लोहरदगाः लगभग 70 हजार की आबादी वाले इस शहर में सभी धर्म-समुदाय के लोग रहते हैं. साल 1988 में गठित लोहरदगा नगरपालिका ने 131 साल का लंबा सफर तय किया है. आबादी के साथ यहां समस्याएं भी बढ़ती गईं. भौगोलिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. लोहरदगा से होकर ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आना-जाना होता है. ऐसे में यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में वाहनों का आवागमन भी होता है.
बाईपास सड़का का निर्माण बना बड़ा मुद्दा
समय की मांग है कि यहां पर एक बाईपास सड़क का निर्माण हो. पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से यह लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. चुनाव जीते जाते हैं, प्रतिनिधियों के चेहरे भी बदलते हैं, पर आज तक इस मुद्दे पर किसी का ध्यान नहीं गया है. समस्या आज भी कायम है. जनता का कहना है कि नेता वादा तो करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद वह सिर्फ मुंह घुमाते नजर आते हैं.
आवागमन में होती है परेशानी
लोहरदगा शहरी क्षेत्र में हर रोज हजारों वाहनों का परिचालन होने से सड़क जाम की स्थिति आम हो गई है. लोगों को आवागमन में काफी मुश्किलों का सामाना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों, राहगीरों और कार्यालय जाने वाले लोगों को होती है. इनके लिए समय पर अपनी मंजिल तक पहुंचना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. बाईपास सड़क का निर्माण कार्य चुनावी मुद्दा बनता तो है, पर सिर्फ कागजों में.
बाईपास के नाम पर होती है सिर्फ राजनीति
पहले राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी घोषणा पत्र में बाईपास सड़क निर्माण को शामिल करती हैं, फिर जनता को दिलासा दिलाती हैं और इसे जीत का जरिया बनाती हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है नेता इस मुद्दे को भी भूल जाते हैं. नेता भी बस इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते हैं. अब देखना यह है कि लोहरदगा वासियों की इस मांग को नेता और कितने सालों में पूरा करेंगे.