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सरकार के खोखले वादों की सच्चाई बयां करती इस परिवार की तकदीर, सरकारी योजनाओं से अब तक रहा अछुता - Lohardaga news

सरकार गठन का एक साल हो गया है. उत्सव मनाया जा रहा है. सरकार दावा कर रही है कि आम आदमी से किए वादे काफी हद तक पूरे कर दिए गए हैं. जमीनी स्तर पर इसका असर जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने जब लोहरदगा जिले के एक गांव की ओर रुख किया तो हकीकत कुछ और ही निकली. पढ़ें खास रिपोर्ट...

benefits of government schemes have not reached in Lohardaga
आशीष का परिवार
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Published : Dec 28, 2020, 2:33 PM IST

लोहरदगा: हम बात पूरे राज्य की नहीं करते हैं, हम बात पूरे देश की नहीं करते हैं, लेकिन अगर सिर्फ लोहरदगा जिले की बात की जाए तो 9,550 ऐसे लोग हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास प्लस योजना में आवास उपलब्ध कराने की कोशिश की गईं हैं. यह तो सरकार की कोशिश है. अब जरा इसे जमीनी हकीकत के रूप में देखते हैं. लोहरदगा जिले में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन तक सरकार की योजनाएं पहुंच नहीं पाईं.

देखें पूरी खबर

उदाहरण के लिए लोहरदगा जिले के सदर प्रखंड के हिरही हर्रा टोली गांव में रहने वाले आशीष उरांव का परिवार बेघर होकर आज एक जर्जर पंचायत भवन में शरण लिए हुए है. इस परिवार को ना तो आवास योजना का लाभ मिल पाया है और ना ही प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का.

दर-दर भटकने के बाद थक गया आशीष

जिले के सदर प्रखंड के हिरही हर्रा टोली गांव निवासी आशीष और उनका परिवार आज गांव में स्थित एक पंचायत भवन में शरण लिए हुए है. इस पंचायत भवन की हालत भी ऐसी है कि जिंदगी पता नहीं कब दगा दे जाए. इसी जर्जर आवास में आशीष उरांव और परिवार किसी तरह से दिन काट रहे हैं. सोने के लिए ढंग का बिस्तर भी नहीं है. जमीन पर पुआल बिछाकर पूरा परिवार सो रहा है. पंचायत भवन की छत का प्लास्टर टूट-टूट कर गिरता है. दीवारों में दरारें आ चुकी है. इंधन के रूप में जलाने के लिए चूल्हा ही एकमात्र विकल्प है.

सरकार की उज्ज्वला योजना का लाभ तक इस परिवार को नहीं मिल पाया है. यही नहीं मनरेगा जॉब कार्ड तो है, पर साल में कुछ दिन का ही रोजगार मिला. अब भला कुछ दिन के रोजगार से पूरे साल पेट भरता भी तो कैसे, मजबूरी में आशीष का परिवार मजदूरी कर अपना भरण-पोषण कर रहा है. जो थोड़ी बहुत जमीन है, उसमें सब्जी और धान उगा कर अपने सपनों को मंजिल देने की कोशिश करता यह परिवार आज सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है.

परेशानियों के बारे में पूछने पर आशीष रूंधे हुए गले से कहता है कि यह पूछिए कि परेशानी क्या नहीं है. जिंदगी में सब कुछ हासिल करने की कोशिश तो बहुत की पर सरकार की योजना ही हासिल नहीं कर पाया. आज तक आशीष सिर्फ दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. ऐसा नहीं है कि आशीष के पास बीपीएल कार्ड नहीं है. उसके पिता के नाम पर बीपीएल कार्ड भी है. एक ही राशन कार्ड में पिता और आशीष सहित पूरे परिवार का नाम भी दर्ज है. फिर भी सरकारी योजनाएं उसके दरवाजे तक पहुंच ही नहीं पाईं.

लोहरदगा: हम बात पूरे राज्य की नहीं करते हैं, हम बात पूरे देश की नहीं करते हैं, लेकिन अगर सिर्फ लोहरदगा जिले की बात की जाए तो 9,550 ऐसे लोग हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास प्लस योजना में आवास उपलब्ध कराने की कोशिश की गईं हैं. यह तो सरकार की कोशिश है. अब जरा इसे जमीनी हकीकत के रूप में देखते हैं. लोहरदगा जिले में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन तक सरकार की योजनाएं पहुंच नहीं पाईं.

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उदाहरण के लिए लोहरदगा जिले के सदर प्रखंड के हिरही हर्रा टोली गांव में रहने वाले आशीष उरांव का परिवार बेघर होकर आज एक जर्जर पंचायत भवन में शरण लिए हुए है. इस परिवार को ना तो आवास योजना का लाभ मिल पाया है और ना ही प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का.

दर-दर भटकने के बाद थक गया आशीष

जिले के सदर प्रखंड के हिरही हर्रा टोली गांव निवासी आशीष और उनका परिवार आज गांव में स्थित एक पंचायत भवन में शरण लिए हुए है. इस पंचायत भवन की हालत भी ऐसी है कि जिंदगी पता नहीं कब दगा दे जाए. इसी जर्जर आवास में आशीष उरांव और परिवार किसी तरह से दिन काट रहे हैं. सोने के लिए ढंग का बिस्तर भी नहीं है. जमीन पर पुआल बिछाकर पूरा परिवार सो रहा है. पंचायत भवन की छत का प्लास्टर टूट-टूट कर गिरता है. दीवारों में दरारें आ चुकी है. इंधन के रूप में जलाने के लिए चूल्हा ही एकमात्र विकल्प है.

सरकार की उज्ज्वला योजना का लाभ तक इस परिवार को नहीं मिल पाया है. यही नहीं मनरेगा जॉब कार्ड तो है, पर साल में कुछ दिन का ही रोजगार मिला. अब भला कुछ दिन के रोजगार से पूरे साल पेट भरता भी तो कैसे, मजबूरी में आशीष का परिवार मजदूरी कर अपना भरण-पोषण कर रहा है. जो थोड़ी बहुत जमीन है, उसमें सब्जी और धान उगा कर अपने सपनों को मंजिल देने की कोशिश करता यह परिवार आज सरकारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है.

परेशानियों के बारे में पूछने पर आशीष रूंधे हुए गले से कहता है कि यह पूछिए कि परेशानी क्या नहीं है. जिंदगी में सब कुछ हासिल करने की कोशिश तो बहुत की पर सरकार की योजना ही हासिल नहीं कर पाया. आज तक आशीष सिर्फ दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. ऐसा नहीं है कि आशीष के पास बीपीएल कार्ड नहीं है. उसके पिता के नाम पर बीपीएल कार्ड भी है. एक ही राशन कार्ड में पिता और आशीष सहित पूरे परिवार का नाम भी दर्ज है. फिर भी सरकारी योजनाएं उसके दरवाजे तक पहुंच ही नहीं पाईं.

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