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दशक की दुर्लभ खगोलीय घटना है यह सूर्य ग्रहण, जानिए क्या कुछ खास है इस बार

21 जून को लगने वाला सूर्यग्रहण इस दशक की दुर्लभ खगोलीय घटना है. लोहरदगा में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक, खगोल विज्ञान के जानकार, रिसर्चर और खगोलविद वैद्यनाथ मिश्र ने सूर्यग्रहण को लेकर अपनी जानकारियों से अवगत कराया है. उन्होंने बताया कि कैसे इस बार का सूर्य ग्रहण खास है.

vaidyanath mishra talks about solar eclipse, दुर्लभ खगोलीय घटना है यह सूर्य ग्रहण
वैद्यनाथ मिश्र
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Published : Jun 20, 2020, 7:57 PM IST

लोहरदगाः 21 जून को होने वाला सूर्य ग्रहण इस दशक की दुर्लभ खगोलीय घटना है. वल्याकार ग्रहण होने की वजह से यह कुछ स्थानों में दिखाई देगा. सूर्यग्रहण को लेकर खगोल विज्ञान से जुड़े हुए लोग काफी उत्साहित हैं. लोहरदगा में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक, खगोल विज्ञान के जानकार, रिसर्चर और खगोलविद वैद्यनाथ मिश्र ने सूर्यग्रहण को लेकर अपनी जानकारियों से अवगत कराया है. उन्होंने बताया कि कैसे इस बार का सूर्य ग्रहण खास है. सूर्य ग्रहण को कैसे देखा जा सकता है. इसका सौरमंडल पर क्या असर पड़ेगा.

देखें खास बातचीत

तीन जिलों में दिखेगा 63.87 प्रतिशत

वल्याकार ग्रहण होने की वजह से यह कुछ स्थानों में ही दिखाई देगा. संपूर्ण भारत में यह आंशिक ग्रहण के रूप में दिखेगा. ग्रहण का प्रारंभ मध्य अफ्रीका गणराज्य में सूर्योदय के साथ शुरू होगा और दक्षिण प्रशांत महासागर में शाम को समाप्त हो जाएगा. भारत में वल्याकार सूर्यग्रहण राजस्थान के धरसाना में, हरियाणा के कुरुक्षेत्र में, उत्तराखंड के जोशीमठ में और कुछ स्थानों में पूर्ण रुप से दिखाई देगा. लोहरदगा, रांची, गुमला में ग्रहण का प्रारंभ सुबह 10:36 और 44 सेकंड में होगा. इसका अंत 2 बजकर 09 मिनट और 52 सेकंड में होगा. लोहरदगा, रांची, गुमला में सूर्य ग्रहण 68.87 प्रतिशत दिखाई देगा. चंद्र छाया के कारण यह ग्रसित दिखाई देगा. लोहरदगा में भास्कर एसोसिएशन की ओर से ग्रहण देखने की विशेष व्यवस्था एसोसिएशन के सचिव बैजनाथ मिश्र की ओर से की गई है. विज्ञान प्रसार के निर्देशानुसार यहां पर टेलिस्कोप और अन्य माध्यमों से सूर्य ग्रहण का आनंद लिया जा सकता है. वैधनाथ मिश्र का कहना है कि यह अद्भुत खगोलीय घटना है. ऐतिहासिक रूप से इस सूर्य ग्रहण को लोगों को समझना चाहिए. सूर्यग्रहण को लेकर खगोल विज्ञान और इसके रिसर्च से जुड़े हुए लोग बेहद आकर्षित है. आकर्षण इस वजह से कि लोगों में यह जानने की इच्छा है कि इस बार का सूर्य ग्रहण कैसे अलग है. सौरमंडल और पृथ्वी पर इसका क्या असर पड़ेगा. सूर्य ग्रहण को नंगी आंखों से बिल्कुल नहीं देखना चाहिए. यह घातक हो सकता है.

और पढ़ें- NDA सरकार के 1 वर्ष पूरे होने पर लक्ष्मण गिलुआ ने गिनाई उपलब्धी, कहा- अपने वादे पर कायम है मोदी सरकार

खगोलविद, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक, खगोल विज्ञान के रिसर्चर और भास्कर एस्ट्रो एसोसिएशन के सचिव बैजनाथ मिश्र ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस बार का सूर्य ग्रहण बेहद खास है. वल्याकार सूर्य ग्रहण होने की वजह से यह अपने आप में विशेष महत्व रखता है. एक दशक के दौरान इस प्रकार का सूर्य ग्रहण बिल्कुल अलग होगा. खगोल विज्ञान के रिसर्च करने वाले लोगों के लिए यह सूर्यग्रहण बेहद खास है.

लोहरदगाः 21 जून को होने वाला सूर्य ग्रहण इस दशक की दुर्लभ खगोलीय घटना है. वल्याकार ग्रहण होने की वजह से यह कुछ स्थानों में दिखाई देगा. सूर्यग्रहण को लेकर खगोल विज्ञान से जुड़े हुए लोग काफी उत्साहित हैं. लोहरदगा में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक, खगोल विज्ञान के जानकार, रिसर्चर और खगोलविद वैद्यनाथ मिश्र ने सूर्यग्रहण को लेकर अपनी जानकारियों से अवगत कराया है. उन्होंने बताया कि कैसे इस बार का सूर्य ग्रहण खास है. सूर्य ग्रहण को कैसे देखा जा सकता है. इसका सौरमंडल पर क्या असर पड़ेगा.

देखें खास बातचीत

तीन जिलों में दिखेगा 63.87 प्रतिशत

वल्याकार ग्रहण होने की वजह से यह कुछ स्थानों में ही दिखाई देगा. संपूर्ण भारत में यह आंशिक ग्रहण के रूप में दिखेगा. ग्रहण का प्रारंभ मध्य अफ्रीका गणराज्य में सूर्योदय के साथ शुरू होगा और दक्षिण प्रशांत महासागर में शाम को समाप्त हो जाएगा. भारत में वल्याकार सूर्यग्रहण राजस्थान के धरसाना में, हरियाणा के कुरुक्षेत्र में, उत्तराखंड के जोशीमठ में और कुछ स्थानों में पूर्ण रुप से दिखाई देगा. लोहरदगा, रांची, गुमला में ग्रहण का प्रारंभ सुबह 10:36 और 44 सेकंड में होगा. इसका अंत 2 बजकर 09 मिनट और 52 सेकंड में होगा. लोहरदगा, रांची, गुमला में सूर्य ग्रहण 68.87 प्रतिशत दिखाई देगा. चंद्र छाया के कारण यह ग्रसित दिखाई देगा. लोहरदगा में भास्कर एसोसिएशन की ओर से ग्रहण देखने की विशेष व्यवस्था एसोसिएशन के सचिव बैजनाथ मिश्र की ओर से की गई है. विज्ञान प्रसार के निर्देशानुसार यहां पर टेलिस्कोप और अन्य माध्यमों से सूर्य ग्रहण का आनंद लिया जा सकता है. वैधनाथ मिश्र का कहना है कि यह अद्भुत खगोलीय घटना है. ऐतिहासिक रूप से इस सूर्य ग्रहण को लोगों को समझना चाहिए. सूर्यग्रहण को लेकर खगोल विज्ञान और इसके रिसर्च से जुड़े हुए लोग बेहद आकर्षित है. आकर्षण इस वजह से कि लोगों में यह जानने की इच्छा है कि इस बार का सूर्य ग्रहण कैसे अलग है. सौरमंडल और पृथ्वी पर इसका क्या असर पड़ेगा. सूर्य ग्रहण को नंगी आंखों से बिल्कुल नहीं देखना चाहिए. यह घातक हो सकता है.

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खगोलविद, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक, खगोल विज्ञान के रिसर्चर और भास्कर एस्ट्रो एसोसिएशन के सचिव बैजनाथ मिश्र ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस बार का सूर्य ग्रहण बेहद खास है. वल्याकार सूर्य ग्रहण होने की वजह से यह अपने आप में विशेष महत्व रखता है. एक दशक के दौरान इस प्रकार का सूर्य ग्रहण बिल्कुल अलग होगा. खगोल विज्ञान के रिसर्च करने वाले लोगों के लिए यह सूर्यग्रहण बेहद खास है.

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