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लोहरदगा में पिछले 10 साल से एक ही मुद्दा है खास, आखिर कब होगा इसका समाधान ?

लोहरदगा जिले में पिछले 10 सालों से प्रतिनिधि किसी भी पार्टी का हो, लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने आज तक जनता के लिए बाईपास सड़क का निर्माण नहीं कराया. लोगों को आए दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वहीं, नेता एक दूसरे पर सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते रहते हैं.

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Published : Nov 7, 2019, 2:57 PM IST

लोहरदगा में समस्या

लोहरदगाः लगभग 70 हजार की आबादी वाले इस शहर में सभी धर्म-समुदाय के लोग रहते हैं. साल 1988 में गठित लोहरदगा नगरपालिका ने 131 साल का लंबा सफर तय किया है. आबादी के साथ यहां समस्याएं भी बढ़ती गईं. भौगोलिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. लोहरदगा से होकर ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आना-जाना होता है. ऐसे में यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में वाहनों का आवागमन भी होता है.

वीडियो में देखें स्पेशल खबर


बाईपास सड़का का निर्माण बना बड़ा मुद्दा
समय की मांग है कि यहां पर एक बाईपास सड़क का निर्माण हो. पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से यह लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. चुनाव जीते जाते हैं, प्रतिनिधियों के चेहरे भी बदलते हैं, पर आज तक इस मुद्दे पर किसी का ध्यान नहीं गया है. समस्या आज भी कायम है. जनता का कहना है कि नेता वादा तो करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद वह सिर्फ मुंह घुमाते नजर आते हैं.


आवागमन में होती है परेशानी
लोहरदगा शहरी क्षेत्र में हर रोज हजारों वाहनों का परिचालन होने से सड़क जाम की स्थिति आम हो गई है. लोगों को आवागमन में काफी मुश्किलों का सामाना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों, राहगीरों और कार्यालय जाने वाले लोगों को होती है. इनके लिए समय पर अपनी मंजिल तक पहुंचना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. बाईपास सड़क का निर्माण कार्य चुनावी मुद्दा बनता तो है, पर सिर्फ कागजों में.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: कुर्मी समाज की राजनीतिक दलों से मांग, 3 सूत्री एजेंडा घोषणपत्र में होगा शामिल तो चुनाव में करेंगे सहयोग


बाईपास के नाम पर होती है सिर्फ राजनीति
पहले राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी घोषणा पत्र में बाईपास सड़क निर्माण को शामिल करती हैं, फिर जनता को दिलासा दिलाती हैं और इसे जीत का जरिया बनाती हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है नेता इस मुद्दे को भी भूल जाते हैं. नेता भी बस इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते हैं. अब देखना यह है कि लोहरदगा वासियों की इस मांग को नेता और कितने सालों में पूरा करेंगे.

लोहरदगाः लगभग 70 हजार की आबादी वाले इस शहर में सभी धर्म-समुदाय के लोग रहते हैं. साल 1988 में गठित लोहरदगा नगरपालिका ने 131 साल का लंबा सफर तय किया है. आबादी के साथ यहां समस्याएं भी बढ़ती गईं. भौगोलिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. लोहरदगा से होकर ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आना-जाना होता है. ऐसे में यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में वाहनों का आवागमन भी होता है.

वीडियो में देखें स्पेशल खबर


बाईपास सड़का का निर्माण बना बड़ा मुद्दा
समय की मांग है कि यहां पर एक बाईपास सड़क का निर्माण हो. पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से यह लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. चुनाव जीते जाते हैं, प्रतिनिधियों के चेहरे भी बदलते हैं, पर आज तक इस मुद्दे पर किसी का ध्यान नहीं गया है. समस्या आज भी कायम है. जनता का कहना है कि नेता वादा तो करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद वह सिर्फ मुंह घुमाते नजर आते हैं.


आवागमन में होती है परेशानी
लोहरदगा शहरी क्षेत्र में हर रोज हजारों वाहनों का परिचालन होने से सड़क जाम की स्थिति आम हो गई है. लोगों को आवागमन में काफी मुश्किलों का सामाना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों, राहगीरों और कार्यालय जाने वाले लोगों को होती है. इनके लिए समय पर अपनी मंजिल तक पहुंचना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. बाईपास सड़क का निर्माण कार्य चुनावी मुद्दा बनता तो है, पर सिर्फ कागजों में.

ये भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: कुर्मी समाज की राजनीतिक दलों से मांग, 3 सूत्री एजेंडा घोषणपत्र में होगा शामिल तो चुनाव में करेंगे सहयोग


बाईपास के नाम पर होती है सिर्फ राजनीति
पहले राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी घोषणा पत्र में बाईपास सड़क निर्माण को शामिल करती हैं, फिर जनता को दिलासा दिलाती हैं और इसे जीत का जरिया बनाती हैं, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म होता है नेता इस मुद्दे को भी भूल जाते हैं. नेता भी बस इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलते हैं. अब देखना यह है कि लोहरदगा वासियों की इस मांग को नेता और कितने सालों में पूरा करेंगे.

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स्टोरी-यह है लोहरदगा का सबसे बड़ा मुद्दा, आज भी है कायम
एंकर- लोहरदगा शहर, लगभग 70 हजार की आबादी वाले इस शहर में सभी धर्म-समुदाय के लोग निवास करते हैं. वर्ष 1988 में गठित लोहरदगा नगरपालिका ने 131 साल का ज्यादा लंबा सफर तय किया है. आबादी के साथ यहां पर समस्याएं भी बढ़ती गई. भौगोलिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. लोहरदगा से होकर ही छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में आना-जाना होता है. ऐसे में यहां पर हर रोज हजारों की संख्या में वाहनों का आवागमन भी होता है. वर्तमान समय में लोहरदगा शहर के बीच से होकर वाहनों का आवागमन हो रहा है. समय की मांग है कि यहां पर एक बाईपास सड़क का निर्माण हो. पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से यह लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. चुनाव जीतते हैं, प्रतिनिधियों के चेहरे भी बदलते हैं, पर आज तक इस मुद्दे पर किसी का ध्यान नहीं गया है. समस्या आज भी कायम है.

बाइट-मनोज साहू, स्थानीय
बाइट- कमलेश साहू, स्थानीय

वी/ओ- लोहरदगा शहरी क्षेत्र में हर रोज हजारों वाहनों का परिचालन होने से सड़क जाम की स्थिति सामान्य बात बन कर रह गई है. जिंदगी जैसे थम सी जाती है. लोगों का आवागमन काफी मुश्किल से होता है. सबसे अधिक परेशानी स्कूली बच्चों, राहगीरों और कार्यालय जाने वाले लोगों को होती है. इनके लिए समय पर अपनी मंजिल तक पहुंचना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. बाईपास सड़क का निर्माण कार्य चुनावी मुद्दा बनता तो है पर सिर्फ कागजों में. इसके हल को लेकर जो कोशिश होनी चाहिए थी, वह शायद हुई नहीं. तभी तो यह समस्या आज भी कायम है.

बाइट- सूरज अग्रवाल, केंद्रीय सचिव, आजसू
बाइट- सुखदेव भगत, विधायक, लोहरदगा

वी/ओ- बाईपास सड़क निर्माण को लेकर राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है. जनता के बीच चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें भरोसा दिलाया जाता है कि बाईपास सड़क का निर्माण जरूर होगा. यहां की समस्याएं हल होंगी. चुनाव खत्म होते ही यह वादा हवा-हवाई होकर रह जाता है. फिर से उसी सड़क पर रेंगते वाहन मतदाताओं को याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि नेताओं के झूठे वादों से दूर रहना है. शायद लोहरदगा की जनता की नियति में यह दर्ज है कि उसे तो इस मुद्दे का सामना करना ही पड़ेगा. बाईपास सड़क का निर्माण जाने कब होगा. प्रतिनिधि कोशिश करने की बात कहते हैं. अब यह कोशिश परिणाम में कब बदलती है यह देखने वाली बात होगी.




Body:बाईपास सड़क निर्माण को लेकर राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है. जनता के बीच चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें भरोसा दिलाया जाता है कि बाईपास सड़क का निर्माण जरूर होगा. यहां की समस्याएं हल होंगी. चुनाव खत्म होते ही यह वादा हवा-हवाई होकर रह जाता है. फिर से उसी सड़क पर रेंगते वाहन मतदाताओं को याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि नेताओं के झूठे वादों से दूर रहना है. शायद लोहरदगा की जनता की नियति में यह दर्ज है कि उसे तो इस मुद्दे का सामना करना ही पड़ेगा. बाईपास सड़क का निर्माण जाने कब होगा. प्रतिनिधि कोशिश करने की बात कहते हैं. अब यह कोशिश परिणाम में कब बदलती है यह देखने वाली बात होगी.



Conclusion:बाईपास सड़क निर्माण को लेकर राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाता है. जनता के बीच चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें भरोसा दिलाया जाता है कि बाईपास सड़क का निर्माण जरूर होगा. यहां की समस्याएं हल होंगी. चुनाव खत्म होते ही यह वादा हवा-हवाई होकर रह जाता है.
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