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लोहरदगा में सरहुल पर प्रकृति को किया गया नमन, कोरोना वायरस से बचाने के लिए हुई प्रार्थना - प्रकृति पर्व सरहुल

प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासी समाज के लिए काफी महत्व रखता है. हर साल सरहुल के मौके पर लाखों की भीड़ सरहुल की शोभायात्रा में शामिल होती है. इसके अलावा झखरा कुंबा में पारंपरिक रूप से पूजा-अर्चना करते हुए समाज, परिवार और देश के लिए प्रार्थनाएं की जाती हैं. इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए बेहद सादे समारोह में प्रकृति की पूजा की गई.

Peacefully bowed to nature at Sirhul in Lohardaga
सरहुल पर प्रकृति को किया गया नमन
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Published : Mar 27, 2020, 6:50 PM IST

लोहरदगा: जिले के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए आदिवासी समाज के लोग झखरा कुंबा में इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के महात्मा गांधी पथ में स्थित झखरा कुंबा में पारंपरिक रूप से पाहन और पुजारी द्वारा पूजा-अर्चना संपन्न कराई गई. प्रार्थना के उपरांत आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन बना रही है. जब कभी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है तो इस प्रकार की आपदाएं आती है.

देखें पूरी खबर

प्रकृति हम जनमानस को इस आपदा से जरूर बचाएगी. सभी लोगों ने प्रकृति से प्रार्थना करते हुए उन्हें इस विपदा की स्थिति से बाहर निकालने की प्रार्थना की. इस अनुष्ठान में लोगों ने मास्क पहनकर यह बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए अनुष्ठान के दौरान भी वे काफी सजग और समर्पित हैं. सभी लोगों ने सामाजिक दूरी के नियमों का भी पालन किया. अनुष्ठान के दौरान अनावश्यक रूप से भीड़-भाड़ नहीं हुई थी.

ये भी पढ़ें: सादगी के साथ मनाया जा रहा सरहुल, पाहन ने झारखंड में सुख समृद्धि के लिए की प्रार्थना

इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि सरहुल के मौके पर शोभायात्रा नहीं निकाली गई. लोहरदगा के झखरा कुंभा में सरहुल का पर्व मनाया गया. आदिवासी समाज के लोगों ने प्रकृति से प्रार्थना की. विपदा की इस स्थिति में उन्हें बाहर निकालने की विनती प्रकृति से की गई. लोगों ने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन बना रही है.

लोहरदगा: जिले के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए आदिवासी समाज के लोग झखरा कुंबा में इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए. लोहरदगा शहरी क्षेत्र के महात्मा गांधी पथ में स्थित झखरा कुंबा में पारंपरिक रूप से पाहन और पुजारी द्वारा पूजा-अर्चना संपन्न कराई गई. प्रार्थना के उपरांत आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन बना रही है. जब कभी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है तो इस प्रकार की आपदाएं आती है.

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प्रकृति हम जनमानस को इस आपदा से जरूर बचाएगी. सभी लोगों ने प्रकृति से प्रार्थना करते हुए उन्हें इस विपदा की स्थिति से बाहर निकालने की प्रार्थना की. इस अनुष्ठान में लोगों ने मास्क पहनकर यह बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए अनुष्ठान के दौरान भी वे काफी सजग और समर्पित हैं. सभी लोगों ने सामाजिक दूरी के नियमों का भी पालन किया. अनुष्ठान के दौरान अनावश्यक रूप से भीड़-भाड़ नहीं हुई थी.

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इस बार पहली बार ऐसा हुआ है कि सरहुल के मौके पर शोभायात्रा नहीं निकाली गई. लोहरदगा के झखरा कुंभा में सरहुल का पर्व मनाया गया. आदिवासी समाज के लोगों ने प्रकृति से प्रार्थना की. विपदा की इस स्थिति में उन्हें बाहर निकालने की विनती प्रकृति से की गई. लोगों ने कहा कि प्रकृति अपना संतुलन बना रही है.

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