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आदिम जनजातियों को भी महापर्व छठ का इंतजारः सूप और दउरा की बिक्री कर करते हैं आमदनी

महापर्व छठ की तैयारी चल रही है. इसके लिए लातेहार के आदिम जनजाति भी सूप, टोकरी बनाकर छठ पूजा का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि उनकी बनाई टोकरी और सूप से इस त्योहार में वो अच्छी आमदनी कर लेते हैं.

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महापर्व छठ
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Published : Oct 31, 2021, 4:53 PM IST

Updated : Oct 31, 2021, 10:09 PM IST

लातेहारः भारत की विविधताओं में एकता का एक उदाहरण महापर्व छठ भी है. यह त्यौहार उन लोगों के लिए भी वरदान बन जाता है, जिस समुदाय में सूर्य की आराधना करने की परंपरा ना हो. लातेहार जिला में निवास करने वाले आदिम जनजातियों के लिए छठ का त्यौहार आर्थिक खुशियां लेकर आता है.

इसे भी पढ़ें- महापर्व छठः कोडरमा में बांस के सूप-दउरा बनाने वाले हैं उत्साहित, बाजारों में खरीदारों की उमड़ रही भीड़

महापर्व छठ पूर्ण रूप से लोक त्यौहार है. मान्यता है कि भगवान सूर्य को बांस से बने हुए सूप और दउरा से छठ व्रती अर्घ्य देते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस पारंपरिक मान्यता के कारण छठ का त्यौहार आने पर सूप और दउरा की बिक्री चरम पर होती है. बाजार में आम दिनों की अपेक्षा ऊंचे दामों पर सूप और टोकरी की बिक्री होती है.

देखें पूरी खबर



आदिम जनजातियों के जीवन में लाता है आर्थिक खुशियां
लातेहार जिला के विभिन्न सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिम जनजाति समुदाय के लोग मुख्य रूप से सूप और दउरा निर्माण करते हैं. ऐसे में छठ आने पर जब सूप की मांग चरम पर होती है तो इनको व्यवसाय में मुनाफा भी काफी होता है. छठ से एक माह पूर्व पहले से ही ये लोग सूप और दउरा के निर्माण कार्य में लग जाते हैं. प्रत्येक दिन 5 से 8 सूप का निर्माण कर लेते हैं और छठ के मौके पर इसे बेचकर अच्छी कमाई भी कर लेते हैं.

Primitive tribes made sup, basket for Mahaparv Chhath in Latehar
दउरा और सूप बेचते आदिम जनजाति के लोग


आम दिनों की अपेक्षा दोगनी कीमत मिलती है
आदिम जनजाति समूह की सीता परहिन, शीतल परहिया ने बताया कि छठ आने पर सूप की बिक्री काफी अधिक होती है. ऐसे में उन्हें आम दिनों की अपेक्षा दोगने पैसे मिल जाते हैं. उन्होंने बताया कि छठ का त्यौहार आने पर सूप की कीमत 100 रुपए से लेकर 110 रुपए तक मिल जाता है. जबकि आम दिनों में इसकी कीमत 40 से 50 रुपए ही मिल पाता है. छठ में वो लोग अच्छी कमाई कर पाते हैं.

इसे भी पढ़ें- कण-कण में राम! संतोष ने प्रभु श्रीराम की बांस से बनी प्रतिमा में फूंकी जान


दुकानदारों की भी होती है कमाई
आदिम जनजातियों के बनाए गए सूप से बाहरी दुकानदार भी अच्छी कमाई कर लेते हैं. आदिम जनजातियों से सूप और दउरा खरीदकर दुकानदार उसे ग्राहकों को बेचकर अच्छी आमदनी कर लेते हैं. दुकानदार जगरनाथ प्रसाद ने बताया कि वर्तमान में बाजार में सूप की कीमत 200 रुपए से लेकर 300 रुपए प्रति जोड़ा है. महापर्व छठ में सूप की अच्छी बिक्री होती है.

Primitive tribes made sup, basket for Mahaparv Chhath in Latehar
सूप और टोकरी की बिक्री



इस पर्व के लिए बांस का सूप होता है अनिवार्य
स्थानीय महिला शांति देवी ने बताया कि छठ पर्व के लिए बांस से बना सूप और दउरा अति आवश्यक होता है. इसी कारण जिन्हें भी छठ का त्यौहार करना होता है वह नए सूप और दउरा की खरीदारी अनिवार्य रूप से करते हैं. भगवान सूर्य हमेशा से ही अपनी कृपा सभी लोगों पर बरसाते रहे हैं. सूर्य उपासना का त्यौहार छठ आदिम जनजातियों के आर्थिक आमदनी का एक प्रमुख त्यौहार साबित होता है.

लातेहारः भारत की विविधताओं में एकता का एक उदाहरण महापर्व छठ भी है. यह त्यौहार उन लोगों के लिए भी वरदान बन जाता है, जिस समुदाय में सूर्य की आराधना करने की परंपरा ना हो. लातेहार जिला में निवास करने वाले आदिम जनजातियों के लिए छठ का त्यौहार आर्थिक खुशियां लेकर आता है.

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महापर्व छठ पूर्ण रूप से लोक त्यौहार है. मान्यता है कि भगवान सूर्य को बांस से बने हुए सूप और दउरा से छठ व्रती अर्घ्य देते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इस पारंपरिक मान्यता के कारण छठ का त्यौहार आने पर सूप और दउरा की बिक्री चरम पर होती है. बाजार में आम दिनों की अपेक्षा ऊंचे दामों पर सूप और टोकरी की बिक्री होती है.

देखें पूरी खबर



आदिम जनजातियों के जीवन में लाता है आर्थिक खुशियां
लातेहार जिला के विभिन्न सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास करने वाले आदिम जनजाति समुदाय के लोग मुख्य रूप से सूप और दउरा निर्माण करते हैं. ऐसे में छठ आने पर जब सूप की मांग चरम पर होती है तो इनको व्यवसाय में मुनाफा भी काफी होता है. छठ से एक माह पूर्व पहले से ही ये लोग सूप और दउरा के निर्माण कार्य में लग जाते हैं. प्रत्येक दिन 5 से 8 सूप का निर्माण कर लेते हैं और छठ के मौके पर इसे बेचकर अच्छी कमाई भी कर लेते हैं.

Primitive tribes made sup, basket for Mahaparv Chhath in Latehar
दउरा और सूप बेचते आदिम जनजाति के लोग


आम दिनों की अपेक्षा दोगनी कीमत मिलती है
आदिम जनजाति समूह की सीता परहिन, शीतल परहिया ने बताया कि छठ आने पर सूप की बिक्री काफी अधिक होती है. ऐसे में उन्हें आम दिनों की अपेक्षा दोगने पैसे मिल जाते हैं. उन्होंने बताया कि छठ का त्यौहार आने पर सूप की कीमत 100 रुपए से लेकर 110 रुपए तक मिल जाता है. जबकि आम दिनों में इसकी कीमत 40 से 50 रुपए ही मिल पाता है. छठ में वो लोग अच्छी कमाई कर पाते हैं.

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दुकानदारों की भी होती है कमाई
आदिम जनजातियों के बनाए गए सूप से बाहरी दुकानदार भी अच्छी कमाई कर लेते हैं. आदिम जनजातियों से सूप और दउरा खरीदकर दुकानदार उसे ग्राहकों को बेचकर अच्छी आमदनी कर लेते हैं. दुकानदार जगरनाथ प्रसाद ने बताया कि वर्तमान में बाजार में सूप की कीमत 200 रुपए से लेकर 300 रुपए प्रति जोड़ा है. महापर्व छठ में सूप की अच्छी बिक्री होती है.

Primitive tribes made sup, basket for Mahaparv Chhath in Latehar
सूप और टोकरी की बिक्री



इस पर्व के लिए बांस का सूप होता है अनिवार्य
स्थानीय महिला शांति देवी ने बताया कि छठ पर्व के लिए बांस से बना सूप और दउरा अति आवश्यक होता है. इसी कारण जिन्हें भी छठ का त्यौहार करना होता है वह नए सूप और दउरा की खरीदारी अनिवार्य रूप से करते हैं. भगवान सूर्य हमेशा से ही अपनी कृपा सभी लोगों पर बरसाते रहे हैं. सूर्य उपासना का त्यौहार छठ आदिम जनजातियों के आर्थिक आमदनी का एक प्रमुख त्यौहार साबित होता है.

Last Updated : Oct 31, 2021, 10:09 PM IST
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