पाकुड़: जिले का एकमात्र नगर परिषद कार्यालय ही है जहां योजनाओं के क्रियान्वयन लोगों को सुविधा मुहैया कराने से ज्यादा कर्मी और अधिकांश वार्ड पार्षद से लेकर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तक सिर्फ और सिर्फ किसे कितना अधिकार है इसी जाल में फंस गए हैं. नतीजतन नगर विकास की कई महत्वपूर्ण योजनाएं धरातल पर मूर्त रूप नहीं ले पाई हैं और इन योजनाओं का लाभ लेने वाले लोग सरकार को कोसने को मजबूर हैं. इन्हीं योजनाओं में महत्वपूर्ण योजना है प्रधानमंत्री आवास योजना. इस योजना के तहत टाली और फुस के कच्चा मकान में रहने वाले गरीब तबके के लोगों को पक्का मकान देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत की गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना 2022 तक सबको पक्का मकान देने का है, लेकिन इनके सपने को चकनाचूर करने का काम उस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के कार्यकाल में हो रहा है.
मात्र 849 लाभुकों के ही आवास पूरा हो पाए हैं
नगर परिषद से मिली जानकारी के मुताबिक, 2015-16 से वित्तीय वर्ष 2017-18 के फेज थ्री तक 1919 पीएम आवास का लक्ष्य निर्धारित था. इसके विरूद्ध 1857 आवेदन लाभुकों से लिए गए. नगर परिषद ने 1090 के साथ इकरारनामा किया और सभी पर काम भी चालू हुआ, लेकिन इस योजना से जुड़े इंजीनियर हो, संचिका देखने वाले कर्मी हो या संबंधित वार्डों के वार्ड पार्षद सहित अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने जितनी दिलचस्पी योजनाओं को पूरा करवाने में रखनी चाहिए थी नहीं रखा. जिसका नतीजा है कि अबतक मात्र 849 लाभुकों के ही आवास पूरा हो पाए हैं.
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दूसरे के घर में रहकर रात बिताने को मजबूर
नगर परिषद की गरीबों की इस योजना के प्रति संवेदनहीनता का ही तकाजा है कि 767 लाभुकों का आवास निर्माण का काम अब तक चालू नहीं किया गया है. अधूरे आवास सहित जिन लाभुकों का आवास निर्माण का काम अबतक चालू नहीं हुआ है. कई ऐसे लाभुक भी हैं जो इस बरसात के मौसम में नगर परिषद की बेवफाई का दंश झेल रहे हैं और दूसरे के घर में रहकर रात बिताने को मजबूर हैं.
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नगर परिषद काम से ज्यादा अधिकार की लड़ाई में चर्चित रहा है
बता दें कि हाल के दिनों में पाकुड़ का नगर परिषद काम से ज्यादा अधिकार की लड़ाई में चर्चित रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, यदि प्रधानमंत्री आवास की प्रगति में थोड़ा भी दिलचस्पी वार्ड पार्षदों, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने लिया होता तो बरसात के मौसम में एक अदद छत के लिए लालायित गरीब तबके के पीएम आवास योजना के लाभुकों को दूसरे के घरों में अपना सिर छिपाने के लिए शरण नहीं लेना पड़ता.