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जूट का थैला बना महिलाएं सपने कर रहीं साकार, बांस का बैग बनाकर दिखा रहीं तरक्की की राह

लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड में कई महिलाएं आज आत्मनिर्भर हो रहीं हैं. ये महिलाएं बांस का बैग और जूट का थैला बनाकर बाजारों में बेच रहीं हैं, जिससे उनकी अच्छी कमाई हो रही है. इन महिलाओं को लावापानी नाम की कंपनी का सहयोग भी मिल रहा है.

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आत्मनिर्भर होती महिलाएं
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Published : Mar 8, 2021, 5:37 AM IST

लोहरदगा: जिले के सेन्हा पतराटोली में महिलाओं की जरूरत को महिलाओं ने समझा है. यहां बांस का बैग और जूट का थैला महिलाओं की जिंदगी संवार रहा है. महज कुछ घंटों की मेहनत से महिलाएं विशेष प्रकार के बांस से बैग और जूट का थैला तैयार कर रहीं हैं, जिसे बाजारों में बेचा जा रहा है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र में इसके लिए एक बिक्री केंद्र भी है, जहां पर महिलाओं के तैयार किए गए बैग को बेचा जाता है.

देखें स्पेशल स्टोरी

इसे भी पढे़ं: लोहरदगा में डेड उपकरणों के भरोसे अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था, आग लगने पर हो सकता है बड़ा हादसा

महिलाओं के हाथों में जंच रहे असोम के बांस के बैग
लोहरदगा जिले के सेन्हा पतराटोली की रहने वाली ईस्टर लकड़ा ने 10 साल पहले सीसीडीएस संस्था से हस्तशिल्प कला का 2 महीने तक प्रशिक्षण लिया था, जिसमें उन्होंने बांस का बैग और जूट का थैला बनाने का गुर सिखा. उसके बाद ईस्टर ने इस काम को अपने जीविकोपार्जन का जरिया बना लिया. धीरे-धीरे कर अपने आसपास रहने वाली महिलाओं को भी इससे जोड़ा गया. आज कई महिलाएं मिलकर जूट का थैला और बैग बनाकर बाजारों में बेच रही हैं.

आसानी से उपलब्ध हो जाता है कच्चा माल और बाजार
जूट झारखंड के अलग-अलग स्थानों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. वहीं विशेष प्रकार का पतला बांस असोम से डाक के माध्यम से मंगाया जाता है. इससे तैयार होने वाला बैग और थैला बेहद आकर्षक होता है. महिलाएं कुछ समय की मेहनत से अच्छी कमाई कर रहीं हैं. यहां की महिलाओं ने 40 हजार रुपये ऋण लेकर इस काम को शुरू किया है.

इसे भी पढे़ं: लोहरदगाः डांडू पंचायत का अस्पताल भवन लापता, जानें क्या है माजरा

एक बैग बनाने में महज तीन सौ रुपये का खर्च
बांस का एक बैग बनाने में तीन सौ रुपये का खर्च आता है. जिसे बाजारों में पांच से छह सौ रुपये तक में बेचा जाता है. वहीं जूट का थैला भी बाजारों में चार सौ से 500 रुपये में बिक जाता है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के मुख्य डाकघर के पास एक बिक्री केंद्र भी है, जहां पर महिलाओं के तैयार किए गए जूट का थैला और बैग बेचा जाता है. यहां पर कई लोग आकर खरीददारी करते हैं. इस काम में महिलाओं को लावापानी नामक कंपनी सहयोग करती है. दूसरी कंपनियां भी महिलाओं के बनाए बैग और थैले खरीद रही हैं. इस काम से जुड़ी महिलाएं महीने में 4 से 5 हजार रुपये घर बैठे आसानी से कमा लेती हैं. जब कभी हस्तशिल्प कला को लेकर किसी दूसरे जिला या प्रदेश में प्रदर्शनी का आयोजन होता है, तो वहां भी महिलाएं बैग और थैला लेकर जाती हैं, जहां बैग और थैला की और भी अच्छी कीमत मिलती है. अब तक इन महिलाओं ने रांची, दिल्ली, मुंबई आदि स्थानों में स्टॉल लगाकर अपने हुनर को प्रदर्शित किया है.

कई महिलाएं आज हैं खुशहाल
लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड में रहने वाली आधा दर्जन महिलाएं आज खुशहाल हैं. उन्हें घर से बाहर जाना नहीं पड़ता है. घर बैठे कुछ घंटों की मेहनत से वह परिवार के लिए आर्थिक सहारा बन गई हैं. इस कारोबार से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि इस काम से सबसे बड़ा फायदा यह है कि न तो बाजार के लिए भटकने की स्थिति है और न ही कच्चा माल के लिए परेशान होना पड़ता है, सब कुछ आसानी से हो जाता है और कमाई भी हो जाती है.

लोहरदगा: जिले के सेन्हा पतराटोली में महिलाओं की जरूरत को महिलाओं ने समझा है. यहां बांस का बैग और जूट का थैला महिलाओं की जिंदगी संवार रहा है. महज कुछ घंटों की मेहनत से महिलाएं विशेष प्रकार के बांस से बैग और जूट का थैला तैयार कर रहीं हैं, जिसे बाजारों में बेचा जा रहा है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र में इसके लिए एक बिक्री केंद्र भी है, जहां पर महिलाओं के तैयार किए गए बैग को बेचा जाता है.

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महिलाओं के हाथों में जंच रहे असोम के बांस के बैग
लोहरदगा जिले के सेन्हा पतराटोली की रहने वाली ईस्टर लकड़ा ने 10 साल पहले सीसीडीएस संस्था से हस्तशिल्प कला का 2 महीने तक प्रशिक्षण लिया था, जिसमें उन्होंने बांस का बैग और जूट का थैला बनाने का गुर सिखा. उसके बाद ईस्टर ने इस काम को अपने जीविकोपार्जन का जरिया बना लिया. धीरे-धीरे कर अपने आसपास रहने वाली महिलाओं को भी इससे जोड़ा गया. आज कई महिलाएं मिलकर जूट का थैला और बैग बनाकर बाजारों में बेच रही हैं.

आसानी से उपलब्ध हो जाता है कच्चा माल और बाजार
जूट झारखंड के अलग-अलग स्थानों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. वहीं विशेष प्रकार का पतला बांस असोम से डाक के माध्यम से मंगाया जाता है. इससे तैयार होने वाला बैग और थैला बेहद आकर्षक होता है. महिलाएं कुछ समय की मेहनत से अच्छी कमाई कर रहीं हैं. यहां की महिलाओं ने 40 हजार रुपये ऋण लेकर इस काम को शुरू किया है.

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एक बैग बनाने में महज तीन सौ रुपये का खर्च
बांस का एक बैग बनाने में तीन सौ रुपये का खर्च आता है. जिसे बाजारों में पांच से छह सौ रुपये तक में बेचा जाता है. वहीं जूट का थैला भी बाजारों में चार सौ से 500 रुपये में बिक जाता है. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के मुख्य डाकघर के पास एक बिक्री केंद्र भी है, जहां पर महिलाओं के तैयार किए गए जूट का थैला और बैग बेचा जाता है. यहां पर कई लोग आकर खरीददारी करते हैं. इस काम में महिलाओं को लावापानी नामक कंपनी सहयोग करती है. दूसरी कंपनियां भी महिलाओं के बनाए बैग और थैले खरीद रही हैं. इस काम से जुड़ी महिलाएं महीने में 4 से 5 हजार रुपये घर बैठे आसानी से कमा लेती हैं. जब कभी हस्तशिल्प कला को लेकर किसी दूसरे जिला या प्रदेश में प्रदर्शनी का आयोजन होता है, तो वहां भी महिलाएं बैग और थैला लेकर जाती हैं, जहां बैग और थैला की और भी अच्छी कीमत मिलती है. अब तक इन महिलाओं ने रांची, दिल्ली, मुंबई आदि स्थानों में स्टॉल लगाकर अपने हुनर को प्रदर्शित किया है.

कई महिलाएं आज हैं खुशहाल
लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड में रहने वाली आधा दर्जन महिलाएं आज खुशहाल हैं. उन्हें घर से बाहर जाना नहीं पड़ता है. घर बैठे कुछ घंटों की मेहनत से वह परिवार के लिए आर्थिक सहारा बन गई हैं. इस कारोबार से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि इस काम से सबसे बड़ा फायदा यह है कि न तो बाजार के लिए भटकने की स्थिति है और न ही कच्चा माल के लिए परेशान होना पड़ता है, सब कुछ आसानी से हो जाता है और कमाई भी हो जाती है.

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