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दम तोड़ रहा स्वस्थ झारखंड-सुखी झारखंड का सपना, यहां पहुंचते ही कर दिया जाता है रेफर

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Published : Jul 13, 2019, 5:07 PM IST

पाकुड़ में झारखंड सरकार के दावों की पोल खुलती दिख रही है, स्वास्थ्य विभाग की नाकमी साफ तौर पर देखी जा सकती है. यहां सदर अस्पताल में छोटी से बड़ी बीमारी तक के लिए सिर्फ दवा देकर विदा कर दिया जाता है.

दम तोड़ रहा सदर अस्पताल

पाकुड़: स्वस्थ झारखंड और सुखी झारखंड के नारे को यदि तार-तार होते देखना है तो पाकुड़ सदर अस्पताल पहुंच जाइए. क्योंकि यहां गंभीर रोग से ग्रसित मरीज हो या दुर्घटना में घायल गंभीर मरीज ही नहीं बल्कि उनके परिजन भी जैसे ही सदर अस्पताल के चिकित्सक यह कहते हैं कि मरीज को तो रेफर करना होगा.

देखें पूरी खबर

झारखंड राज्य का पाकुड़ जिला सबसे पिछड़े जिले की श्रेणी में आता है, आदिवासी बहुल इस जिले में रहने वाले अधिकांश लोग शैक्षणिक और आर्थिक दोनों स्तर से कमजोर है. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में 100 बेड वाले सदर अस्पताल का उदघाटन हुआ था. उन्होंने अस्पताल का उदघाटन किया था, सदर अस्पताल के शुरू होने से जिले के लोगो में आस जगी थी कि उन्हें भी बेहतर स्वास्थ सुविधा का लाभ मिलेगा और स्वस्थ झारखंड सुखी झारखंड का सपना साकार होगा लेकिन लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

सरकार की उदासीनता कहें या जिले में रहने वाले लोगों का दुर्भाग्य झारखंड राज्य की कमान संभालने का मौका भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस समेत सभी दलों के नेताओं ने भोगा पर पाकुड़ जिले के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के मामले में कुछ खास नहीं कर पाये.

आज भी सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल लोग हो या गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज इलाज के लिए निकटवर्ती पश्चिम बंगाल सहित दुसरे राज्यो में जाने को विवश हैं. क्योंकि जैसे ही ये मरीज सदर अस्पताल में भर्ती होते हैं प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सीधा यह कह दिया जाता कि पेंशेंट को बाहर रेफर करना होगा. सदर अस्पताल जिले के लोगों के लिए एक तरह से रेफरल अस्पताल हो गया है. ऐसा इसलिए कि अलग राज्य बनने के बाद भी यहां शिशु विशेषज्ञ, हड्डी विशेषज्ञ, नेत्र विशेषज्ञ, सर्जन, रेडियोलोजिस्ट, एमडी फिजीशियन का पदस्थापन नही हो पाया. कुछ विशेषज्ञ डॉक्टर यहां भेजे भी गये परंतु अपनी पैरवी और पहुंच के बल पर इन्होने भी पाकुड़ को कम समय में ही बाय-बाय कर दिया.

ये भी पढे़ं- कैसे पढ़ेंगी बेटियां? इस स्कूल में 2 शिक्षक के भरोसे 300 छात्राएं

यहां आज भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की घोर कमी है, इतना ही नहीं अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन की भी व्यवस्था अब तक नहीं हुई है. प्रतिदिन सदर अस्पताल में 2 से 3 सौ मरीज स्वास्थ लाभ लेने के लिए यहां पहुंचते हैं और उन्हें दवा देकर विदा कर दिया जाता.

पाकुड़: स्वस्थ झारखंड और सुखी झारखंड के नारे को यदि तार-तार होते देखना है तो पाकुड़ सदर अस्पताल पहुंच जाइए. क्योंकि यहां गंभीर रोग से ग्रसित मरीज हो या दुर्घटना में घायल गंभीर मरीज ही नहीं बल्कि उनके परिजन भी जैसे ही सदर अस्पताल के चिकित्सक यह कहते हैं कि मरीज को तो रेफर करना होगा.

देखें पूरी खबर

झारखंड राज्य का पाकुड़ जिला सबसे पिछड़े जिले की श्रेणी में आता है, आदिवासी बहुल इस जिले में रहने वाले अधिकांश लोग शैक्षणिक और आर्थिक दोनों स्तर से कमजोर है. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में 100 बेड वाले सदर अस्पताल का उदघाटन हुआ था. उन्होंने अस्पताल का उदघाटन किया था, सदर अस्पताल के शुरू होने से जिले के लोगो में आस जगी थी कि उन्हें भी बेहतर स्वास्थ सुविधा का लाभ मिलेगा और स्वस्थ झारखंड सुखी झारखंड का सपना साकार होगा लेकिन लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है.

सरकार की उदासीनता कहें या जिले में रहने वाले लोगों का दुर्भाग्य झारखंड राज्य की कमान संभालने का मौका भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस समेत सभी दलों के नेताओं ने भोगा पर पाकुड़ जिले के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने के मामले में कुछ खास नहीं कर पाये.

आज भी सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल लोग हो या गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीज इलाज के लिए निकटवर्ती पश्चिम बंगाल सहित दुसरे राज्यो में जाने को विवश हैं. क्योंकि जैसे ही ये मरीज सदर अस्पताल में भर्ती होते हैं प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें सीधा यह कह दिया जाता कि पेंशेंट को बाहर रेफर करना होगा. सदर अस्पताल जिले के लोगों के लिए एक तरह से रेफरल अस्पताल हो गया है. ऐसा इसलिए कि अलग राज्य बनने के बाद भी यहां शिशु विशेषज्ञ, हड्डी विशेषज्ञ, नेत्र विशेषज्ञ, सर्जन, रेडियोलोजिस्ट, एमडी फिजीशियन का पदस्थापन नही हो पाया. कुछ विशेषज्ञ डॉक्टर यहां भेजे भी गये परंतु अपनी पैरवी और पहुंच के बल पर इन्होने भी पाकुड़ को कम समय में ही बाय-बाय कर दिया.

ये भी पढे़ं- कैसे पढ़ेंगी बेटियां? इस स्कूल में 2 शिक्षक के भरोसे 300 छात्राएं

यहां आज भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की घोर कमी है, इतना ही नहीं अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन की भी व्यवस्था अब तक नहीं हुई है. प्रतिदिन सदर अस्पताल में 2 से 3 सौ मरीज स्वास्थ लाभ लेने के लिए यहां पहुंचते हैं और उन्हें दवा देकर विदा कर दिया जाता.

Intro:बाइट : अमित कुमार, चिकित्सक
बाइट : सुदीप चंद्र, हॉस्पिटल मैनेजर
पाकुड़: स्वस्थ झारखंड और सुखी झारखंड के नारे को यदि तार तार होते देखना है तो पाकुड़ सदर अस्पताल जरूर पहुंचे क्योंकि यहां गंभीर रोग से ग्रसित मरीज हो या दुर्घटना में घायल अति गंभीर मरीज ही नही बल्कि उनके परिजन भी जैसे ही सदर अस्पताल के चिकित्सक यह कहते है कि मरीज को तो रेफर करना होगा। बर्बस उनके मुह से निकलता है बाप रे बाप।


Body:झारखंड राज्य का पाकुड़ जिला सबसे पिछड़े जिले की श्रेणी में आता है। आदिवासी बहुल इस जिले में रहने वाले अधिकांश लोग शैक्षणिक और आर्थिक दोनो स्तर से कमजोर है। तत्कालिन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में 100 शैय्या वाले सदर अस्पताल का उदघाटन हुआ था। खुद श्री मुंडा अस्पताल का उदघाटन किया था। सदर अस्पताल के चालु होने से जिले के लोगो में खासकर स्वास्थ सुविधा के लिए आस जगी थी कि उन्हे भी बेहतर स्वास्थ सुविधा का लाभ मिलेगा और स्वस्थ झारखंड सुखी झारखंड का सपना साकार होगा परंतु हो रहा है ठिक इसका उल्टा। 
सरकार की उदासिनता कहे या जिले में रहने वाले लोगो का दुर्भाग्य झारखंड राज्य की कमान संभाला एवं सत्ता सुख भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस सभी दलो के नेता ने भोगा पर पाकुड़ जिले के लोगो को बेहतर स्वास्थ सुविधा दिलाने के मामले में कुछ खास नही कर पाये। आज भी सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल लोग हो या गंभीर बिमारी से ग्रसित मरीज इलाज के लिए निकटवर्ती पश्चिम बंगाल सहित दुसरे राज्यो में जाने को विवश है क्योंकि जैसे ही ये मरीज सदर अस्पताल में भर्ती होते है प्राथमिक उपचार के बाद उन्हे सीधा यह कह दिया जाता कि पेंसेंट को बाहर रेफर करना होगा। सदर अस्पताल जिले के लोगो के लिए एक तरह से रेफरल अस्पताल हो गया है ऐसा इसलिए कि अलग राज्य बनने के बाद भी यहां शिशु विशेषज्ञ, हड्डी विशेषज्ञ, नेत्र विशेषज्ञ, सर्जन, रेडियोलोजिस्ट, एमडी फिजीशियन का पदस्थापन नही हो पाया। कुछ विशेषज्ञ डाॅक्टर यहां भेजे भी गये परंतु अपनी पैरवी और पहुंच के बल पर इन्होने भी पाकुड़ को कम समय में ही बाय बाय कर दिया।
आज भी विशेषज्ञ डाॅक्टरो की घोर कमी है। इतना ही नही अल्ट्रासाउंड, सीटीस्कैन की भी व्यवस्था अबतक नही हुई है। प्रतिदिन सदर अस्पताल में 2 से 3 सौ मरीज स्वास्थ लाभ लेने के लिए यहां पहुंचते है और उन्हे दवा की गोली सिरप देकर विदा कर दिया जाता। गंभीर रोग से बिमार एवं सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल मरीज जो स्वास्थ सुविधाए उन्हे सदर अस्पताल में मिलनी चाहिए नही मिल पा रही है। 



Conclusion:चिकित्सको की कमी एवं सुविधाओ का अभाव के कारण कई बार तो चिकित्सको को भी मरीजो के परिजनो के गुस्से का शिकार भी होना पड़ा है। 
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