पाकुड़: जंग-ए-आजादी की कुर्बानी भुला दी गई. स्वतंत्रता सेनानी का परिवार आज गुमनामी के अंधेरे में जी रहा है. स्वतंत्रता सेनानियों और उसके परिवार को सरकारी सुविधा तो दूर उनकी सुध लेने तक की जहमत शासन-प्रशासन में बैठे लोग नहीं उठा रहे. गुलामी से आजादी दिलाने वाले स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय कृपानाथ पांडेय का परिवार गरीबी में जीने को मजबूर है.
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झारखंड के अंतिम छोर में बसे पाकुड़ जिला मुख्यालय के राजापाड़ा मोहल्ले में अपने इस आजादी के मतवाले का परिवार किसी तरह भरण पोषण कर रहा है. शासन और प्रशासन में बैठे लोग इस स्वतंत्रता सेनानी के परिजनों को रोजगार से जोड़ने का काम आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी नहीं कर पाए.
स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय कृपानाथ पांडेय की पुत्रवधू पुष्पा देवी आर्थिक तंगी की वजह से अपना इलाज नहीं करा पाई. जिसके चलते उन्हें लोगों की बातें ठीक से सुनाई नहीं देती. स्वतंत्रता सेनानी के एकमात्र पोता आज दूसरे के यहां काम कर किसी तरह मजदूरी प्राप्त कर अपनी मां, पत्नी सहित बच्चे का भरण पोषण कर रहा है.
स्वर्गीय कृपानाथ पांडेय के पोता कृष्ण मोहन पांडेय ने बताया कि अनेकों बार अधिकारियों के यहां काम की तलाश में चक्कर लगाया, पर कुछ हासिल नहीं हुआ. उन्होंने बताया कि हमारी इच्छा है कि दादा जी की प्रतिमा जिला मुख्यालय में स्थापित हो, साथ ही कोई रोजगार मिल जाए, जिससे उनके परिवार की आगे की जिंदगी बेहतर तरीके से कट सके.
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आज जब हम आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं. दूसरी तरफ अपने इस स्वतंत्रता सेनानी की तीन साल पहले बनायी गयी प्रतिमा मूर्तिकार के दरवाजे के सामने धूल फांकती नजर आ रही है. ऐसा इसलिए हुआ है कि नगर परिषद की ओर से अपने स्वतंत्रता सेनानी की प्रतिमा स्थापित करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया.
जिला मुख्यालय में अनेकों महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित है, पर स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय कृपानाथ पांडेय क्यों नहीं स्थापित की गई. ये सवाल आज लोगों की जेहन में जरूर है. जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में लाठियां खायीं, वर्षों जेल में बंद रहे, उनके बलिदान को शासन-प्रशासन ने भुला दिया.