लोहरदगा: जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पेशरार प्रखंड में प्रकृति की अनुपम सुंदरता बिखरी पड़ी है. यहां जंगलों की हरियाली है तो कल-कल करती नदियों की धारा. स्वच्छ वातावरण है तो पर्वतों की श्रृंखलाएं भी हैं. प्रकृति ने पेशरार प्रखंड में अपनी सुंदर सुंदरता को बिखेर कर रख दिया है.
खूबसूरत प्राकृतिक स्थल के रूप में पहचान
लोहरदगा जिले के सबसे नक्सल प्रभावित प्रखंड के रूप में कभी पेशरार की पहचान थी. महज 5 पंचायत, 74 गांव और 31 हजार की आबादी वाले इस प्रखंड में आदिम जनजाति और आदिवासी समुदाय के लोगों की बहुलता है. दो दशक पहले तक पर पेशरार को लोग नक्सलियों के गढ़ के रूप में जानते थे, लेकिन आज इसकी पहचान बेहद ही खूबसूरत प्राकृतिक स्थल के रूप में हो चुकी है.
सड़क के दोनों और पेड़ों की हरियाली
एक बार यदि आप पेशरार गए तो कुल्लू-मनाली तक को भूल जाएंगे. लातेहार, गुमला जिले को छूती हुई पेशरार की वादियां अपने आप में अद्वितीय है. कल-कल करते झरने जैसे यही बस कर रह जाने का संदेश देते हैं. केकरांग झरना और लावापानी झरना यहां के सबसे खास उपहार में से एक है. लावापानी पानी की तो बात ही निराली है. पहाड़ की ऊंचाई से 7 चरणों में गिरने वाला पानी कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. सड़क के दोनों और पेड़ों की हरियाली के बीच से गुजरते वक्त ऐसा लगता है कि आप मनाली की वादियों से होकर गुजर रहे हैं.
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पेशरार की सुंदरता की कोई तुलना ही नहीं है. यही वजह है कि तत्कालीन एसपी कार्तिक एस ने मानसून पेशरार का नाम दिया था. उन्होंने अपने प्रयास से पेशरार को एक नई पहचान दिलाई. आज पेशरार खिलखिलाकर हंस रहा है. पेशरार की वादियां लोगों को बुला रही है. पेशरार निश्चित रूप से आज एक बेहतर और प्रशंसनीय पर्यटक स्थल के रुप में स्थापित हो चुका है.