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विश्व आदिवासी दिवस: परंपरा के हथौड़े से नहीं बन पाया भविष्य का औजार, आर्थिक स्थिति आज भी खराब

लोहरदगा जिले में लोहार परिवार मौजूदा समय में भारी विकट परिस्थितियों में जिवन व्यतित कर रहे हैं. इनके व्यवसाय से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं होता हो. परिवार की सुख सुविधाएं नहीं मिल पाती, लेकिन लोहार परिवार आज भी अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए संघर्ष कर रहा है.

परंपरा के हथौड़े से नहीं बन पाया भविष्य का औजार
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Published : Aug 8, 2019, 11:24 PM IST

लोहरदगा: जिले में लोहार परिवार मौजूदा समय की विकट परिस्थितियों में अपने पारंपरिक व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं. भले ही इस व्यवसाय से उसके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ना होता हो. परिवार की सुख सुविधाएं ना खरीद पाता हो, लेकिन लोहार परिवार आज भी अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए संघर्ष कर रहा है.

वीडियो में देखिए स्पेशल रिपोर्ट

सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए इस समुदाय के लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. सिर्फ लोहरदगा जिले में लगभग इनकी आबादी 2 हजार परिवारों की है. इसके अलावा झारखंड के अलग-अलग जिलों में भी लोहार परिवार के सदस्य रहते हैं. इन परिवारों के पास रोजगार का कोई ठोस आधार नहीं है. सरकार की ओर से आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. हालात ऐसे हैं कि इनका जाति प्रमाण पत्र तक नहीं बन पाता. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पा रही.

विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर लोहार समाज की स्थिति को लेकर चिंतन करने की जरूरत महसूस की जा रही है. परंपरागत रूप से अपने व्यवसाय को लेकर संघर्ष करने वाले इस समुदाय के लोग प्रकृति के पूजक हैं. बावजूद इसके आज तक इन्हें कोई अधिकार मिल नहीं पाया है. आधुनिकता की मार सबसे ज्यादा इस समुदाय के लोगों के रोजगार पर पड़ी है. औद्योगिकरण हुआ तो परंपरागत व्यवसाय को सबसे पहले नुकसान पहुंचा. लोहार समाज के लोग लोहे के कृषि उपकरण और दैनिक उपयोग में आने वाले सामान बनाते हैं.

कल-कारखानों में बने कृषि औजार की मांग बढ़ने लगी तो लोहार समाज द्वारा निर्मित औजारों की मांग कम होने लगी. आज तो हालत ऐसे हैं कि हजार-दो हजार रुपए भी इस व्यवसाय से आमदनी कर पाना मुश्किल हो चुका है. इस व्यवसाय के सहारे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. सरकार की ओर से रोजगार को जिंदा रखने को लेकर कोई सहयोग मिल नहीं पाता है.

बलदेव साहू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर लोहरा उरांव कहते हैं कि इनके पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह अशिक्षित होना है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पाई है. जागरूकता का अभाव है. सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. औद्योगिक करण का भी काफी प्रभाव पड़ा है. इन्हें जागरूक होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. सरकार को भी इनके हालात को लेकर चिंता करने की जरूरत है.

लोहरदगा: जिले में लोहार परिवार मौजूदा समय की विकट परिस्थितियों में अपने पारंपरिक व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं. भले ही इस व्यवसाय से उसके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ना होता हो. परिवार की सुख सुविधाएं ना खरीद पाता हो, लेकिन लोहार परिवार आज भी अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए संघर्ष कर रहा है.

वीडियो में देखिए स्पेशल रिपोर्ट

सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए इस समुदाय के लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. सिर्फ लोहरदगा जिले में लगभग इनकी आबादी 2 हजार परिवारों की है. इसके अलावा झारखंड के अलग-अलग जिलों में भी लोहार परिवार के सदस्य रहते हैं. इन परिवारों के पास रोजगार का कोई ठोस आधार नहीं है. सरकार की ओर से आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. हालात ऐसे हैं कि इनका जाति प्रमाण पत्र तक नहीं बन पाता. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पा रही.

विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर लोहार समाज की स्थिति को लेकर चिंतन करने की जरूरत महसूस की जा रही है. परंपरागत रूप से अपने व्यवसाय को लेकर संघर्ष करने वाले इस समुदाय के लोग प्रकृति के पूजक हैं. बावजूद इसके आज तक इन्हें कोई अधिकार मिल नहीं पाया है. आधुनिकता की मार सबसे ज्यादा इस समुदाय के लोगों के रोजगार पर पड़ी है. औद्योगिकरण हुआ तो परंपरागत व्यवसाय को सबसे पहले नुकसान पहुंचा. लोहार समाज के लोग लोहे के कृषि उपकरण और दैनिक उपयोग में आने वाले सामान बनाते हैं.

कल-कारखानों में बने कृषि औजार की मांग बढ़ने लगी तो लोहार समाज द्वारा निर्मित औजारों की मांग कम होने लगी. आज तो हालत ऐसे हैं कि हजार-दो हजार रुपए भी इस व्यवसाय से आमदनी कर पाना मुश्किल हो चुका है. इस व्यवसाय के सहारे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. सरकार की ओर से रोजगार को जिंदा रखने को लेकर कोई सहयोग मिल नहीं पाता है.

बलदेव साहू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर लोहरा उरांव कहते हैं कि इनके पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह अशिक्षित होना है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पाई है. जागरूकता का अभाव है. सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. औद्योगिक करण का भी काफी प्रभाव पड़ा है. इन्हें जागरूक होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. सरकार को भी इनके हालात को लेकर चिंता करने की जरूरत है.

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स्टोरी- स्पेशल : विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष: परंपरा के हथौड़े से नहीं बन पाया भविष्य का औजार, आर्थिक स्थिति आज भी खराब
... लोहार समाज का सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक स्थिति काफी बदहाल, सरकार का भी ध्यान नहीं

विजुअल में क्रमवार रुप से :
बाइट- 1- सुंदरमनी देवी, सदस्य , लोहार परिवार, मुरकी गांव
बाइट-2- फूलों देवी, सदस्य , लोहार परिवार, मुरकी गांव
बाइट-3- संतोषी देवी,सदस्य , लोहार परिवार, मुरकी गांव
बाइट-4- गोपाल लोहार, सदस्य , लोहार परिवार, मुरकी गांव
बाइट-5- प्रोफेसर लोहरा उरांव, पूर्व प्राचार्य, बीएस कॉलेज, लोहरदगा
एंकर- हथौड़े से लोहे को पीटने की आवाज यदि आपको सुनाई दे तो समझ लीजिए कि आपके आसपास कोई लोहार परिवार रहता है. लोहार परिवार आज भी विकट परिस्थितियों में अपने पारंपरिक व्यवसाय को जीवित रखे हुए हैं. भले ही इस व्यवसाय से उसके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ ना होता हो.परिवार की सुख सुविधाएं ना खरीद पाता हो, परंतु लोहार परिवार आज भी अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए संघर्ष कर रहा है. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए इस समुदाय के लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. सिर्फ लोहरदगा जिले में लगभग इनकी आबादी 2000 परिवारों की है. इसके अलावे झारखंड के अलग-अलग जिलों में भी लोहार परिवार के सदस्य रहते हैं. इन परिवारों के पास रोजगार का कोई ठोस आधार नहीं है.सरकार की ओर से आरक्षण की व्यवस्था नहीं है. हालात ऐसे हैं कि इनका जाति प्रमाण पत्र तक नहीं बन पाता. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पा रही. ऐसे हालात में इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर लोहार समाज की स्थिति को लेकर चिंतन करने की जरूरत महसूस की जा रही है. परंपरागत रूप से अपने व्यवसाय को लेकर संघर्ष करने वाले इस समुदाय के लोग प्रकृति के पूजक हैं. बावजूद इसके आज तक इन्हें कोई अधिकार मिल नहीं पाया है.

इंट्रो- आधुनिकता की मार सबसे ज्यादा इस समुदाय के लोगों के रोजगार पर पड़ी है. औद्योगिकरण हुआ तो परंपरागत व्यवसाय को सबसे पहले नुकसान पहुंचा. लोहार समाज के लोग लोहे के कृषि उपकरण और दैनिक उपयोग में आने वाले सामान बनाते हैं. कल-कारखानों में बने कृषि औजार की मांग बढ़ने लगी तो लोहार समाज द्वारा निर्मित औजारों की मांग कम होने लगी. आज तो हालत ऐसी है कि हजार-दो हजार रुपए भी इस व्यवसाय से आमदनी कर पाना मुश्किल हो चुका है. इस व्यवसाय के सहारे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. सरकार की ओर से रोजगार को जिंदा रखने को लेकर कोई सहयोग मिल नहीं पाता है. बलदेव साहू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर लोहरा उरांव कहते हैं कि इनके पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह से शैक्षणिक है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पाई है. जागरूकता का अभाव है. सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. औद्योगिकिकरण का भी काफी प्रभाव पड़ा है. इन्हें जागरूक होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. सरकार को भी इनके हालात को लेकर चिंता करने की जरूरत है. बहराल लोहार समाज की आर्थिक हालत कहीं ना कहीं यह बता रही है कि विकास की दौड़ जब शुरू होती है तो सबसे पहले परंपरा को नुकसान पहुंचाती है.


Body:आधुनिकता की मार सबसे ज्यादा इस समुदाय के लोगों के रोजगार पर पड़ी है. औद्योगिकरण हुआ तो परंपरागत व्यवसाय को सबसे पहले नुकसान पहुंचा. लोहार समाज के लोग लोहे के कृषि उपकरण और दैनिक उपयोग में आने वाले सामान बनाते हैं. कल-कारखानों में बने कृषि औजार की मांग बढ़ने लगी तो लोहार समाज द्वारा निर्मित औजारों की मांग कम होने लगी. आज तो हालत ऐसी है कि हजार-दो हजार रुपए भी इस व्यवसाय से आमदनी कर पाना मुश्किल हो चुका है. इस व्यवसाय के सहारे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. सरकार की ओर से रोजगार को जिंदा रखने को लेकर कोई सहयोग मिल नहीं पाता है. बलदेव साहू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर लोहरा उरांव कहते हैं कि इनके पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह से शैक्षणिक है. सरकार की योजनाएं इन तक पहुंच नहीं पाई है. जागरूकता का अभाव है. सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. औद्योगिकिकरण का भी काफी प्रभाव पड़ा है. इन्हें जागरूक होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है. सरकार को भी इनके हालात को लेकर चिंता करने की जरूरत है. बहराल लोहार समाज की आर्थिक हालत कहीं ना कहीं यह बता रही है कि विकास की दौड़ जब शुरू होती है तो सबसे पहले परंपरा को नुकसान पहुंचाती है.


Conclusion:लोहार समाज के लोग लोहे के कृषि उपकरण और दैनिक उपयोग में आने वाले सामान बनाते हैं. कल-कारखानों में बने कृषि औजार की मांग बढ़ने लगी तो लोहार समाज द्वारा निर्मित औजारों की मांग कम होने लगी.
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