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लोहरदगा में मत्स्य उत्पादन को मिल रही है गति, किसान हो रहे खुशहाल

लोहरदगा जिले में मत्स्य उत्पादन गति पकड़ रहा है. नीली क्रांति से आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो रहा है. जिले के किसान मत्स्य उत्पादन से अब आत्मनिर्भर बनने लगे हैं. उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है.

मत्स्य पालन
मत्स्य पालन
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Published : Jun 30, 2020, 1:17 PM IST

लोहरदगाः मछली जल की रानी है और मत्स्य उत्पादन करने वाले लोग राजा बन रहे हैं. लोहरदगा में मत्स्य उत्पादन से नीली क्रांति से आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो चुका है.

मत्स्य उत्पादन में गति.

मत्स्य पालन से किसान खुशहाल हो रहे हैं. लोहरदगा जिले में लगभग 2,000 किसान मत्स्य पालन के कार्य से जुड़े हुए हैं. हाल के समय में किसानों और ग्रामीणों का झुकाव मत्स्य पालन की ओर हुआ है.

यही वजह है कि लोहरदगा जिला मत्स्य पालन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने लगा है. इससे लोगों की आमदनी तो बढ़ी ही है, साथ ही पलायन पर भी अंकुश लगने की उम्मीद की जा रही है. कोरोना को लेकर वर्तमान स्थिति के दौरान मत्स्य पालन को भी सरकार ने एक अलग रोजगार के रूप में लिया है.

रोजगार सृजित करने की कोशिश

मत्स्य पालन से पलायन पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है. लोहरदगा में 176 सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन का काम इस बार किया जाएगा. इसे लेकर जिला मत्स्य कार्यालय अपनी ओर से तैयारियों में जुट चुका है.

इसके लिए तालाबों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है. पिछले साल डाले गए जीरा से तैयार हो चुकी मछलियों को बाजार में बेचने के साथ-साथ अब नए सिरे से जीरा डालने को लेकर प्रक्रिया भी होगी.

176 सरकारी तालाबों में होता है मत्स्य पालन

वर्तमान समय में 176 सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन का काम चल रहा है. इसके अलावा 1,300 निजी तालाब, 1,100 डोभा और नंदनी डैम जैसे बड़े क्षेत्र में मत्स्य पालन का काम पिछले कई सालों से जोर पकड़ चुका है.

लोहरदगा जिले में 2,560 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार उत्पादन में और भी ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है.

मत्स्य पालकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जिला कार्यालय उन्हें मत्स्य पालन के लिए प्रशिक्षित भी करता है. लोहरदगा जिले के कुडू, सेन्हा, भंडरा, किस्को, कैरो प्रखंड में मत्स्य उत्पादन किया जाता है, जिसमें रोहू, कतला, कार्प आदि मछलियों का उत्पादन होता है.

यहां पर उत्पादित होने वाली मछली की स्थानीय बाजार में खपत के साथ-साथ गुमला, सिमडेगा, लातेहार और रांची में भी भेजी जाती हैं.

यह भी पढ़ेंः झारखंड में 40 नये कोरोना संक्रमित मिले, सोमवार को 2 लोगों की मौत, कुल 2426 पॉजिटिव केस

यदि कीमत और उससे होने वाले मुनाफे की तुलना की जाए तो एक जीरा की कीमत 10 पैसे की होती है, परंतु जब मछली तैयार हो जाती है तो इसकी कीमत 50 रुपए के आसपास हो जाती है.

लोहरदगा जिला मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में बेहद तेजी से कदम बढ़ा रहा है. वर्तमान समय में 2,560 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन यहां पर होता है. 176 सरकारी तालाबों के अलावा निजी तालाब और डोभा में भी मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है. जिले के किसान मत्स्य उत्पादन से अब आत्मनिर्भर बनने लगे हैं.

लोहरदगाः मछली जल की रानी है और मत्स्य उत्पादन करने वाले लोग राजा बन रहे हैं. लोहरदगा में मत्स्य उत्पादन से नीली क्रांति से आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो चुका है.

मत्स्य उत्पादन में गति.

मत्स्य पालन से किसान खुशहाल हो रहे हैं. लोहरदगा जिले में लगभग 2,000 किसान मत्स्य पालन के कार्य से जुड़े हुए हैं. हाल के समय में किसानों और ग्रामीणों का झुकाव मत्स्य पालन की ओर हुआ है.

यही वजह है कि लोहरदगा जिला मत्स्य पालन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने लगा है. इससे लोगों की आमदनी तो बढ़ी ही है, साथ ही पलायन पर भी अंकुश लगने की उम्मीद की जा रही है. कोरोना को लेकर वर्तमान स्थिति के दौरान मत्स्य पालन को भी सरकार ने एक अलग रोजगार के रूप में लिया है.

रोजगार सृजित करने की कोशिश

मत्स्य पालन से पलायन पर रोक लगाने की कोशिश की जा रही है. लोहरदगा में 176 सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन का काम इस बार किया जाएगा. इसे लेकर जिला मत्स्य कार्यालय अपनी ओर से तैयारियों में जुट चुका है.

इसके लिए तालाबों की बंदोबस्ती की प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है. पिछले साल डाले गए जीरा से तैयार हो चुकी मछलियों को बाजार में बेचने के साथ-साथ अब नए सिरे से जीरा डालने को लेकर प्रक्रिया भी होगी.

176 सरकारी तालाबों में होता है मत्स्य पालन

वर्तमान समय में 176 सरकारी तालाबों में मत्स्य पालन का काम चल रहा है. इसके अलावा 1,300 निजी तालाब, 1,100 डोभा और नंदनी डैम जैसे बड़े क्षेत्र में मत्स्य पालन का काम पिछले कई सालों से जोर पकड़ चुका है.

लोहरदगा जिले में 2,560 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो इस बार उत्पादन में और भी ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है.

मत्स्य पालकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जिला कार्यालय उन्हें मत्स्य पालन के लिए प्रशिक्षित भी करता है. लोहरदगा जिले के कुडू, सेन्हा, भंडरा, किस्को, कैरो प्रखंड में मत्स्य उत्पादन किया जाता है, जिसमें रोहू, कतला, कार्प आदि मछलियों का उत्पादन होता है.

यहां पर उत्पादित होने वाली मछली की स्थानीय बाजार में खपत के साथ-साथ गुमला, सिमडेगा, लातेहार और रांची में भी भेजी जाती हैं.

यह भी पढ़ेंः झारखंड में 40 नये कोरोना संक्रमित मिले, सोमवार को 2 लोगों की मौत, कुल 2426 पॉजिटिव केस

यदि कीमत और उससे होने वाले मुनाफे की तुलना की जाए तो एक जीरा की कीमत 10 पैसे की होती है, परंतु जब मछली तैयार हो जाती है तो इसकी कीमत 50 रुपए के आसपास हो जाती है.

लोहरदगा जिला मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में बेहद तेजी से कदम बढ़ा रहा है. वर्तमान समय में 2,560 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन यहां पर होता है. 176 सरकारी तालाबों के अलावा निजी तालाब और डोभा में भी मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है. जिले के किसान मत्स्य उत्पादन से अब आत्मनिर्भर बनने लगे हैं.

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