लातेहार: झारखंड के जनजातियों में खरवार जनजाति की अपनी अलग ही पहचान है. इनका जीवन पूरी तरह सादगी और ईमानदारी से भरा हुआ होता है. इस जनजाति का मुख्य पेशा पशुपालन और कृषि है.
अमर शहीद नीलांबर और पितांबर को अपना आदर्श मानने वाले यह जनजाति सफाई और स्वच्छता का बेहद प्रेमी हैं. दरअसल इस जनजाति का मुख्य पेशा कृषि कार्य ही है. आदि काल से ही ये लोग धान मक्का आदि का उत्पादन करते रहे हैं. इसके अलावा पशुपालन भी इनका मुख्य पेशा रहा है. विकट परिस्थिति में भी ये लोग अपने पारंपरिक पेशा को छोड़ते नहीं है.
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बदलने लगी है जीवन पद्धति
खरवार समाज मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहना पसंद करते हैं. सदर प्रखंड का ललगड़ी गांव पूरी तरह खरवार जनजातियों का ही गांव है. इस गांव में भी अब विकास दिखने लगा है. खरवार समाज में भी समय के साथ लोगों की जीवन पद्धति में बदलाव आने लगा है. शिक्षा से दूर रहने वाला यह समाज अब शिक्षा से जुड़ने लगे हैं. बच्चे स्कूल जाने लगे हैं और लड़कियों के वेशभूषा में भी बदलाव आने लगा है. समाज में बालिका शिक्षा को भी बढ़ावा मिलने लगा है. छात्रा पुष्पा कुमारी ने कहा कि वे लोग भी पढ़कर अब अपने जीवन को सुधारना चाहते हैं.
प्रकृति की रक्षा के प्रति हैं समर्पित
खरवार समाज प्रकृति की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं . वहां आसपास काफी मात्रा में पेड़ पौधे लगाते हैं. वहीं जंगलों की सुरक्षा करना भी इन लोगों का मुख्य उद्देश्य है.
नदी के किनारे रहना करते हैं पसंद
ग्राम प्रधान रामेश्वर सिंह ने कहा कि खरवार जनजाति मुख्य रूप से नदी किनारे रहना पसंद करते हैं. ये लोग खेती और पशुपालन का कार्य मूल रूप से करते हैं. उन्होंने बताया कि खरवार जनजाति के लोग बहुत ईमानदार और भोले होते हैं, ये लोग एक साथ मिलकर रहना पसंद करते हैं. अब खरवार भी नए जमाने के साथ चलने लगे हैं.
अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं आदर्श
रामेश्वर सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति का आदर्श अमर शहीद नीलांबर पितांबर हैं. शहीदों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पूरे पलामू प्रमंडल में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए थे.
मुगलों के अत्याचार से आए थे झारखंड में
खरवार जनजाति के विशेषज्ञ सह प्रधानाध्यापक जानकी सिंह ने बताया कि मुगलों के अत्याचार के कारण ये लोग अपने पारंपरिक पेशा की रक्षा के लिए जंगलों और पहाड़ों में बसने लगे. जंगली पहाड़ों में ही उन लोगों ने खेती करना शुरू कर दिया.
प्रकृति के पुजारी होते हैं खरवार
विशेषज्ञ जानकी सिंह ने बताया कि खरवार जनजाति प्रकृति के पुजारी होते हैं. यह लोग जंगल, जल ,सूर्य और धरती को ही अपने इष्ट देवता मानते हैं.
सामाजिक संगठन बनने के बाद आने लगा सुधार
खरवार जनजाति का सामाजिक स्तर पर संगठन बनाया गया है. संगठन के प्रभारी केंद्रीय अध्यक्ष नंद किशोर सिंह ने कहा कि संगठन बनने के बाद समाज में काफी बदलाव आया है. कई कुरीतियां समाप्त हो गई है. उन्होंने बताया कि उन लोगों का मुख्य पूजा पद्धति आदिवासी रिती रिवाज के अलावे सनातन पद्धति भी है .होली दशहरा दिवाली भी वे लोग धूमधाम से मनाते हैं.
जल संरक्षण के प्रति भी हैं जागरूक
खरवार जनजाति जल संरक्षण के प्रति भी जागरूक हैं. ये लोग जहां भी रहते हैं ,वहां जल संरक्षण को लेकर प्रयासरत रहते हैं.
चावल है मुख्य भोजन
खरवार जनजाति का मुख्य भोजन चावल है. हालांकि अब कहीं-कहीं रोटी का ही प्रचलन भी शुरू हो गया है.