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लोहरदगा के किसानों को मौसम का नहीं मिला साथ, उम्मीद से आधी हुई खरीफ फसल की खेती - लोहरदगा में खरीफ फसल की खेती

समय पर बारिश नहीं होने से लोहरदगा में इस वर्ष भी खेती का कार्य प्रभावित हुआ है. पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष धान की खेती कम हुई है. साथ ही मकई, दलहन और तिलहन की पैदावार पर भी असर पड़ा है. आंकड़ों में जानिए लोहरदगा में खेती का क्या हाल है. Kharif cultivation reduced.

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Kharif Cultivation Reduced In Lohardaga
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 10, 2023, 1:48 PM IST

लोहरदगा: जिले की महज 15 प्रतिशत भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा है. शेष भूमि पर खेती वर्षा पर निर्भर है. जिले में पिछले दो साल से समय पर बारिश नहीं होने से खेती की स्थिति बेहतर नहीं है. इस वर्ष भी उम्मीद से आधी खेती ही हुई है. इसका असर आने वाले समय में लोहरदगा की अर्थव्यवस्था पर नजर आएगा. रोजी-रोजगार, बाजार और लोगों की जरूरतें प्रभावित होगी.

ये भी पढ़ें-Kharif Cultivation Affected: मौसम हुआ बेईमान, बिखरने लगे किसानों के अरमान

पिछले साल 55.26 प्रतिशत तो इस बार महज 52.61 प्रतिशत हुई खेतीः जिले में कम बारिश का असर खरीफ की खेती पर सीधे तौर पर पड़ा है. मूल रूप से जिले में धान की खेती होती है. इस बार ना सिर्फ धान की खेती, बल्कि खरीफ की अन्य फसलों की खेती भी प्रभावित हुई है. औसत रूप से देखा जाए तो 50 प्रतिशत के आसपास ही जिले में खेती हो सकी है. आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले साल 2022 में 55.26 प्रतिशत खेती हुई थी, वहीं इस बार वर्ष 2023 में 52.61 प्रतिशत खेती हुई है. वर्ष 2022 में 64.94 प्रतिशत धान की खेती हुई थी. जबकि वर्ष 2023 में महज 58.5 प्रतिशत ही धान की खेती हुई है.

उम्मीद से कम हुई बारिशः इस वर्ष तो हद ही हो गई. जून, जुलाई और अगस्त के महीने में सामान्य से काफी कम बारिश हुई. जिसकी वजह से सीधे तौर पर धान की खेती प्रभावित हुई है. लोहरदगा जिले में जून के महीने में सामान्य वर्षापात 137.3 मिमी की जगह महज 111.6 मिमी वर्षापात रिकॉर्ड हुआ है. जबकि जुलाई में सामान्य वर्षापात 305 मिमी के विपरीत महज 89.9 मिमी ही बारिश हुई. वहीं सितंबर के महीने में सामान्य वर्षापात 212.5 मिमी के विपरीत 252 मिमी बारिश दर्ज की गई है, लेकिन सितंबर के महीने में हुई बारिश का फायदा धान की खेती को बहुत अधिक नहीं मिला. धान की खेती जुलाई के महीने में ही खत्म हो जाती है. इसके बाद धान की देखभाल का समय होता है. जब जरूरत थी कि खेतों में पानी भरे और धान की खेती हो, तब उस समय बारिश नहीं हुई.

मक्का, दलहन और तिलहन की खेती पर भी पड़ा असरःवहीं समय पर बारिश नहीं होने का असर मक्का, दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की खेती पर भी पड़ा है. यही कारण है कि इस वर्ष भी लोहरदगा में 60 प्रतिशत भी खेती नहीं हो पाई है. सही ढंग से खेती नहीं होने के कारण बाजार व्यवस्था और लोगों की आम जिंदगी पर इसका असर पड़ेगा. यहां पर लोग धान बेचकर अपने परिवार की जरूरत को पूरा करते हैं.

लोहरदगा: जिले की महज 15 प्रतिशत भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा है. शेष भूमि पर खेती वर्षा पर निर्भर है. जिले में पिछले दो साल से समय पर बारिश नहीं होने से खेती की स्थिति बेहतर नहीं है. इस वर्ष भी उम्मीद से आधी खेती ही हुई है. इसका असर आने वाले समय में लोहरदगा की अर्थव्यवस्था पर नजर आएगा. रोजी-रोजगार, बाजार और लोगों की जरूरतें प्रभावित होगी.

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पिछले साल 55.26 प्रतिशत तो इस बार महज 52.61 प्रतिशत हुई खेतीः जिले में कम बारिश का असर खरीफ की खेती पर सीधे तौर पर पड़ा है. मूल रूप से जिले में धान की खेती होती है. इस बार ना सिर्फ धान की खेती, बल्कि खरीफ की अन्य फसलों की खेती भी प्रभावित हुई है. औसत रूप से देखा जाए तो 50 प्रतिशत के आसपास ही जिले में खेती हो सकी है. आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले साल 2022 में 55.26 प्रतिशत खेती हुई थी, वहीं इस बार वर्ष 2023 में 52.61 प्रतिशत खेती हुई है. वर्ष 2022 में 64.94 प्रतिशत धान की खेती हुई थी. जबकि वर्ष 2023 में महज 58.5 प्रतिशत ही धान की खेती हुई है.

उम्मीद से कम हुई बारिशः इस वर्ष तो हद ही हो गई. जून, जुलाई और अगस्त के महीने में सामान्य से काफी कम बारिश हुई. जिसकी वजह से सीधे तौर पर धान की खेती प्रभावित हुई है. लोहरदगा जिले में जून के महीने में सामान्य वर्षापात 137.3 मिमी की जगह महज 111.6 मिमी वर्षापात रिकॉर्ड हुआ है. जबकि जुलाई में सामान्य वर्षापात 305 मिमी के विपरीत महज 89.9 मिमी ही बारिश हुई. वहीं सितंबर के महीने में सामान्य वर्षापात 212.5 मिमी के विपरीत 252 मिमी बारिश दर्ज की गई है, लेकिन सितंबर के महीने में हुई बारिश का फायदा धान की खेती को बहुत अधिक नहीं मिला. धान की खेती जुलाई के महीने में ही खत्म हो जाती है. इसके बाद धान की देखभाल का समय होता है. जब जरूरत थी कि खेतों में पानी भरे और धान की खेती हो, तब उस समय बारिश नहीं हुई.

मक्का, दलहन और तिलहन की खेती पर भी पड़ा असरःवहीं समय पर बारिश नहीं होने का असर मक्का, दलहन, तिलहन और मोटे अनाज की खेती पर भी पड़ा है. यही कारण है कि इस वर्ष भी लोहरदगा में 60 प्रतिशत भी खेती नहीं हो पाई है. सही ढंग से खेती नहीं होने के कारण बाजार व्यवस्था और लोगों की आम जिंदगी पर इसका असर पड़ेगा. यहां पर लोग धान बेचकर अपने परिवार की जरूरत को पूरा करते हैं.

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