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आजादी की लड़ाई के गुमनाम सिपाही हैं टाना भगत, स्वतंत्रता आंदोलन में थी इनकी बड़ी भूमिका - Tana Bhagat community

स्वतंत्रता दिवस पर देशभक्ति की बातें तो काफी होती है, लेकिन आजादी के सच्चे सिपाही टाना भगतों को याद करना हर कोई भूल जाता है. देश के लिए जान देने वाले टाना भगत आज विकास से कोसों दूर है. उनकी जिंदगी के कई पहलूओं को स्पर्श करती, पेश है एक खास रिपोर्ट

चरखा चलाते टाना भगत
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Published : Aug 14, 2019, 2:52 PM IST

लोहरदगाः टाना भगत, इन्हें आजादी की लड़ाई का गुमनाम सिपाही कहे तो गलत नहीं होगा. आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बावजूद आज भी इतिहास के पन्नों में टाना भगत समुदाय को वह स्थान नहीं मिल पाया है, जिसके वे हकदार हैं. साल 1912 में टाना भगतों ने आंदोलन शुरू किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी

महात्मा गांधी के विचारों और जीवनचर्या का रहा है खास प्रभाव

दक्षिणी छोटानागपुर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ टाना भगतों के जुड़ाव की बात करें, तो रांची के मुड़मा में टाना भगतों के साथ महात्मा गांधी की मुलाकात हुई थी. इसके बाद से टाना भगतों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी. टाना भगत समुदाय के लोग लोहरदगा, गुमला, लातेहार जैसे क्षेत्रों में सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहते आए है. लोहरदगा के कुडू, किस्को, सेन्हा, लोहरदगा आदि प्रखंड में टाना भगत समुदाय के लोग रहते हैं. आज भी इनकी संस्कृति उरांव जनजाति के आसपास घूमती आ रही है. मूल रूप से आदिवासी परंपरा को अपनाने वाले टाना भगत समुदाय के लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर ही चलते आ रहे हैं.

आदिवासी संस्कृति के अलावा टाना भगत संस्कृति को इन्होंने जन्म दिया है. इनके जीवन में खादी का विशेष रूप से महत्व है. खादी की टोपी, खादी का कुर्ता, खादी का थैला इनका पहनावा है. अशोक चक्र की बजाए चरखा वाले तिरंगा की ही यह पूजा करते आए हैं. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर तिरंगा फहराने से पहले यह उसकी पूजा करते हैं.

सालों भर तिरंगा फहरता है इनके घरों में

टाना भगत परिवार के लोग आज भी खेती बाड़ी करना और अपने समुदाय के लोगों के बीच रहना ही पसंद करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोगों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का पालन आज तक किया है. वह हिंसा से पूरी तरह से दूर रहते हैं. सालों भर इनके घरों में तिरंगा फहरा रहता है. घर में कृषि उपकरण पुरातन समय से चले आ रहे खेती के सामान आज भी नजर आते हैं. अमूमन हर टाना भगत के घर में एक चरखा जरूर होता है. जिससे यह सूत काटने का काम करते हैं.

स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने के बाद भी नहीं मिला अधिकार
टाना भगत समुदाय के लोग महिलाओं को भी समान रूप से महत्व देते हैं. इनके परिवार में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं होता. टाना भगतों को बस इतना मलाल है कि स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के बावजूद, आज तक इन्हें उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. जमीन में दखल नहीं हो पाया है. अंग्रेजी शासन के दौरान टाना भगत समुदाय की जो जमीन नीलाम हुई थी, वह जमीन आज तक उन्हें मिल नहीं पाई है.

कास्तकारी अधिनियम को लागू करने की मांग टाना भगत समुदाय के लोग करते हैं. जमीन के लिए एक रुपए भी लगान देने से साफ इंकार करते हैं. बच्चों की निःशुल्क पढ़ाई, बस और ट्रेन में निःशुल्क यात्रा की मांग रही है. इसके अलावा भी कई ऐसी मांगें हैं, जिसे टाना भगत समुदाय के लोग सरकार को समझा भी नहीं पाए हैं. राहुल गांधी के रांची आगमन के अवसर पर टाना भगतों ने उनसे मिलकर अपनी मांगों से अवगत कराया था. इसके अलावा भाजपा के दिग्गज नेताओं से भी अपनी मांगों से अवगत करा चुके हैं. फिर भी टाना भगतों की सभी मांग आज तक पूरी नहीं हो पाई है. टाना भगत समुदाय में शिक्षा का घोर अभाव दिखाई देता है. युवा भी थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के बाद रोजगार की तलाश में यहां वहां भटकते रहते हैं.

टाना भगतों के सक्रिय आंदोलन की बात करें तो 1912-14 में टाना भगतों ने ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन छेड़ा था. लगान, सरकारी टैक्स आदि भरने और कुली के रूप में मजदूरी करने से साफ मना कर दिया. इन्होंने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान से प्रेरित होकर अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन में समर्पित कर दिया था. 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों की बड़ी आबादी गांधी के सत्याग्रह से भी जुड़ी थी.

ये भी पढ़ें- देवघर दौरे पर सांसद निशिकांत दूबे, कहा- गैर भाजपा मेयर है गोड्डा के विकास का ब…

काफी पुराना रहा है इनका इतिहास

लोहरदगा के कुडू थाने में वर्ष 1942 में टाना भगतों ने तिरंगा फहराया था. टाना भगतों का इतिहास काफी पुराना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से डेढ़ सौ से ज्यादा टाना भगतों को जेल भी जाना पड़ा था. जिसमें से 6 टाना भगतों की मौत भी हो गई थी. टाना भगतों की इतिहास की बात करें, तो जतरा टाना भगत इनके नेतृत्व कर्ता रहे हैं.

गुमला जिले के विशुनपुर थाना क्षेत्र के चिंगरी के रहने वाले जतरा भगत के नेतृत्व में टाना भगतों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. टाना भगत आज भी अपने पूर्वजों की कीर्ति को याद करते हुए स्मरण से जुड़ी बातों पर चर्चा करते हैं. आंदोलन के दौरान अखबारों में छपे कतरन, इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए ताम्रपत्र और अन्य कागजातों को देखकर अपने पूर्वजों की वीर गाथा को याद करते हैं.

लोहरदगाः टाना भगत, इन्हें आजादी की लड़ाई का गुमनाम सिपाही कहे तो गलत नहीं होगा. आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बावजूद आज भी इतिहास के पन्नों में टाना भगत समुदाय को वह स्थान नहीं मिल पाया है, जिसके वे हकदार हैं. साल 1912 में टाना भगतों ने आंदोलन शुरू किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी

महात्मा गांधी के विचारों और जीवनचर्या का रहा है खास प्रभाव

दक्षिणी छोटानागपुर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ टाना भगतों के जुड़ाव की बात करें, तो रांची के मुड़मा में टाना भगतों के साथ महात्मा गांधी की मुलाकात हुई थी. इसके बाद से टाना भगतों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी. टाना भगत समुदाय के लोग लोहरदगा, गुमला, लातेहार जैसे क्षेत्रों में सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहते आए है. लोहरदगा के कुडू, किस्को, सेन्हा, लोहरदगा आदि प्रखंड में टाना भगत समुदाय के लोग रहते हैं. आज भी इनकी संस्कृति उरांव जनजाति के आसपास घूमती आ रही है. मूल रूप से आदिवासी परंपरा को अपनाने वाले टाना भगत समुदाय के लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर ही चलते आ रहे हैं.

आदिवासी संस्कृति के अलावा टाना भगत संस्कृति को इन्होंने जन्म दिया है. इनके जीवन में खादी का विशेष रूप से महत्व है. खादी की टोपी, खादी का कुर्ता, खादी का थैला इनका पहनावा है. अशोक चक्र की बजाए चरखा वाले तिरंगा की ही यह पूजा करते आए हैं. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर तिरंगा फहराने से पहले यह उसकी पूजा करते हैं.

सालों भर तिरंगा फहरता है इनके घरों में

टाना भगत परिवार के लोग आज भी खेती बाड़ी करना और अपने समुदाय के लोगों के बीच रहना ही पसंद करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोगों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का पालन आज तक किया है. वह हिंसा से पूरी तरह से दूर रहते हैं. सालों भर इनके घरों में तिरंगा फहरा रहता है. घर में कृषि उपकरण पुरातन समय से चले आ रहे खेती के सामान आज भी नजर आते हैं. अमूमन हर टाना भगत के घर में एक चरखा जरूर होता है. जिससे यह सूत काटने का काम करते हैं.

स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने के बाद भी नहीं मिला अधिकार
टाना भगत समुदाय के लोग महिलाओं को भी समान रूप से महत्व देते हैं. इनके परिवार में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं होता. टाना भगतों को बस इतना मलाल है कि स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के बावजूद, आज तक इन्हें उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. जमीन में दखल नहीं हो पाया है. अंग्रेजी शासन के दौरान टाना भगत समुदाय की जो जमीन नीलाम हुई थी, वह जमीन आज तक उन्हें मिल नहीं पाई है.

कास्तकारी अधिनियम को लागू करने की मांग टाना भगत समुदाय के लोग करते हैं. जमीन के लिए एक रुपए भी लगान देने से साफ इंकार करते हैं. बच्चों की निःशुल्क पढ़ाई, बस और ट्रेन में निःशुल्क यात्रा की मांग रही है. इसके अलावा भी कई ऐसी मांगें हैं, जिसे टाना भगत समुदाय के लोग सरकार को समझा भी नहीं पाए हैं. राहुल गांधी के रांची आगमन के अवसर पर टाना भगतों ने उनसे मिलकर अपनी मांगों से अवगत कराया था. इसके अलावा भाजपा के दिग्गज नेताओं से भी अपनी मांगों से अवगत करा चुके हैं. फिर भी टाना भगतों की सभी मांग आज तक पूरी नहीं हो पाई है. टाना भगत समुदाय में शिक्षा का घोर अभाव दिखाई देता है. युवा भी थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के बाद रोजगार की तलाश में यहां वहां भटकते रहते हैं.

टाना भगतों के सक्रिय आंदोलन की बात करें तो 1912-14 में टाना भगतों ने ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन छेड़ा था. लगान, सरकारी टैक्स आदि भरने और कुली के रूप में मजदूरी करने से साफ मना कर दिया. इन्होंने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान से प्रेरित होकर अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन में समर्पित कर दिया था. 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों की बड़ी आबादी गांधी के सत्याग्रह से भी जुड़ी थी.

ये भी पढ़ें- देवघर दौरे पर सांसद निशिकांत दूबे, कहा- गैर भाजपा मेयर है गोड्डा के विकास का ब…

काफी पुराना रहा है इनका इतिहास

लोहरदगा के कुडू थाने में वर्ष 1942 में टाना भगतों ने तिरंगा फहराया था. टाना भगतों का इतिहास काफी पुराना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से डेढ़ सौ से ज्यादा टाना भगतों को जेल भी जाना पड़ा था. जिसमें से 6 टाना भगतों की मौत भी हो गई थी. टाना भगतों की इतिहास की बात करें, तो जतरा टाना भगत इनके नेतृत्व कर्ता रहे हैं.

गुमला जिले के विशुनपुर थाना क्षेत्र के चिंगरी के रहने वाले जतरा भगत के नेतृत्व में टाना भगतों ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. टाना भगत आज भी अपने पूर्वजों की कीर्ति को याद करते हुए स्मरण से जुड़ी बातों पर चर्चा करते हैं. आंदोलन के दौरान अखबारों में छपे कतरन, इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए ताम्रपत्र और अन्य कागजातों को देखकर अपने पूर्वजों की वीर गाथा को याद करते हैं.

Intro:jh_loh_01_tana bhagat_pkg_jh10011 आजादी की लड़ाई के गुमनाम सिपाही हैं टाना भगत ... वर्ष 1912 में शुरू की थी अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक लड़ाई, जतरा टाना भगत बने थे अगुवा बाइट- शिव शंकर टाना भगत, सदस्य, टाना भगत संघ बाइट- देवकी टाना भगत, सदस्य टाना भगत परिवार बाइट- परतो टाना भगत, सदस्य टाना भगत परिवार एंकर- यदि इन्हें आजादी की लड़ाई का गुमनाम सिपाही कहे तो गलत नहीं होगा.आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बावजूद आज भी इतिहास के पन्नों में टाना भगत समुदाय को वह स्थान नहीं मिल पाया है, जिसके वे हकदार हैं. साल 1912 में टाना भगतों ने आंदोलन शुरू किया था. यदि दक्षिणी छोटानागपुर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ टाना भगतों के जुड़ाव की बात करें तो रांची के मुड़मा में टाना भगतों के साथ महात्मा गांधी की मुलाकात हुई थी. इसके बाद से टाना भगतों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ मिलकर अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत की थी. टाना भगत समुदाय के लोग लोहरदगा, गुमला, लातेहार आदि क्षेत्रों में सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में रहते आए हैं. लोहरदगा जिले के कुडू, किस्को, सेन्हा, लोहरदगा आदि प्रखंड में टाना भगत समुदाय के लोग रहते हैं. आज भी इनकी संस्कृति उरांव जनजाति के आसपास घूमती आ रही है. मूल रूप से आदिवासी परंपरा को अपनाने वाले टाना भगत समुदाय के लोग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताए मार्ग पर ही चलते आ रहे हैं. आदिवासी संस्कृति के अलावे टाना भगत संस्कृति को इन्होंने जन्म दिया है. इनके जीवन में खादी का विशेष रूप से महत्व है. खादी की टोपी, खादी का कुर्ता, खादी का थैला इनका पहनावा है. अशोक चक्र की बजाए चरखा वाले तिरंगा को ही यह पूजा करते आए हैं. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे अवसरों पर तिरंगा फहराने से पहले यह उसकी पूजा करते हैं. इंट्रो- टाना भगत परिवार के लोग आज भी खेती बारी करना और अपने समुदाय के लोगों के बीच रहना ही पसंद करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोगों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का पालन आज तक किया है. वह हिंसा से पूरी तरह से दूर रहते हैं. सालों भर इनके घरों में तिरंगा फहरा रहता है. घर में कृषि उपकरण और पुरातन समय से चले आ रहे खेती के सामान ही आज भी नजर आते हैं. अमूमन हर टाना भगत के घर में एक चरखा जरूर होता है. जिससे यह सूत काटने का काम करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोग महिलाओं को भी समान रूप से महत्व देते हैं. इनके परिवार में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं होता. टाना भगतों को बस इतना मलाल है कि स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के बजाय बाद भी इन्हें आज तक उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. जमीन में दखल नहीं हो पाया है. अंग्रेजी शासन के दौरान टाना भगत समुदाय की जो जमीन नीलाम हुई थी, वह जमीन आज तक उन्हें मिल नहीं पाई है. काश्तकारी अधिनियम को लागू करने की मांग टाना भगत समुदाय के लोग करते हैं. जमीन के लिए एक रुपए भी लगाम देने से साफ इंकार करते हैं. बच्चों की निशुल्क पढ़ाई, बस और ट्रेन में निशुल्क यात्रा की मांग रही है. इसके अलावा भी कई ऐसी मांगे हैं जिसे टाना भगत समुदाय के लोग सरकार को समझा भी नहीं पाए हैं. राहुल गांधी के रांची आगमन के अवसर पर हटाना भगतों ने उनसे मिलकर अपनी मांगों से अवगत कराया था. इसके अलावा भाजपा के दिग्गज नेताओं से भी अपनी मांगों से अवगत करा चुके हैं. फिर भी हटाना भगतों की सभी मांगे आज तक पूरी नहीं हो पाई है. टाना भगत समुदाय में शिक्षा का घोर अभाव दिखाई देता है. युवा भी थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के बाद रोजगार की तलाश में यहां वहां भटकते रहते हैं. टाना भगतों के सक्रिय आंदोलन की यदि बात करें तो 1912-14 में टाना भगतों ने ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन छेड़ा था. लगान, सरकारी टैक्स आदि भरने और कुली के रूप में मजदूरी करने से साफ मना कर दिया था. इन्होंने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान से प्रेरित होकर अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन में समर्पित कर दिया था. वर्ष 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों बड़ी आबादी गांधी के सत्याग्रह से भी जुड़ी थी. लोहरदगा के कुडू थाने में वर्ष 1942 में टाना भगतों ने तिरंगा फहराया था. टाना भगतों का इतिहास काफी पुराना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से डेढ़ सौ से ज्यादा टाना भगतों को जेल भी जाना पड़ा था. जिसमें से 6 टाना भगतों की मौत भी हो गई थी. टाना भगतों की यदि इतिहास की बात करें तो जतरा टाना भगत इनके नेतृत्व कर्ता रहे हैं. गुमला जिले के विशुनपुर थाना क्षेत्र के चिंगरी के रहने वाले जतरा भगत के नेतृत्व में टाना भगतों ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. टाना भगत आज भी अपने पूर्वजों की कीर्ति को याद करते हुए स्मरण से जुड़ी बातों पर चर्चा करते हैं. आंदोलन के दौरान अखबारों में छपे कतरन, इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए ताम्रपत्र और अन्य कागजातों को देखकर अपने पूर्वजों की वीर गाथा को याद करते हैं.


Body:टाना भगत परिवार के लोग आज भी खेती बारी करना और अपने समुदाय के लोगों के बीच रहना ही पसंद करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोगों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का पालन आज तक किया है. वह हिंसा से पूरी तरह से दूर रहते हैं. सालों भर इनके घरों में तिरंगा फहरा रहता है. घर में कृषि उपकरण और पुरातन समय से चले आ रहे खेती के सामान ही आज भी नजर आते हैं. अमूमन हर टाना भगत के घर में एक चरखा जरूर होता है. जिससे यह सूत काटने का काम करते हैं. टाना भगत समुदाय के लोग महिलाओं को भी समान रूप से महत्व देते हैं. इनके परिवार में पुरुष और महिला में कोई अंतर नहीं होता. टाना भगतों को बस इतना मलाल है कि स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के बजाय बाद भी इन्हें आज तक उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. जमीन में दखल नहीं हो पाया है. अंग्रेजी शासन के दौरान टाना भगत समुदाय की जो जमीन नीलाम हुई थी, वह जमीन आज तक उन्हें मिल नहीं पाई है. काश्तकारी अधिनियम को लागू करने की मांग टाना भगत समुदाय के लोग करते हैं. जमीन के लिए एक रुपए भी लगाम देने से साफ इंकार करते हैं. बच्चों की निशुल्क पढ़ाई, बस और ट्रेन में निशुल्क यात्रा की मांग रही है. इसके अलावा भी कई ऐसी मांगे हैं जिसे टाना भगत समुदाय के लोग सरकार को समझा भी नहीं पाए हैं. राहुल गांधी के रांची आगमन के अवसर पर हटाना भगतों ने उनसे मिलकर अपनी मांगों से अवगत कराया था. इसके अलावा भाजपा के दिग्गज नेताओं से भी अपनी मांगों से अवगत करा चुके हैं. फिर भी हटाना भगतों की सभी मांगे आज तक पूरी नहीं हो पाई है. टाना भगत समुदाय में शिक्षा का घोर अभाव दिखाई देता है. युवा भी थोड़ी बहुत पढ़ाई करने के बाद रोजगार की तलाश में यहां वहां भटकते रहते हैं. टाना भगतों के सक्रिय आंदोलन की यदि बात करें तो 1912-14 में टाना भगतों ने ब्रिटिश राज और जमींदारों के खिलाफ अहिंसक आंदोलन छेड़ा था. लगान, सरकारी टैक्स आदि भरने और कुली के रूप में मजदूरी करने से साफ मना कर दिया था. इन्होंने बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान से प्रेरित होकर अपने आप को स्वतंत्रता आंदोलन में समर्पित कर दिया था. वर्ष 1940 के दशक में टाना भगत आंदोलनकारियों बड़ी आबादी गांधी के सत्याग्रह से भी जुड़ी थी. लोहरदगा के कुडू थाने में वर्ष 1942 में टाना भगतों ने तिरंगा फहराया था. टाना भगतों का इतिहास काफी पुराना रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करने की वजह से डेढ़ सौ से ज्यादा टाना भगतों को जेल भी जाना पड़ा था. जिसमें से 6 टाना भगतों की मौत भी हो गई थी. टाना भगतों की यदि इतिहास की बात करें तो जतरा टाना भगत इनके नेतृत्व कर्ता रहे हैं. गुमला जिले के विशुनपुर थाना क्षेत्र के चिंगरी के रहने वाले जतरा भगत के नेतृत्व में टाना भगतों ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. टाना भगत आज भी अपने पूर्वजों की कीर्ति को याद करते हुए स्मरण से जुड़ी बातों पर चर्चा करते हैं. आंदोलन के दौरान अखबारों में छपे कतरन, इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए ताम्रपत्र और अन्य कागजातों को देखकर अपने पूर्वजों की वीर गाथा को याद करते हैं.


Conclusion:गौरवपूर्ण रहा है हटाना भगतों का इतिहास. स्वतंत्रता आंदोलन में थी इनकी बड़ी भूमिका.
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