पाकुड़: जिला हमेशा से अपने कृषि कार्य को लेकर राज्य में अव्वल रहा है. इस जिले के प्रगतिशील किसानों को सरकार हर साल उत्कृष्ट खेती के लिए सम्मानित करती है, लेकिन अब तक सम्मानित किए गए किसानों की आर्थिक पृष्ठभूमि देखी जाए, तो उन्हें सरकारी स्तर से कोई खास सहायता नहीं मिली है, जिसके कारण किसानों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है.
औने-पौने दाम में सब्जियां बेचने को मजबूर
दरअसल, पाकुड़ के महेशपुर प्रखंड में किसानों का सबसे बड़ा सहारा बांसलोई नदी है. अपने खर्च पर इन गांव के किसान पंपसेट किराए पर लाते हैं और खेतों की सिंचाई करते हैं. राज्य बनने के वर्षो बीतने के बाद भी इन किसानों को सरकार समय पर बीज, स्प्रेयर मशीन, पंपसेट, पॉलीहाउस तक नहीं दे पा रही है. यही नहीं सरकार किसानों को बाजार भी मुहैया नहीं करा पायी है. नतीजतन इन किसानों को अपने खेतों में उठाए गए फसलों को दूसरे राज्य से पहुंचे सब्जी के बड़े कारोबारियों को औने पौने दाम में बेचने को मजबूर हैं.
क्या है किसानों का कहना
मामले के बारे में किसानों ने कहा कि झारखंड राज्य अलग बनने के बाद कुछ किसानों को ऑटो दिया गया ताकि अपने उत्पादित फसलों को जिले के साप्ताहिक ऑटो बाजारों में ले जाकर बेच सकें. इस मामले में कृषि विभाग ने मनमाने तरीके से ऑटो का वितरण किया और जो इसके हकदार थे उन्हें ऑटो नहीं मिला. किसानों ने कहा कि जिले में एक भी कोल्ड स्टोर का निर्माण नहीं कराया जा सका है. सरकार यदि सब्जी की खेती में शामिल किसानों को बाजार मुहैया करा दें, समय पर बीज दें और कृषि यंत्र तो वह दिन दूर नहीं होगा जब पाकुड़ के किसान न केवल जिले को सब्जी खेती में आत्मनिर्भर बना देंगे बल्कि अन्य राज्यों से आगे रहेगा.
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किसानों का कहना है कि झारखंड अलग राज्य बनने के बाद संथाल परगना प्रमंडल के ही भाजपा के देवीधन बेसरा, रणधीर सिंह, झामुमो के नलिन सोरेन के बाद कांग्रेस के बादल पत्रलेख जो वर्तमान में चौथे कृषि मंत्री हुए हैं और इन्हीं के क्षेत्र में किसानों की सबसे बदतर स्थिति अबतक रही है.
धरातल पर फीकी दिखी योजना
कृषि के क्षेत्र में जिले को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इमानदारी पूर्वक प्रयास झारखंड राज्य अलग बनने के बाद किया होता तो किसान खुशहाल होते और जिले के अलावे राज्य भी खासकर सब्जी खेती के मामले में आत्मनिर्भर बन गया होता पर अब तक इसलिए नहीं हो पाया है कि किसानों के मनोनुकूल न तो योजनाएं धरातल पर उतारी गई और न ही उनकी इच्छा के अनुसार सरकारी सुविधाएं समय पर उन्हें मुहैया करायी गयी. यही वजह है कि खासकर पाकुड़ जिले के किसान आज भी अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और उदासीनता का दंश झेल रहे हैं. सरकार की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि किसानों को औने-पौने दाम में अपने उत्पादित फसलों और सब्जियों को बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है.
किसानों की मदद के लिए भरसक हो रहा प्रयास
कृषि विभाग के जिला कृषि निरीक्षक आत्माराम साहू ने बताया कि पाकुड़ जिले में आलू 5,837 मैट्रिक टन, टमाटर 2,867, भिंडी 2,287, कद्दू 411, गाजर 190, प्याज 9,251, बिंस 1,387, करैली 250 एवं बैगन 7,821 मैट्रिक टन उत्पादन होता है और कृषि विभाग किसानों को हर संभव मदद कर रही है, किसानों के बीच बीज, पम्पसेट, स्प्रेयर मशीन समय समय पर उपलब्ध कराया जाता है और उनकी समस्याओं को लेकर कृषि विभाग भरसक प्रयास कर रही है.