लोहरदगा: इमली का नाम लेते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसने इमली का स्वाद न लिया हो. इमली लोहरदगा में बड़े पैमाने पर उत्पादित होता है. यहां इमली से सैकड़ों परिवारों को रोजगार भी मिलता है. लॉकडाउन की वजह से इमली की बिक्री रूक गई है. ऐसे में रोजगार भी प्रभावित हुआ है.
इमली का बड़ा उत्पादक लोहरदगा
लोहरदगा में अमूमन हर गांव में इमली के दर्जनों पेड़ होते हैं. हर साल हजारों मीट्रिक टन इमली का उत्पादन होता है. इसकी वजह से लगभग 500 मजदूरों को इमली कूटने के काम मिल पाता है. इसके अलावा हजारों लोग इमली तोड़ने से लेकर बाजार तक पहुंचाने का काम करते हैं. हर दिन 2 से 3 ट्रक इमली लखनऊ, बरेली, यूपी, बनारस सहित अन्य क्षेत्रों में भेजी जाती है. फिलहाल, इमली का भाव 27 रुपए प्रति किलो है, जबकि पिछले साल इसकी कीमत 30 से 32 रुपए प्रति किलो थी.
बाजार नहीं पहुंच पाई इमली
इस साल इमली बाजार तक नहीं पहुंच पाया. इमली की कुटाई में भी एक-दो मजदूरों को ही व्यापारी काम में लगा पाए. इसके लिए भी उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा है. इमली की वजह से रोजगार पाने वाले सैकड़ों परिवारों के समक्ष विकट स्थिति उत्पन्न हो गई है. इमली की वजह से कई परिवारों की जिंदगी चलती थी. लॉकडाउन ने ऐसा कहर बरपाया कि इमली का कारोबार ही ठप पड़ गया. लोहरदगा में इमली के कारोबार से लगभग एक दर्जन से ज्यादा व्यापारी सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं. लॉकडाउन के कारण इन व्यापारियों के लिए भी परेशानी खड़ी हो गई है.
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चेंबर की मांग सरकार करे पहल
चेंबर ऑफ कॉमर्स के जिलाध्यक्ष अभय अग्रवाल का कहना है कि सरकार को इमली के कारोबार से जुड़े व्यापारी और मजदूरों के लिए पहल करनी चाहिए. इमली वन उत्पाद है और इसके सहारे सैकड़ों लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है. इमली के कारोबार को लेकर फिलहाल कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं मिल पाई है. जिसकी वजह से इमली की बिक्री और इसका कारोबार प्रभावित हो रहा है. मार्च से लेकर अप्रैल महीने तक इमली तोड़ने और उसे बेचने का काम होता है. यदि समय पर इसकी बिक्री नहीं हो पाई तो इमली की फसल बर्बाद हो जाती है. इस साल बारिश की वजह से भी इमली की फसल काफी बर्बाद हुई है.