चर्चा आम हो गए कि आखिर मुख्यमंत्री साल में सबसे ज्यादा लिट्टीपाड़ा का भ्रमण कर रहे हैं इसलिए कि यहां रह रहे पहाड़िया और आदिवासियों के जीवनस्तर में बदलाव आएगा, लेकिन अधिकारी अपने नीति और नियत में बदलाव क्यों नहीं ला रहे है. सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होना यह सवाल खड़ा कर रहा है कि आखिर आयुष्मान भारत का लाभ दुरुस्त गांव में रहने वाले ग्रामीणों को पहुंचाने के लिए शासन-प्रशासन कब सजग होगी.
इस मामले में सिविल सर्जन डॉ एस एन झा ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई लापरवाही नहीं की गई है बल्कि उसे प्राथमिक उपचार के बाद रेफर किया गया है. अस्पताल से एबुलेंस भी मुहैया कराया गया था. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य कर्मी नहीं रहने के कारण ही उन्हें रेफर किया गया था.