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सादगी और ईमानदारी है खरवार जनजाति की पहचान, अमर शहीद नीलांबर- पीतांबर को मानते हैं अपना आदर्श

आदिवासियों में खरवार जनजाति को सभी लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. अपनी ईमानदारी और मिलनसार व्यवहार के कारण इन लोगों की समाज में पहचान होती है. ये लोग प्रकृति की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं.

सादगी और ईमानदारी होते है खरवार जनजाति
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Published : Aug 8, 2019, 8:59 PM IST

लातेहार: झारखंड के जनजातियों में खरवार जनजाति की अपनी अलग ही पहचान है. इनका जीवन पूरी तरह सादगी और ईमानदारी से भरा हुआ होता है. इस जनजाति का मुख्य पेशा पशुपालन और कृषि है.

सादगी और ईमानदारी होते है खरवार जनजाति

अमर शहीद नीलांबर और पितांबर को अपना आदर्श मानने वाले यह जनजाति सफाई और स्वच्छता का बेहद प्रेमी हैं. दरअसल इस जनजाति का मुख्य पेशा कृषि कार्य ही है. आदि काल से ही ये लोग धान मक्का आदि का उत्पादन करते रहे हैं. इसके अलावा पशुपालन भी इनका मुख्य पेशा रहा है. विकट परिस्थिति में भी ये लोग अपने पारंपरिक पेशा को छोड़ते नहीं है.

इसे भी पढ़ें:- शहीद निर्मल महतो के 32वें शहादत दिवस पर हेमंत ने सरकार पर साधा निशाना, कहा- हमें खैरात नहीं अधिकार चाहिए

बदलने लगी है जीवन पद्धति
खरवार समाज मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहना पसंद करते हैं. सदर प्रखंड का ललगड़ी गांव पूरी तरह खरवार जनजातियों का ही गांव है. इस गांव में भी अब विकास दिखने लगा है. खरवार समाज में भी समय के साथ लोगों की जीवन पद्धति में बदलाव आने लगा है. शिक्षा से दूर रहने वाला यह समाज अब शिक्षा से जुड़ने लगे हैं. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं और लड़कियों के वेशभूषा में भी बदलाव आने लगा है. समाज में बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिलने लगा है. छात्रा पुष्पा कुमारी ने कहा कि वे लोग भी पढ़कर अब अपने जीवन को सुधारना चाहते हैं.

प्रकृति की रक्षा के प्रति हैं समर्पित
खरवार समाज प्रकृति की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं . वहां आसपास काफी मात्रा में पेड़ पौधे लगाते हैं. वहीं जंगलों की सुरक्षा करना भी इन लोगों का मुख्य उद्देश्य है.


नदी के किनारे रहना करते हैं पसंद
ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह ने कहा कि खरवार जनजाति मुख्य रूप से नदी किनारे रहना पसंद करते हैं. ये लोग खेती और पशुपालन का कार्य मूल रूप से करते हैं. उन्होंने बताया कि खरवार जनजाति के लोग बहुत ईमानदार और भोले होते हैं, ये लोग एक साथ मिलकर रहना पसंद करते हैं. अब खरवार भी नए जमाने के साथ चलने लगे हैं.

अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं आदर्श
रामेश्वर सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति का आदर्श अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं. शहीदों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे पलामू प्रमंडल में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे.

मुगलों के अत्याचार से आए थे झारखंड में
खरवार जनजाति के विशेषज्ञ सह प्रधानाध्यापक जानकी सिंह ने बताया कि मुगलों के अत्याचार के कारण ये लोग अपने पारंपरिक पेशा की रक्षा के लिए जंगलों और पहाड़ों में बसने लगे. जंगली पहाड़ों में ही उन लोगों ने खेती करना शुरू कर दिया.
प्रकृति के पुजारी होते हैं खरवार
विशेषज्ञ जानकी सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति प्रकृति के पुजारी होते हैं. यह लोग जंगल, जल ,सूर्य और धरती को ही अपने इष्ट देवता मानते हैं.


सामाजिक संगठन बनने के बाद आने लगा सुधार
खरवार जनजाति का सामाजिक स्तर पर संगठन बनाया गया है. संगठन के प्रभारी केंद्रीय अध्यक्ष नंद किशोर सिंह ने कहा कि संगठन बनने के बाद समाज में काफी बदलाव आया है. कई कुरीतियां समाप्त हो गई है. उन्होंने बताया कि उन लोगों का मुख्य पूजा पद्धति आदिवासी रिती रिवाज के अलावे सनातन पद्धति भी है .होली दशहरा दिवाली भी वे लोग धूमधाम से मनाते हैं.


जल संरक्षण के प्रति भी हैं जागरूक
खरवार जनजाति जल संरक्षण के प्रति भी जागरूक हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं ,वहां जल संरक्षण को लेकर प्रयासरत रहते हैं.


चावल है मुख्य भोजन
खरवार जनजाति का मुख्य भोजन चावल है. हालांकि अब कहीं-कहीं रोटी का ही प्रचलन भी शुरू हो गया है.

लातेहार: झारखंड के जनजातियों में खरवार जनजाति की अपनी अलग ही पहचान है. इनका जीवन पूरी तरह सादगी और ईमानदारी से भरा हुआ होता है. इस जनजाति का मुख्य पेशा पशुपालन और कृषि है.

सादगी और ईमानदारी होते है खरवार जनजाति

अमर शहीद नीलांबर और पितांबर को अपना आदर्श मानने वाले यह जनजाति सफाई और स्वच्छता का बेहद प्रेमी हैं. दरअसल इस जनजाति का मुख्य पेशा कृषि कार्य ही है. आदि काल से ही ये लोग धान मक्का आदि का उत्पादन करते रहे हैं. इसके अलावा पशुपालन भी इनका मुख्य पेशा रहा है. विकट परिस्थिति में भी ये लोग अपने पारंपरिक पेशा को छोड़ते नहीं है.

इसे भी पढ़ें:- शहीद निर्मल महतो के 32वें शहादत दिवस पर हेमंत ने सरकार पर साधा निशाना, कहा- हमें खैरात नहीं अधिकार चाहिए

बदलने लगी है जीवन पद्धति
खरवार समाज मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहना पसंद करते हैं. सदर प्रखंड का ललगड़ी गांव पूरी तरह खरवार जनजातियों का ही गांव है. इस गांव में भी अब विकास दिखने लगा है. खरवार समाज में भी समय के साथ लोगों की जीवन पद्धति में बदलाव आने लगा है. शिक्षा से दूर रहने वाला यह समाज अब शिक्षा से जुड़ने लगे हैं. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं और लड़कियों के वेशभूषा में भी बदलाव आने लगा है. समाज में बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिलने लगा है. छात्रा पुष्पा कुमारी ने कहा कि वे लोग भी पढ़कर अब अपने जीवन को सुधारना चाहते हैं.

प्रकृति की रक्षा के प्रति हैं समर्पित
खरवार समाज प्रकृति की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं . वहां आसपास काफी मात्रा में पेड़ पौधे लगाते हैं. वहीं जंगलों की सुरक्षा करना भी इन लोगों का मुख्य उद्देश्य है.


नदी के किनारे रहना करते हैं पसंद
ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह ने कहा कि खरवार जनजाति मुख्य रूप से नदी किनारे रहना पसंद करते हैं. ये लोग खेती और पशुपालन का कार्य मूल रूप से करते हैं. उन्होंने बताया कि खरवार जनजाति के लोग बहुत ईमानदार और भोले होते हैं, ये लोग एक साथ मिलकर रहना पसंद करते हैं. अब खरवार भी नए जमाने के साथ चलने लगे हैं.

अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं आदर्श
रामेश्वर सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति का आदर्श अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं. शहीदों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे पलामू प्रमंडल में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे.

मुगलों के अत्याचार से आए थे झारखंड में
खरवार जनजाति के विशेषज्ञ सह प्रधानाध्यापक जानकी सिंह ने बताया कि मुगलों के अत्याचार के कारण ये लोग अपने पारंपरिक पेशा की रक्षा के लिए जंगलों और पहाड़ों में बसने लगे. जंगली पहाड़ों में ही उन लोगों ने खेती करना शुरू कर दिया.
प्रकृति के पुजारी होते हैं खरवार
विशेषज्ञ जानकी सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति प्रकृति के पुजारी होते हैं. यह लोग जंगल, जल ,सूर्य और धरती को ही अपने इष्ट देवता मानते हैं.


सामाजिक संगठन बनने के बाद आने लगा सुधार
खरवार जनजाति का सामाजिक स्तर पर संगठन बनाया गया है. संगठन के प्रभारी केंद्रीय अध्यक्ष नंद किशोर सिंह ने कहा कि संगठन बनने के बाद समाज में काफी बदलाव आया है. कई कुरीतियां समाप्त हो गई है. उन्होंने बताया कि उन लोगों का मुख्य पूजा पद्धति आदिवासी रिती रिवाज के अलावे सनातन पद्धति भी है .होली दशहरा दिवाली भी वे लोग धूमधाम से मनाते हैं.


जल संरक्षण के प्रति भी हैं जागरूक
खरवार जनजाति जल संरक्षण के प्रति भी जागरूक हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं ,वहां जल संरक्षण को लेकर प्रयासरत रहते हैं.


चावल है मुख्य भोजन
खरवार जनजाति का मुख्य भोजन चावल है. हालांकि अब कहीं-कहीं रोटी का ही प्रचलन भी शुरू हो गया है.

Intro:सादगी और ईमानदारी है खरवार जनजाति की पहचान---- अमर शहीद नीलांबर- पीतांबर हैं आदर्श--
लातेहार. झारखंड के जनजातियों में खरवार जनजाति की अलग ही पहचान है. पूरी तरह सादगी और ईमानदारी को अपने जीवन पद्धति में शामिल करने वाले इस जनजाति का मुख्य पेशा पशुपालन और कृषि है. अमर शहीद नीलांबर और पितांबर को अपना आदर्श मानने वाला यह जनजाति सफाई और स्वच्छता का भी प्रेमी है.


Body:दरअसल इस जनजाति का मुख्य पेशा कृषि कार्य ही है आदि काल से ही यह लोग धान मक्का आदि का उत्पादन करते रहे हैं. इसके अलावा पशुपालन भी इनका मुख्य पेशा रहा है. विकट परिस्थिति में भी यह लोग अपने पारंपरिक पेशा को छोड़ते नहीं है. किसान रविंद्र सिंह ने बताया कि वे लोग खेती पर ही निर्भर रहते हैं.
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बदलने लगा है जीवन पद्धति
खरवार समाज मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में है निवास करना पसंद करते हैं. हालांकि अब इनके गांव में विकास की किरण पहुंचने लगी है. सदर प्रखंड का ललगड़ी गांव पूरी तरह खरवार जनजातियों का गांव है. इस गांव में विकास दिखने लगा है. खरवार समाज में भी समय के साथ लोगों के जीवन पद्धति में भी बदलाव आने लगा है. लोग अब पारंपरिक दातुन के साथ साथ आधुनिक ब्रश और टूथपेस्ट का उपयोग करने लगे हैं. शिक्षा से दूर रहने वाला यह समाज अब शिक्षा से भी जुड़ने लगा है. बच्चे स्कूल जाने लगे. लड़कियों के वेशभूषा में भी बदलाव आने लगा है. समाज में बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिलने लगा है. छात्रा पुष्पा कुमारी ने कहा कि वे लोग भी पढ़कर अब अपने जीवन को सुधारना चाहते हैं.
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प्रकृति की रक्षा के प्रति है समर्पित
खरवार समाज प्रकृति की रक्षा के प्रति भी समर्पित हैं. वे लोग जहां निवास करते हैं .वहां आसपास काफी मात्रा में पेड़ पौधे लगाते हैं .वही जंगल की सुरक्षा भी इनके मुख्य कार्यों में एक है. ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह ने बताया कि वे लोग जंगल की सुरक्षा को अपनी पहली जिम्मेवारी मानते हैं. जहां भी रहते हैं जंगल को बचा कर रखते हैं.
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नदी के किनारे रहना करते हैं पसंद
ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह ने कहा कि खरवार जनजाति मुख्य रूप से नदी के किनारे निवास करना पसंद करते हैं. ये लोग खेती और पशुपालन का कार्य मूल रूप से करते हैं. खरवार जनजाति निहायत ईमानदार और भोले भाले होते हैं. यह लोग एक साथ मिलकर रहना पसंद करते हैं. अब खरवार भी नए जमाने के साथ चलने लगे हैं. बच्चों को शिक्षा देने की परंपरा आरंभ हो गई है. खास करके बच्चियां भी अब शिक्षित होने लगी है.
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अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं आदर्श
खरवार जनजाति का आदर्श अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं. रामेश्वर सिंह ने बताया कि शहीदों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे पलामू प्रमंडल में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे.
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मुगलो के अत्याचार से आए थे झारखंड मे
खरवार जनजाति पहले मैदानी इलाके में ही रहते थे. इनका मूल पेशा पशुपालन और कृषि था. परंतु मुगलो के अत्याचार और पशुपालन के प्रति दुर्भावना से प्रताड़ित होकर वे लोग जंगल में जाकर बसने को मजबूर हो गए थे. जंगल पहाड़ में ही वे लोग खेती और पशुपालन आरंभ किए. खरवार जनजाति के विशेषज्ञ सह प्रधानाध्यापक जानकी सिंह ने बताया कि मुगलों के अत्याचार के कारण वे लोग अपने पारंपरिक पेशा की रक्षा के लिए जंगल और पहाड़ में बसने लगे.
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प्रकृति के पुजारी होते हैं खरवार
विशेषज्ञ जानकी सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति प्रकृति के पुजारी होते हैं. यह लोग जंगल, जल ,सूर्य और धरती को ही अपने इष्ट देवता मानते हैं.
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सामाजिक संगठन बनने के बाद आने लगा सुधार
खरवार जनजाति का सामाजिक स्तर पर संगठन बनाया गया है. संगठन के प्रभारी केंद्रीय अध्यक्ष नंद किशोर सिंह ने कहा कि संगठन बनने के बाद समाज में काफी बदलाव आया है. कई कुरीतियां समाप्त हुई है. उन्होंने कहा कि उन लोगों का मुख्य पूजा पद्धति आदिवासी रिती रिवाज के अलावे सनातन पद्धति भी है .होली दशहरा दिवाली भी वे लोग धूमधाम से मनाते हैं.
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जल संरक्षण के प्रति भी हैं जागरूक
खरवार जनजाति जल संरक्षण के प्रति भी जागरूक हैं यह लोग जहां भी निवास करते हैं ,वहां जल संरक्षण को लेकर प्रयासरत रहते हैं.
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चावल है मुख्य भोजन
खरवार जनजाति का मुख्य भोजन चावल है यह लोग चावल बड़े चाव से खाते हैं. हालांकि अब कहीं-कहीं रोटी का ही प्रचलन हुआ है.
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byte- रविंद्र सिंह किसान---- खेत में खड़े हैं
byte- छात्रा पुष्पा कुमारी
byte- ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह---- सफेद पगड़ी पहने हैं
byte- विशेषज्ञ जानकी सिंह
byte- समाज के केंद्रीय अध्यक्ष नंद किशोर सिंह--- चेक का हाफ शर्ट पहने हैं.


Conclusion:खरवार जनजाति को समाज के सभी लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. अपनी ईमानदारी और मिलनसार व्यवहार के कारण यह लोग सभी लोगों के विश्वासपात्र हो जाते हैं.
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