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ओडिशा के कलाकार ताम्रपत्र और भोजपत्र में बना रहे पेटिंग, प्रेम बांटने और पेड़ों के संरक्षण की कर रहे अपील

झारखंड का स्वर्ग कहा जाने वाला नेतरहाट में देशभर के करीब 80 पेंटर आदिवासी लोकचित्र शिविर में पहुंचे हैं. डॉ रामदयाल मुंड़ा जनजातिय शोध संस्थान की ओर से आयोजित चित्रकला शिविर के माध्यम से आदिवासी पेंटिंग को दुनिया में अलग पहचान दिलाना मकशत है. ओडिशा से पहुंचे पेंटर यहां एक से बढ़कर एक पेंटिंग बना रहे हैं. यहां कुछ ऐसी भी पेंटिंग बनाई जा रही है, जो आमतौर पर कठिन मानी जाती है.

Odisha artists are making best paintings in Netarhat Painting Camp
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Published : Feb 14, 2020, 5:46 PM IST

पलामू: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 220 किलोमीटर दूर लातेहार के नेतरहाट में आयोजित चित्रकला शिविर में 16 राज्यों के 80 पेंटर प्रथम आदिवासी लोकचित्र शिविर में भाग ले रहे हैं. विभिन्न राज्यों से पहुंचे चित्रकार अपनी संस्कृति से जुड़े एक से बढ़कर एक पेंटिंग बना रहे हैं. ओडिशा से पहुंचे कई कलाकार ताम्रपत्र और भोजपत्र में पेंटिंग बना रहे हैं, जो आम तौर पर काफी कठिन मानी जाती है.

देखें पूरी खबर

झारखंड का स्वर्ग कहा जाने वाला नेतरहाट में देशभर के करीब 80 पेंटर आदिवासी लोकचित्र शिविर में पहुंचे हैं. डॉ रामदयाल मुंड़ा जनजातिय शोध संस्थान की ओर से आयोजित चित्रकला शिविर के माध्यम से आदिवासी पेंटिंग को दुनिया में एक पहचान और नई ऊंचाई देने के लिए देशभर के आदिवासी पेंटर नेतरहाट में जमा हुए हैं. ओडिशा से पहुंचे पेंटर यहां एक से बढ़कर एक पेंटिंग बना रहे हैं. कुछ ऐसा भी पेंटिंग यहां बनाई जा रही है, जो आमतौर पर कठिन मानी जाती है.

और पढ़ें- राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू पहुंची धनबाद, राष्ट्रीय सेमिनार का किया उद्घाटन

किसी जमाने में ताम्रपत्र और भोजपत्र का इस्तेमाल संदेशों को आदान-प्रदान के लिए किया जाता था. भोजपत्र का पेड़ हिमालय के पहाड़ों में पाया जाता है. भोजपत्र का पेड़ कभी लातेहार के इलाके में होता था, लेकिन अब यहां इस पेड़ का नामो-निशान तक नहीं है. चित्रकला शिविर में भाग लेने पहुंचे ओडिशा के विरंचि नारायण ने बताया कि वे शिविर में आकर काफी उत्साहित है. यंहा आने में बाद पेंटिंग के बारे में कई जानकारी मिली. उन्होंने बताया कि ओडिशा के चित्रकार अपनी पेंटिंग में प्रेम को दर्शा रहे है, उनकी पेंटिंग प्रेम और प्रकृति से जुड़ी हुई है. पेंटिंग के माध्यम वे यह संदेश देना चाहते हैं कि प्रकृति के साथ पेड़ों को बचाना जरूरी है.

पलामू: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 220 किलोमीटर दूर लातेहार के नेतरहाट में आयोजित चित्रकला शिविर में 16 राज्यों के 80 पेंटर प्रथम आदिवासी लोकचित्र शिविर में भाग ले रहे हैं. विभिन्न राज्यों से पहुंचे चित्रकार अपनी संस्कृति से जुड़े एक से बढ़कर एक पेंटिंग बना रहे हैं. ओडिशा से पहुंचे कई कलाकार ताम्रपत्र और भोजपत्र में पेंटिंग बना रहे हैं, जो आम तौर पर काफी कठिन मानी जाती है.

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झारखंड का स्वर्ग कहा जाने वाला नेतरहाट में देशभर के करीब 80 पेंटर आदिवासी लोकचित्र शिविर में पहुंचे हैं. डॉ रामदयाल मुंड़ा जनजातिय शोध संस्थान की ओर से आयोजित चित्रकला शिविर के माध्यम से आदिवासी पेंटिंग को दुनिया में एक पहचान और नई ऊंचाई देने के लिए देशभर के आदिवासी पेंटर नेतरहाट में जमा हुए हैं. ओडिशा से पहुंचे पेंटर यहां एक से बढ़कर एक पेंटिंग बना रहे हैं. कुछ ऐसा भी पेंटिंग यहां बनाई जा रही है, जो आमतौर पर कठिन मानी जाती है.

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किसी जमाने में ताम्रपत्र और भोजपत्र का इस्तेमाल संदेशों को आदान-प्रदान के लिए किया जाता था. भोजपत्र का पेड़ हिमालय के पहाड़ों में पाया जाता है. भोजपत्र का पेड़ कभी लातेहार के इलाके में होता था, लेकिन अब यहां इस पेड़ का नामो-निशान तक नहीं है. चित्रकला शिविर में भाग लेने पहुंचे ओडिशा के विरंचि नारायण ने बताया कि वे शिविर में आकर काफी उत्साहित है. यंहा आने में बाद पेंटिंग के बारे में कई जानकारी मिली. उन्होंने बताया कि ओडिशा के चित्रकार अपनी पेंटिंग में प्रेम को दर्शा रहे है, उनकी पेंटिंग प्रेम और प्रकृति से जुड़ी हुई है. पेंटिंग के माध्यम वे यह संदेश देना चाहते हैं कि प्रकृति के साथ पेड़ों को बचाना जरूरी है.

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