लातेहारः आधुनिक शिक्षा की अंधी दौड़ में बच्चे अध्यात्म और संस्कार को भूलते जा रहे हैं. इसका दुष्परिणाम हो रहा है कि समाज में कुरीतियां भी बढ़ती जा रही है. बच्चे शिक्षित तो हो रहे हैं परंतु उन्हें शिक्षा के साथ जो संस्कार मिलनी चाहिए, उसमें काफी कमी आती जा रही है.
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हमारी जीवन पद्धति को सही मार्ग दिखाने वाले धार्मिक ग्रंथों तथा उनके पात्रों की जानकारी भी काफी कम बच्चों को मिल पा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो और भी दयनीय होती जा रही है. कई ऐसे इलाके हैं जहां बच्चों को आध्यात्मिक शिक्षा की तो बात ही दूर, आधुनिक और सामान्य शिक्षा भी नहीं मिल पा रही है. शिक्षा के अभाव में बच्चों के मन मस्तिष्क में नकारात्मक विचार लगातार प्रबल होते जा रहे हैं.
आध्यात्मिक और आधुनिक शिक्षा देने की परिकल्पनाः लातेहार के गारू प्रखंड के घने जंगली इलाकों में निवास करने वाले प्रसिद्ध संत नागेश्वर स्वामी ने तत्कालीन हालात और आने वाले भविष्य को देखते हुए यह संकल्प लिया था कि बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ अध्यात्मिक की शिक्षा भी अत्यंत जरूरी है. स्वामी ने अपने अनुयायियों के साथ विचार विमर्श कर सरना धाम गुरुकुल की स्थापना की. इस गुरुकुल का मुख्य उद्देश्य बच्चों को संस्कार के साथ आध्यात्मिक और आधुनिक शिक्षा देना था.
संत नागेश्वर स्वामी ने क्षेत्र के उन बच्चों को इस गुरुकुल में शिक्षा देने के लिए सबसे पहले चुना जिनके अभिभावक मजबूरी बस अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पा रहे थे. उनका यह प्रयास काफी सफल होने लगा. लगभग 30 वर्ष पहले आरंभ किया गया उनका यह प्रयास आज तक अनवरत जारी है. संत नागेश्वर स्वामी कुछ वर्ष पूर्व ही निधन हो गया. लेकिन उनके पुत्र सुभाष ने इस संस्था को अनवरत जारी रखा और यहां बच्चों को आधुनिक और आध्यात्मिक शिक्षा एक साथ मिलता रहा.
मुट्ठी दान की प्रथा से संचालित होता है गुरुकुलः यह गुरुकुल पिछले कई वर्षों से मुट्ठी दान की प्रथा से संचालित किया जा रहा है. मुट्ठी दान का अर्थ है कि नर्मदेश्वर शिव मंदिर मानसमणि सरना धाम आश्रम के भक्तगण प्रतिदिन एक मुट्ठी अनाज आश्रम के नाम से दान के रुप में निकालते हैं. इसी अनाज से गुरुकुल का संचालन होता है. इसके अलावा भक्तों के द्वारा गुरुकुल संचालन के लिए कुछ दान भी दिया जाता है.
बच्चों में दिखता है उत्साहः गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों में काफी उत्साह दिखता है. यहां शिक्षा ग्रहण कर रहे सुखदेव सिंह नामक बच्चा बताता है कि इस गुरुकुल में उसे अध्यात्म के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी मिलती है. उसने बताया कि गुरुकुल में रामचरितमानस, वेद पुराण के अलावा हिंदी, गणित, विज्ञान आदि विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती है. वहीं गुरुकुल के मुख्य आचार्य रमेश कुमार सिंह कहते हैं कि हमारा उद्देश्य बच्चों को शिक्षित और संस्कारी बनाना है. जब तक बच्चों में संस्कार नहीं आएंगे तब तक उनकी शिक्षा पूरी नहीं समझी जाएगी.
बच्चों में संस्कार जरूरीः इस संबंध में गुरुकुल के संचालक सुभाष का कहना है कि बच्चों में संस्कार अत्यंत जरूरी है. उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में और वर्तमान समय में ना तो धरती में बदलाव हुआ, ना सूर्य बदला और ना हवा बदली. लेकिन आध्यात्मिक शिक्षा के अभाव में बच्चों के संस्कार में बदलाव जरूर आ गए. उन्होंने कहा कि संस्कार के बिना शिक्षा जहर के समान है. इस गुरुकुल का मुख्य उद्देश्य है कि बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाए ताकि बच्चों में संस्कार भी बना रहे. उन्होंने कहा कि इस गुरुकुल से बुनियादी शिक्षा ग्रहण करने के बाद आज कई लोग समाज में क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं.
सरना धाम गुरुकुल बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दे रहा है. इससे बच्चे संस्कारी बन रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि इस प्रकार की संस्थाओं को बढ़ावा दिया जाए ताकि बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ संस्कारी भी बनाया जा सके.
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