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पाकुड़: सरकारी नीतियों का असर, बंद हो रहे खदान, मजदूरों से छिन रहा रोजगार - पाकुड़ में सरकारी नीतियों

पाकुड़ में सरकारी नीतियों के कारण काले पत्थरों के खदान कम होते जा रहे हैं. इन बंद होते खदानों ने मजदूरों के सामने आजीविका की समस्या खड़ी कर दी है.

काला पत्थर मजदूर
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Published : Sep 1, 2019, 3:29 PM IST

पाकुड़: सरकारी नीतियां वैसी बनाई जाती हैं जो उद्योग-व्यापार को बढ़ावा दे और लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे खोले. लेकिन पाकुड़ में काला पत्थर व्यवसाय के लिए सरकारी नीतियां ही 'जी का जंजाल' बन गई हैं. इन नीतियों से न केवल जिले में व्यवसाय मंदा पड़ चुका है, बल्कि मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन के लिए भी मजबूर हो रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की लागू की गयी नई नीतियों-शर्तों का व्यवहारिक तौर पर अनुपालन करना खासा मुश्किल साबित हो रहा है.

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जिले में थे कभी खदान ही खदान
झारखंड के बाकी कई जिलों की तरह पाकुड़ खनिज संसाधनों में कभी समृद्ध नहीं था, लेकिन यहां के काले पत्थरों का व्यापार बड़े पैमाने पर देश के बाहर भी हुआ करता था. पहले के आंकड़ों को देखे तो जिले में कभी 585 खान और 800 क्रशर हुआ करते थे, लेकिन आज जिले में मात्र 134 खान और लगभर 200 क्रशर ही बचे रह गए हैं. इस बदली परिस्थिति का सबसे ज्यादा खामियाजा मजदूरों को ही भुगतना पड़ रहा है. रोजगार की तलाश में मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर होते जा रहे हैं.

क्या है सरकारी नीति
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के ओएएनए 123/2014 और एमएएनओ 419/2014 सहित हिम्मत सिंह शेखावत बनाम राजस्थान सरकार और अन्य मामले में पारित आदेश और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के निर्देश पर पत्थर खनन पट्टाधारी मालिकों को पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र के साथ-साथ सीटीओ निर्गत कराना आवश्यक है.

यह भी पढ़ें- स्कूल को बिल्डिंग तक नहीं है नसीब, झोपड़ी में पढ़कर संवार रहे बच्चे अपना भविष्य


क्या कहते हैं व्यवसायी
व्यवसायियों का कहना है कि 2014 के पहले पत्थर खनन पट्टा लेने के लिए माइनिंग प्लान, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र नहीं लेने पड़ते थे. इसके साथ ही लीज भी आसानी से मिल जाया करती थी, लेकिन अब माइनिंग प्लान की अनिर्वायता सुनिश्चित करने, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र लेने जैसी शर्तें अनिर्वाय कर दी गयी है. जिसका असर पाकुड़ के पत्थर उद्योग पर पड़ा है.


क्या हैं मुश्किलें
सरकारी नीतियां जो भी बनाई गई हैं, उनपर अमलीजामा पहनाना मुश्किल है. खदानों के लिए जो भी कागजात बनाने पड़ते हैं, उनमें से कोई भी प्रमाण-पत्र जिला स्तर पर नहीं बनाया जाता. ऐसे में सरकारी नीतियों पर खरे उतरने का जोखिम लेने से इतर खदानों को बंद कर दिया जा रहा है.


ऐसा नहीं है कि नियमों का हो रहा शत-प्रतिशत अनुपालन
जिले में चल रही कई पत्थर खदानों, क्रशरों में आज भी एनजीटी और खान सुरक्षा के नियमों का अनुपालन नहीं हो रहा है. दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक तरफ खान बंद हो रहे हैं तो दूसरी ओर अवैध तरीके से पत्थरों का उत्खनन जारी है. इस मामले में जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास का कहना है कि नियम कानून के तहत ही पत्थर उत्खनन का कार्य होगा. वहीं अवैध खनन माफियाओं पर पुलिस का दबाव लगातार जारी है.


पाकुड़ में पत्थर खनन का काम बदस्तूर जारी रहे इसके लिए जरूरी है कि पाकुड़ के खदान बचे रहे और मजदूरों को पलायन न करना पड़े. इसे लेकर सरकार को नियमों में ढिलाई बरतने की जरूरत है. नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि पाकुड़ का काल पत्थर इतिहास की बात बन जाए.

पाकुड़: सरकारी नीतियां वैसी बनाई जाती हैं जो उद्योग-व्यापार को बढ़ावा दे और लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे खोले. लेकिन पाकुड़ में काला पत्थर व्यवसाय के लिए सरकारी नीतियां ही 'जी का जंजाल' बन गई हैं. इन नीतियों से न केवल जिले में व्यवसाय मंदा पड़ चुका है, बल्कि मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन के लिए भी मजबूर हो रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार की लागू की गयी नई नीतियों-शर्तों का व्यवहारिक तौर पर अनुपालन करना खासा मुश्किल साबित हो रहा है.

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जिले में थे कभी खदान ही खदान
झारखंड के बाकी कई जिलों की तरह पाकुड़ खनिज संसाधनों में कभी समृद्ध नहीं था, लेकिन यहां के काले पत्थरों का व्यापार बड़े पैमाने पर देश के बाहर भी हुआ करता था. पहले के आंकड़ों को देखे तो जिले में कभी 585 खान और 800 क्रशर हुआ करते थे, लेकिन आज जिले में मात्र 134 खान और लगभर 200 क्रशर ही बचे रह गए हैं. इस बदली परिस्थिति का सबसे ज्यादा खामियाजा मजदूरों को ही भुगतना पड़ रहा है. रोजगार की तलाश में मजदूर दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर होते जा रहे हैं.

क्या है सरकारी नीति
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के ओएएनए 123/2014 और एमएएनओ 419/2014 सहित हिम्मत सिंह शेखावत बनाम राजस्थान सरकार और अन्य मामले में पारित आदेश और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के निर्देश पर पत्थर खनन पट्टाधारी मालिकों को पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र के साथ-साथ सीटीओ निर्गत कराना आवश्यक है.

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क्या कहते हैं व्यवसायी
व्यवसायियों का कहना है कि 2014 के पहले पत्थर खनन पट्टा लेने के लिए माइनिंग प्लान, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र नहीं लेने पड़ते थे. इसके साथ ही लीज भी आसानी से मिल जाया करती थी, लेकिन अब माइनिंग प्लान की अनिर्वायता सुनिश्चित करने, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र लेने जैसी शर्तें अनिर्वाय कर दी गयी है. जिसका असर पाकुड़ के पत्थर उद्योग पर पड़ा है.


क्या हैं मुश्किलें
सरकारी नीतियां जो भी बनाई गई हैं, उनपर अमलीजामा पहनाना मुश्किल है. खदानों के लिए जो भी कागजात बनाने पड़ते हैं, उनमें से कोई भी प्रमाण-पत्र जिला स्तर पर नहीं बनाया जाता. ऐसे में सरकारी नीतियों पर खरे उतरने का जोखिम लेने से इतर खदानों को बंद कर दिया जा रहा है.


ऐसा नहीं है कि नियमों का हो रहा शत-प्रतिशत अनुपालन
जिले में चल रही कई पत्थर खदानों, क्रशरों में आज भी एनजीटी और खान सुरक्षा के नियमों का अनुपालन नहीं हो रहा है. दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक तरफ खान बंद हो रहे हैं तो दूसरी ओर अवैध तरीके से पत्थरों का उत्खनन जारी है. इस मामले में जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास का कहना है कि नियम कानून के तहत ही पत्थर उत्खनन का कार्य होगा. वहीं अवैध खनन माफियाओं पर पुलिस का दबाव लगातार जारी है.


पाकुड़ में पत्थर खनन का काम बदस्तूर जारी रहे इसके लिए जरूरी है कि पाकुड़ के खदान बचे रहे और मजदूरों को पलायन न करना पड़े. इसे लेकर सरकार को नियमों में ढिलाई बरतने की जरूरत है. नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि पाकुड़ का काल पत्थर इतिहास की बात बन जाए.

Intro:बाइट : वेणीकांत मरांडी, स्थानीय
बाइट : गायना मरांडी, मजदूर
बाइट : उत्तम विश्वास, जिला खनन पदाधिकारी, पाकुड़

पाकुड़ : प्रदेश और देश में ही नही बल्कि विश्व में काला पत्थर के लिए प्रसिद्ध पाकुड़ में आज हजारो मजदूरो को रोजगार के लाले पड़ रहे है। न केवल मजदूरो को रोजगार का अभाव बल्कि यहां के सैकड़ो व्यवसायियो का पत्थर उद्योग से मोह भंग भी हो रहा है।


Body:ऐसा इसलिए हो रहा है कि केंद्र एवं राज्य सरकार की लागु की गयी नई नीतियां एवं नेशनल ग्रीन ट्रिव्युनल में दी गयी शर्तो का व्यवहारिक तौर पर धरातल पर अनुपालन संभव नही है। सरकार की नीतियो का शत प्रतिशत जिले में अनुपालन हो रहा है यह भी सही नही है पर छोटे छोटे पत्थर कारोबारी इन्ही नियमो एवं कानुनो की वजह से इस उद्योग से जुड़ने के बजाय इससे मुह मोड़ने लगे है नतिजतन जिले में सैकड़ो पत्थर खदाने और क्रशर बंद हो गये है लिहाजा इन खदानो और क्रशरो में काम करने वाले मजदूर वर्षा के दिनो में खेती और अन्य दिनो में दुसरे राज्यो में पलायन करने को मजबुर है आखिर ये पलायन करे भी क्यों न क्योंकि इनके सामने पापी पेट का जो सवाल है।

जिले में आज भी कई पत्थर खदाने और क्रशर मशीने पत्थरो का प्रेषण कर रही है। अधिकांश पत्थर खदानो और क्रशरो में न तो एनजीटी और न ही खान सुरक्षा के नियमो का कोई अनुपालन हो रहा। इस उद्योग की बिडंबना यह भी है कि अवैध तरीके से पत्थरो का उत्खनन और परिवहन एक पत्थर माफिया गिरोह एवं अधिकारियो की सांठगाठ से हो रहा ऐसे में वैद्य तरीके से पत्थरो का कारोबार करने वाले व्यवसायियो को न तो उत्खनित पत्थरो का उचित मुल्य मिल पा रहा है और न ही बाजार। हालांकि प्रशासन और खनन विभाग ने सैकड़ो पत्थर व्यवसायियो के खिलाफ नियमो की अनदेखी को लेकर निरोधात्मक कार्रवाई जरूर की है पर नियम कानुनो के बीच में यदि कोई पीस रहा है तो वह है उत्खनित क्षेत्र में रहने वाले मजदूर।
खनन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्षो पहले सैकड़ो पत्थर खदाने थी और आज वह सीमट कर रह गया है 134 पर। जिले में 180 खदाने बंद हो गयी है। कमोवेश यही स्थिति क्रशर मशीनो की है।व्यवसायियो के मुताबिक पहले 2014 के पहले पत्थर खनन पट्टा लेने के लिए व्यवसायियो को माइनिंग प्लान, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र नही लेने पड़ते थे और इन्हे आसानी से लीज मिल जाता था परंतु अब माइनिंग प्लान की अनिर्वायता सुनिश्चित करने, पर्यावरणीय स्वच्छता प्रमाण पत्र लेने जैसी शर्ते अनिर्वाय कर दी गयी है और इसका असर भी पाकुड़ के पत्थर उद्योग पर पड़ा है।


Conclusion:जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास का कहना है कि नियम कानून के तहत ही पत्थर उत्खनन का कार्य होगा। उन्होनो बताया कागजात के अभाव के कई क्रशर व खदानों को सील कर दिया गया है।
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