लातेहार: जिले का मांजर गांव इन दिनों काफी चर्चा में है. इस गांव की महिलाएं जैविक खेती के सहारे गांव की तस्वीर बदल रही है. गांव के अधिकांश लोग महिलाओं के प्रेरणा से अब रसायनिक खाद के बदले जैविक खाद का उपयोग करने लगे हैं.
किसानों को मिल रहा दोगुना लाभ
दरअसल, लातेहार का मांजर गांव पूरी तरह आदिवासी बहुल गांव है. यहां के लोगों का मुख्य रोजगार खेती ही है. लोगों को पहले खेती से ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता था लेकिन अब यहां की महिलाओं ने इस गांव में कृषि क्रांति लाकर इस गांव की तस्वीर बदल दी है. गांव में महिलाएं जैविक खाद बनाती हैं और उसका उपयोग खेतों में करती हैं. जैविक खाद का उपयोग खेतों में करने से किसानों को अच्छी आमदनी होने लगी है.
प्रशिक्षण के बाद आरंभ किया खाद बनाना
गांव की महिला शीला देवी और इंद्रमणि देवी ने बताया कि उन्होंने गांव में ही समूह के माध्यम से जैविक खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया. उसके बाद वे खुद ही अपने घरों में जैविक खाद बनाने लगीं और जैविक खाद के उपयोग से उन्हें काफी लाभ हुआ और उत्पादन भी काफी बेहतर होने लगा. वर्तमान में जैविक खाद के भरोसे इस गांव में सभी प्रकार की सब्जियां और फसल उगाई जा रही हैं.
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पुरुष भी करने लगे जैविक खाद का उपयोग
गांव की महिलाओं ने जब गोबर से निर्मित जैविक खाद के उपयोग की पहल की. तो पहले अन्य किसानों ने इस पर विश्वास नहीं किया लेकिन जब उत्पादन काफी बेहतर होने लगा, तो पुरुष किसान भी जैविक खाद का उपयोग करने लगे और वे इस जैविक खाद का उपयोग करके ज्यादा मुनाफा कमाने लगे.
किसानों को प्रोत्साहन की जरूरत
जैविक खेती से जहां भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है. वहीं किसानों को भी इससे काफी लाभ हो रहा है. जरूरत इस बात की है कि सरकार जैविक खेती करने वाले किसानों को प्रोत्साहित करें. ताकि इस प्रकार की खेती का प्रचलन बढ़ सके.